पोंगल ( Pongal) चार दिन तक चलने वाला तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है, जिसे मकर संक्रांति (Makar Sankranti) और उत्तरायण के नाम से भी मनाया जाता है. बता दें कि पोंगल का यह त्योहार मूल रूप से कृषि से संबंधित होता है. इस पर्व को नए वर्ष की शुरुआत के तौर लगातार चार दिनों तक मनाया जाता है. इस पर्व का पहला दिन भोंगी पोंगल (Bhogi Pongal) के रुप में मनाया जाता है. इस दिन देवराज इंद्र (Devraj Indra) का पूजन किया जाता है. मान्यता के अनुसार, इंद्रदेव की पूजा प्रदेश के लोग अच्छी फसल के लिए करते हैं. वहीं, दूसरे दिन सूर्य पोंगल मनाया जाता है. तीसरे दिन मात्तु पोंगल मनाया जाता है और आखिर चौथे दिन कन्या पोंगल सेलिब्रेट किया जाता है.
हर साल की तरह इस साल भी पोंगल का त्योहार 14 से 17 जनवरी के बीच सेलिब्रेट किया जा रहा है. दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इस त्योहार से जुड़ी एक और प्रथा है. इस प्रथा के मुताबिक, लोग घरों से पुराना सामान निकाल कर नया सामान लाते हैं. साथ ही नए-नए कपड़े पहनकर इस त्योहार का जश्न मनाया जाता है.
पोंगल से जुड़ी खास बातें |Some Interesting Facts About Pongal
- पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है, जो मूल रूप से कृषि से संबंधित पर्व है.
- पोंगल तमिलनाडु में चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है.
- पोंगल का पहला दिन भोगी पोंगल (Bhogi Pongal) के रूप में मनाया जाता है.
- दूसरे दिन सूर्य के उत्तरायण होने के बाद सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है.
- तीसरे दिन मात्तु पोंगल मनाते हैं.
- चौथे दिन कन्या पोंगल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.
- तमिल कैलेंडर के मुताबिक, जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब इसे दक्षिण भारत में नए साल के रूप भी सेलिब्रेट किया जाता है.
- इस दिन नए बर्तन में दूध, चावल, काजू, गुड़ आदि चीजों की मदद से पोंगल का भोज तैयार किया जाता है.
- लोहड़ी पर्व की तरह ही इसे भी किसानों द्वारा फसल के पक जाने की खुशी में धूमधाम से मनाया जाता है.
- पोंगल पर घरों की विशेष रूप से साफ-सफाई और सजावट की जाती है.
- इस दिन किसान सुबह-सवेरे अपनी बैलों को स्नान कराकर, उन्हें खूब सजाते हैं.
- पोंगल पर तमिलनाडु में गन्ने और धान की फसले तैयार हो जाती है, जिसे किसान देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं.
- इस दिन वर्षा, सूर्य देव, इंद्रदेव और मवेशियों का भी पूजन किया जाता है.
- पोंगल पर्व पर हर दिन अलग-अलग तरीके से मनाएं जाने की परंपरा निभाई जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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