Makar Sankranti in 2025: हिंदू धर्म में मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण त्योहार है. सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं. हर वर्ष कुल 12 संक्रांति आती हैं जिनमें से मकर संक्रांति, जिसे पौष संक्रांति भी कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण मनाई जाती है. यह त्योहार भारत व नेपाल में मनाया जाता है. मकर संक्राति नए साल का पहला बड़ा त्योहार होता है. मकर संक्रांति के दिन से भगवान सूर्य (Lord Surya) उत्तरायण होते हैं और इसीलिए इस त्योहार को खिचड़ी और उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है. यह ठंड के कम होने और सूर्य देव के लंबे समय तक चमकने का प्रतीक होता है. पूरे देश में इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दिन नदियो में स्नान और दान का बहुत महत्व होता है. आइए जानते हैं अगले वर्ष कब है मकर संक्रांति और इस दिन से जुड़ी तरह-तरह की परंपराएं कौनसी हैं.
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वर्ष 2025 में मकर संक्रांति कब है | Makar Sankranti 2025 Date
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वर्ष 2025 में सूर्य देव मकर राशि में 14 जनवरी मंगलवार को प्रवेश करेंगे. भगवान सूर्य सुबह के समय 9 बजकर 3 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे. यह समय मकर संक्रांति क्षण होगा. सूर्य गोचर होने के कारण मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी. 14 जनवरी, 2025 को मकर संक्रांति के दिन पुण्य काल की कुल अवधि 8 घंटे 42 मिनट की है. पुण्य काल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगी. इस दिन एक घंटा 45 मिनट का महा पुण्य काल है. सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक महा पुण्य काल रहेगा.
मकर संक्रांति पर स्नान-दान का मुहूर्त14 जनवरी को स्नान और दान (Snan Daan) का शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 3 मिनट से सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक है. महा पुण्य काल में यह करना उत्तम रहेगा. हालांकि, पुण्य काल में भी स्नान और दान किया जा सकता है.
पतंग उड़ाने से लेकर दान तक की परंपराएंदेशभर में मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने से लेकर नदी स्नान और दान करने की परंपराएं हैं. इस दिन पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आसपास लोहड़ी मनाई जाती है. इस दिन तिल से बने तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं और दोस्तों और परिजनों को तिल व गुड़ खिलाया जाता है. इसके अलावा पवित्र नदियों में स्नान और दान करने की भी परंपरा है. मकर संक्रांति के दिन नदी स्नान के बाद लोग पितरों का तर्पण (Pitro Ka Tarpan) भी करते हैं. यह दिन अपने पूर्वजों को याद करने का भी अवसर माना जाता है. इस दिन को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाया जाता है.
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांतिमकर संक्रांति मूल रूप से खेती से जुड़ा त्योहार है. यह रब्बी फसलों की कटाई के बाद मनाया जाता है. इसके अलावा यह लंबी ठंड के बाद सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने और दिन की अवधि लंबे होने के लिए मनाया जाता है. यह दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने-मिलाने का भी त्योहार है.
मकर संक्रांति का महत्वमकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं और इस दिन से देवताओं का दिन प्रारंभ माना जाता है. इस दिन के बाद भगवान सूर्य मकर राशि से होते हुए मिथुन राशि तक गोचर करते हैं और इस दौरान सूर्य कैलेंडर के 6 माह आते हैं. इस समय से गर्मी धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और ठंड कम होने लगती है. मकर संक्रांति के बाद से दिन का समय अधिक और रात का समय कम होने लगता है. वर्ष में जब भगवान सूर्य कर्क राशि में गोचर करते हैं तो उसे सूर्य का दक्षिणायन होना शुरू होता है. सूर्य के दक्षिणायन होने को देवताओं की रात्रि शुरू होना माना जाता है. इस दिन से दिन का समय कम और रात का समय ज्यादा होने लगता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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