Makar Sankranti 2024: भगवान सूर्य (Lord Surya) के मकर राशि में प्रवेश करने के बाद मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का खास महत्व है. देशभर के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नाम से जाना जाता है और इसके मनाने के तरीके भी अलग-अलग हैं. इस त्योहार में कई अलग-अलग परंपराओं का निर्वहन किया जाता है. इस दिन लोग दही, तेल, चूड़ा, पंचांग और कपड़े आदि दान भी करते हैं. इस दिन कई जगहों पर लोग भगवान सूर्य की उपासना भी करते हैं. कोई इसे मकर संक्रांति के नाम से मनाता है तो कोई लोहड़ी तो कई जगह इस दिन को पोंगल (Pongal) के नाम से जाना जाता है. बिहार में मकर संक्रांति के दिन माताएं अपने पुत्र को तिल और गुड़ देती हैं. साथ ही, इस दौरान माएं अपने पुत्रों से वचन भी लेती हैं. जानिए इस अनोखी परंपरा के बारे में.
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मकर संक्रांति की परंपराएं | Makar Sankranti Rituals
मकर संक्रांति के दिन चावल तिलकुट का दान करना शुभ माना जाता है. इस दौरान माएं तिल, गुड़ और चावल को मिलाकर अपने पुत्र के हाथ में देती हैं. पुत्र उसे अपने हाथों में लेकर मां को वचन देते हैं. पांच बार बेटों के हाथ में तिल और चावल देने के दौरान माएं उनसे एक सवाल करती हैं कि क्या वो उनके साथ तिल तिल बहेंगे और पुत्र जवाब में हां कहते हैं. इसका मतलब होता है कि मां अपने पुत्रों से यह वचन लेती हैं कि जब वो बुजुर्ग अवस्था में चली जाएंगी तो बेटे उनका साथ देंगे या नहीं. इस दिन पुत्र अपनी माता को वचन देते हैं कि वो जीवन भर माता-पिता की सेवा करेंगे.
तिलकुटभरने की भी है परंपराबिहार के लगभग सभी जिलों में मां और बेटों के बीच यह परंपरा निभाई जाती है. तिल और गुड़ देने के पीछे ज्योतिषी कारण भी बताया गया है. ज्योतिष के मुताबिक तिल और गुड़ सूर्य और शनि के परिचायक होते हैं इसलिए इनका दान करना इस दिन काफी महत्वपूर्ण माना गया है. मकर संक्रांति के दिन तिलकुट (Tilkut) भरने की भी परंपरा निभाई जाती है. इस दौरान घर के सभी सदस्य कुल देवता पर गुड़, चावल और तिल का प्रसाद चढ़ाते हैं. इस दिन परिवार के बेटे और बहू बुजुर्गों की जिंदगीभर जिम्मेदारी निभाने का वचन देते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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