
Bhagwan Jagannath bhog : उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी में महा प्रभु जगन्नाथ को नीम के पत्ते का भोग लगाया जाता है. भगवान जगन्नाथ भक्तों के दुखों को दूर करने वाले हैं, जो उनकी भक्तों के प्रति असीम करुणा और प्रेम को दर्शाती है. भगवान जगन्नाथ को नीम के पत्ते का भोग लगाने के पीछे एक पौराणिक (jagannath pauranik katha) कथा प्रचलित है. जिसके बारे में आगे आर्टिकल में बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र, तो बिना देर किए आइए जानते हैं.
महाप्रभु को क्यों लगता है नीम का भोग
पंडित अरविंद मिश्र बताते हैं कि जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की एक परम भक्त वृद्ध महिला रहती थी, जो भगवान जगन्नाथ को अपने पुत्र की तरह मानती थी. वह प्रतिदिन देखती थी कि भगवान को 56 प्रकार के स्वादिष्ट और भारी भरकम पकवानों का भोग लगाया जाता है. एक दिन उसे चिंता हुई कि इतना सारा भोजन करने से उसके बेटे को पेट में दर्द हो सकता है. अपनी ममता के वशीभूत हो कर उसने भगवान के लिए नीम के पत्ते का चूर्ण तैयार किया क्योंकि नीम को औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है.
नीम का चूर्ण लेकर जब वह वृद्ध महिला मंदिर पहुंची तो द्वार पर खड़े सैनिकों ने उसे अंदर जाने से रोक दिया और उसके हाथों से नीम का चूर्ण लेकर फेंक दिया. जिससे वह वृद्ध महिला बहुत दुखी हुई और अपने घर लौट आई. उस रात भगवान जगन्नाथ ने पूरी के राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और उन्हें पूरी घटना बताई. भगवान ने राजा से कहा कि उन्होंने मेरी एक सच्ची भक्ति का अपमान किया है और वह अनुचित है. उन्होंने राजा को आदेश दिया कि वह खुद उसे महिला के घर जाकर उससे क्षमा मांगे और उसी नीम के चूर्ण को फिर से बनवाकर उन्हें अर्पित करें. अगले दिन राजा ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और स्वयं वृद्ध महिला के घर गए, उनसे क्षमा मांगी और प्रार्थना की माता आप दोबारा से नीम का चूर्ण बनाने की कृपा करें. उस मां ने बड़े ही प्रेम से वह नीम का चूर्ण तैयार किया और राजा ने उसे भगवान जगन्नाथ को भोग के रूप में अर्पित किया. भगवान ने उस भोग को सहर्ष स्वीकार किया . उसी समय से भगवान जगन्नाथ को छप्पन भोग के बाद नीम के चूर्ण का भोग लगाने की यह परंपरा चली आ रही है. यह कथा भगवान की भक्तों के प्रति उनके प्रेम ,उनकी सादगी और नीम के औषधीय महत्व को भी दर्शाती है.
इसके अलावा भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां भी नीम की पवित्र लकड़ी से ही बनाई जाती है. जिसे 'दारू ब्रह्मा' कहा जाता है. जो नीम के महत्व को और भी बढ़ता है. भगवान अपने भक्तों में कोई फर्क नहीं करते और भगवान को सभी पदार्थ प्रिय है कोई भी भक्त श्रद्धा एवं विश्वास से भावपूर्वक किसी पदार्थ से भगवान को भोग लगाते हैं. तो भगवान उसको सहर्ष स्वीकार करते हैं. इसी प्रकार एक कथा महाभारत में भी आती है जब महात्मा विदुर की पत्नी ने भगवान के प्रेम के वशीभूत होकर उन्हें केले के छिलके खिला दिए थे और उन्होंने बड़े ही प्रेम से खा लिए थे.
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