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This Article is From Mar 05, 2024

संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए व्रत की तिथि, पूजा सामग्री और कथा

Jivitputrika Vrat Date: संतान की लंबी उम्र और सेहत बनाए रखने के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. इस व्रत की विशेष धार्मिक मान्यता होती है.

संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए व्रत की तिथि, पूजा सामग्री और कथा
Jitiya Vrat 2024: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है.

Jivitputrika Vrat: संतान की लंबी उम्र और सेहत बनाए रखने के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. बिहार और उत्तर प्रदेश के साथ साथ नेपाल में विधि-विधान से रखे जाने वाले इस व्रत का बहुत महत्व है. हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. इसे जीतिया व्रत (Jitiya Vrat) भी कहा जाता है. आइए जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि, पूजा की सामग्री और इस व्रत की कथा. 

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कब है जीवित्पुत्रिका व्रत | Jivitputrika Vrat Date

संतान की लंबी उम्र के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. इस वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 25 सितंबर को पड़ रही है. इस वर्ष महिलाएं 25 सितंबर को जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत रखेंगी और अगले दिन 26 सितंबर को पारण करेंगी.

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जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा सामग्री
  • कुश की जीमूत वाहन की मूर्ति

  • मिट्‌टी से बनी चील और सियार की मूर्ति
  • अक्षत
  • फल
  • गुड़
  • धूप
  • दिया
  • घी
  • श्रृंगार सामग्री
  • दुर्वा
  • इलायची
  • पान
  • सरसो का तेल
  • बांस के पत्ते
  • लौंग
  • गाय का गोबर
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, किसी गांव में पश्चिम की ओर एक बरगद का पेड़ था. दस पेड़ पर एक चील रहती थी और पेड़ के नीचे एक मादा सियार रहती थी. दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. दोनों ने कुछ महिलाओं को जीवित्पुत्रिका व्रत करते देख तय किया कि वे भी यह व्रत रखेंगी. दोनों ने व्रत रखा. उसी दिन गांव में एक व्यक्ति की मौत हो गई. उस आदमी का दाह संस्कार बरगद के पेड़ के पास कर दिया गया. उस रात बारिश होने लगी और मादा सियार शव खाने के लिए ललचाने लगी. इस तरह मादा सियार का व्रत भंग हो गया जबकि चील ने अपना व्रत नहीं तोड़ा. अगले जन्म में चील और मादा सियार ने एक ब्राह्मण की दो बेटियों के रूप में जन्म लिया. समय आने पर दोनों बहनों शीलवती और कपुरावती का विवाह हो गया. शीलवती, जो पिछले जन्म में चील थी, को 7 पुत्र हुए और कपुरावती, जो पिछले जन्म में सियार थी के सभी पुत्र जन्म के बाद मर गए. कपुरावती को शीलवती के बच्चों से जलन होने लगी और और उसने शीलवती के सभी बेटों के सिर काट दिए. लेकिन, जीवितवाहन देवता ने बच्चों को फिर से जिंदा कर दिया. अगले दिन बच्चों को जीवित देख कपुरावती बेहोश हो गई. इसके बाद शीलवती ने उसे याद दिलाया कि पिछले जन्म में उसने व्रत भंग कर दिया था जिसके कारण उसके पुत्रों की मृत्यु हो जाती है. इस बात को सुनकर शोक ग्रस्त कपुरावती की मौत हो गई.  

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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