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देवघर स्थित पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ धाम का कैसे पड़ा नाम, पुरोहित ने सुनाई भगवान शिव से जुड़ी यह कथा

शास्त्रों के अनुसार आत्मलिंग से जिन बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों का प्रादुर्भाव हुआ उनमें बैद्यनाथधाम स्थित पवित्र ज्योतिर्लिंग को मूल लिंग माना जाता है.

देवघर स्थित पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ धाम का कैसे पड़ा नाम, पुरोहित ने सुनाई भगवान शिव से जुड़ी यह कथा
Baidyanath Dham: यहां शिव और शक्ति दोनों विराजमान हैं.
देवघर:

देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम की गिनती देश के पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में की जाती है. शास्त्रों में भी बैद्यनाथ धाम की महिमा का विषद उल्लेख किया गया है. मान्यता है कि सतयुग में ही इसका नामकरण हो गया था. यहां स्थित पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग के रूप में भी जाना जाता है. यहां शिव और शक्ति दोनों विराजमान हैं. शास्त्रों के अनुसार यहां माता सती के हृदय और भगवान शिव के आत्मलिंग दोनों का समिश्रण है, यही कारण है कि यहां स्थित ज्योतिर्लिंग की महिमा का पुराणों में भी गुणगान किया गया है. शिवपुराण के शक्ति खंड में इस बात का उल्लेख है कि माता सती के शरीर के 52 खंडों की रक्षा के लिए खुद भगवान शिव (Lord Shiva) ने सभी जगहों पर भैरव को बैठाया था. देवघर में माता का हृदय गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ या शक्ति पीठ की भी मान्यता है. इस हृदय पीठ की रक्षा के लिए भगवान शिव द्वारा जिस भैरव को बैठाया गया था वही बैद्यनाथ हैं. जानकारों के अनुसार इसी भैरव के नाम पर बैद्यनाथ नाम इस ज्योर्तिलिंग का पड़ा. बाबाधाम के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित, पंडित दुर्लभ मिश्र ने बताई इस ज्योर्तिलिंग की महिमा. 

जहां सती का हृदय गिरा वहीं विष्णु ने शिवलिंग की स्थापना की

बोल बम और हर हर महादेव का जयघोष करते श्रावण में शिवभक्तों की बाबा बैद्यनाथ के प्रति श्रद्धा देखते ही बनती है. जानकारों के अनुसार इस चराचर जगत के स्वामी जो पञ्च तत्व के भी स्वामी होते हैं वही बैद्यनाथ कहलाते हैं. शास्त्रों के अनुसार आत्मलिंग से जिन बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों का प्रादुर्भाव हुआ उनमें बैद्यनाथधाम स्थित पवित्र ज्योतिर्लिंग को मूल लिंग माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग मे शिव के अनन्य भक्त रावण द्वारा पवित्र शिवलिंग को लंका ले जाया जा रहा था तभी इसे लघुशंका लगी. जानकारों के अनुसार, भगवान शिव ने रावण को आत्मलिंग देते हुए एक शर्त रखी थी कि जिस जगह यह जमीन से स्पर्श करेगी वही स्थापित हो जाएगा.

रावण को जब तेज लघुशंका लगी तब पृथ्वी पर विष्णु जो भेष बदलकर चरवाहा का रूप धारण किये हुए थे उन्हीं के हाथ मे शिवलिंग थमा कर रावण लघुशंका करने लगा. शिवलिंग भारी देख भगवान विष्णु के कर-कमलों द्वारा उसी पवित्र जगह पर शिवलिंग को स्थापित किया गया जहां माता सती का हृदय गिरा था. जानकारों के अनुसार इसकी पृष्ठभूमि सतयुग में ही तैयार हो गई थी. शास्त्रों में इसका उल्लेख भी किया गया है.

पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में बैद्यनाथधाम स्थित पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग की इसी महत्ता के कारण प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा का जलाभिषेक करने 105 किलोमीटर की कष्टप्रद पैदल यात्रा कर बैद्यनाथधाम पहुंचते हैं और अपनी कामना की झोली भर कर वापस लौटते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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