
Elephant in hindu mythology and religion: सनातन परंपरा में गज या फिर कहें हाथी को बहुत ज्यादा शुभ और पूजनीय माना गया है. हाथी के सिर वाले गणपति के नाम से जहां सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है, वहीं इस हाथी पर जब मां लक्ष्मी सवार होकर किसी साधक के घर आती हैं तो उस पर उनकी अपार कृपा बरसती है. जिस हाथी को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, उसकी दक्षिण भारत में विशेष पूजा की जाती है.
दक्षिण के मंदिरों में इन्हें विशेष रूप से पाला जाता है. हाथी की शुभता को इस तरह भी समझ सकते हैं कि आज भी तमाम भवनों के बाहर हाथी को विशेष रूप से लगाया जाता है. आइए हाथी के धर्म और ज्योति से जुड़ाव को विस्तार से समझते हैं.

इंद्र का ऐरावत हाथी
हिंदू मान्यता के अनुसार देवताओं के राजा इंद्र (lord Indra) की सवारी ऐरावत है, जिसका प्राकट्य समुद्र मंथन से हुआ था. मान्यता है कि जब समुद्र मंथन से सफेद रंग का चार सींगों वाला ऐरावत हाथी निकला तो इंद्र देवता उस पर तुरंत मोहित हो गये और उन्होंने तुरंत उसे अपना वाहन बना लिया. ऐरावत के दस दांत दशों दिशाओं का और पांच सूड़ पंचदेव का प्रतिनिधित्व करते हैं. कुछ जगह पर ऐरावत के चार दांत होने का भी उल्लेख मिलता है, जिसका संबंध पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा से जोड़कर माना जाता है. हिंदू मान्यता (Hindu Belief) के अनुसार जब इंद्र देव को पृथ्वी पर वर्षा करवानी होती है तो ऐरावत अपनी सूंड से पाताल लोक से पानी खींचकर मेघों की मदद से पृथ्वी पर जल पहुंचाता है.
देवी की भी सवारी है हाथी
हिंदू धर्म में जहां हाथी को इंद्र देवता की सवारी माना जाता है, वहीं इसे कई पौराणिक कथाओं और मान्यताओं में देवी पूजा के साथ भी जोड़कर देखा जाता है. नवरात्रि में देवी दुर्गा जिन वाहनों पर सवार होकर आती हैं, उनमें से एक हाथी भी माना गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार नवरात्र में देवी दुर्गा का हाथी पर सवार होकर आना बेहद शुभ माना जाता है. मान्यता है कि जिस साल देवी दुर्गा गज पर सवार होकर आती है, उस साल सुख-समृद्धि बढ़ती है. किसानों को अच्छी फसल प्राप्त होती है. लोगों के जीवन में खुशहाली बनी रहती है.

गजलक्ष्मी की पूजा एवं व्रत
हिंदू धर्म में गज पर सवार होने वाली माता लक्ष्मी यानि गजलक्ष्मी की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. इनकी पूजा भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन से शुरु करके 16 दिन तक किया जाता है. इस व्रत को करने पर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. मान्यता है महाभारत काल में इस व्रत को करने के लिए गांधारी ने अपने 100 पुत्रों को कहकर एक बहुत बड़ा हाथी पूजा करने के लिए बनवाया. जिसके बाद राज्य की सभी महिलाएं उनके यहां जाने लगीं और कुंती के पास कोई नहीं आया.
तब दुखी होकर कुंती ने यह बात पांडवों को बताई. पांडवों ने अपनी मां से कहा ऐलान करवा दो कि आपके यहां स्वर्ग से सीधा ऐरावत हाथी आएगा, जिसे पूजा करना हो वो आपके पास आ जाए. इसके बाद अर्जुन ने बाण के माध्यम से ऐरावत को अपने महल में उतार लिया. इस खबर को सुनते ही सभी महिलाएं कुंती के महल में पहुंच गईं और वहां पर उन्होंने विधि-विधान से ऐरावत हाथी और महालक्ष्मी का पूजन किया.

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गजेंद्र मोक्ष की कथा
पौराणिक कथाओं में भी हाथी से जुड़ी कथा मिलती है, जिसका संबंध भगवान श्री विष्णु (Lord Vishnu) की कृपा से है. हिंदू मान्यता के अनुसार एक समय त्रिकूट पर्वत पर बहुत सारे हाथी रहा करते थे, जिनका मुखिया गजेंद्र नाम का हाथी था. एक बार उस हाथी को नदी में पानी पीते समय मगरमच्छ ने पकड़ लिया. जिस समय गजेंद्र को मगरमच्छ ने अपने जबड़ों से जकड़ा हुआ था उसने श्री हरि की सच्चे मन से प्रार्थना की और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे मगरमच्छ से बचा लिया. यह कथा गजेंद्र मोक्ष से संबंधित है, जिसका पाठ करने से व्यक्ति तमाम तरह के संकटों से निकल आता है और उसे सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
महाभारत काल का अश्वत्थामा हाथी
महाभारत के युद्ध के समय जब गुरु द्रोणाचार्य पर पांडवों को विजय पाना मुश्किल हो रहा था, तब भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की सलाह पर पांडवों ने अश्वत्थामा (Ashwatthama) नाम के हाथी को मार डाला और शोर मचा दिया किया अश्वत्थामा मारा गया. गौरतलब है अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे. इतना सुनते ही वे युद्ध स्थल पर शोक से डूब गये और मौका पाकर धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया था.
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ज्योतिष में गज से जुड़े योग
जानी-मानी ज्योतिषाचार्य डॉ. दीप्ति शर्मा के अनुसार के अनुसार जब गुरु और चंद्रमा साथ हो या फिर गुरु से चंद्रमा केंद्र में हो या फिर आमने सामने हो. ज्योतिष (Astrology) के अनुसार गजकेसरी योग हजार दोषों को दूर करने वाला माना गया है. मान्यता है कि यदि आपकी कुंडली में बहुत सारे ग्रह खराब भी हों तो गज केसरी योग उसे दूर करते हुए शुभ फल प्रदान करता है. इसी प्रकार गज लक्ष्मी योग गुरु-शुक्र से बनता है. यदि ये चौथे, सातवे अथवा दसवें स्थान पर एक साथ हों या फिर केंद्र में हो तो गज लक्ष्मी योग बनता है. इस तरह गुरु के साथ शुक्र का कंबीनेशन इस योग के बनने का कारण बनता है. इस योग के कारण व्यक्ति के भीतर जो भी कला होती है, उसे वह और भी निखारते हुए प्रसिद्धि दिलाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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