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Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी कब है, जानें इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व 

Ahoi Ashtami 2025 Date: सनातन परंपरा में दिवाली से आठ दिन पहले यानि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर अहोई माता की पूजा और व्रत करने का विधान है. संतान का सुख-सौभाग्य बढ़ाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत किस दिन रखा जाएगा और क्या है इसकी विधि और शुभ मुहूर्त, जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी कब है, जानें इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व 
Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी व्रत 2025 पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त 
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Ahoi Ashtami Vrat 2025 kab hai: सनातन परंपरा में कार्तिक मास की अष्टमी के दिन रखे जाने वाले अहोई अष्टमी व्रत का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने पर संतान अच्छी सेहत, सुख और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. कुछ इसी कामना को लिए महिलाएं हर साल अहोई माता की पूजा करते हुए अपनी संतान के दीर्घायु और सुखी संपन्न होने की प्रार्थना-आराधना करती हैं. संतान सुख दिलाने वाला यह व्रत इस साल कब और किस विधि से रखें? पूजा के किस उपाय को करने पर संतान सुख प्राप्त होगा? आइए इसे विस्तार से जानते हैं. 

अहोई अष्टमी व्रत की तारीख और शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार इस साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी 13 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:54 बजे प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर 2025 को प्रात:काल 11:39 बजे तक रहेगी. ऐसे में अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा. इस दिन अहोई माता की पूजा करने के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त शाम को 05:33 से लेकर 06:47 बजे तक रहेगा. इस दिन तारों को देखने के लिये सांझ का समय सायंकाल 05:56 बजे रहेगा. वहीं इस दिन चंद्रमा रात्रि को 11:08 बजे निकलेगा. 

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि

अहोई अष्टमी का व्रत भी करवा चौथ व्रत के समान कठिन माना जाता है. इस दिन भी सुहागिन महिलाएं सुबह से लेकर शाम तक निर्जल व्रत रखती हैं और शाम के समय विधि-विधान से पूजा करने के बाद देर रात चंद्रमा का दर्शन और अर्घ्य देकर पूजन करके व्रत पूर्ण करती हैं. आहोई अष्टमी वाले दिन महिलाएं शाम के समय प्रदोष काल में अहोई माता की पूजा करती हैं. इस पूजा में अहोई माता के चित्र को एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर रखा जाता है. फिर उस पर शुद्ध जल छिड़कर और दीपक जलाकर पूजा प्रारंभ की जाती है. 

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इसके बाद अहोई माता को रोली, चंदन, धूप, दीप, पुष्प, फल, मिठाई आदि अर्पित​ किया जाता है. इसके बाद गेहूं के सात दाने और कुछ पैसा हाथ में रखकर अहोई माता के व्रत की कथा सुनी जाती है. व्रत की पूजा के बाद गेहूं के दाने और कुछ दक्षिणा रखकर घर अथवा अन्य किसी बुजुर्ग महिला का आशीर्वाद लिया जाता है. इस व्रत में कुछ महिलाएं अपनी मान्यता के अनुसार शाम के समय तारों को या फिर रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा करती हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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