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Explainer : गुरमीत राम रहीम को फिर मिली पैरोल, सरकार बार-बार क्यों हो रही है मेहरबान?

2020 के बाद से तेरहवीं बार है. जब गुरमीत राम रहीम पैरोल या फर्लो पर इस तरह बाहर आ रहा हो. जेल द्वारा 21 दिन की फर्लो पर रिहा किए जाने के बाद गुरमीत राम रहीम जब जेल से बाहर निकला तो उसे लेने के लिए उसकी मुंहबोली बेटी हनीप्रीत जेल पहुंची. खास बात ये है कि 2017 में दो शिष्यों के बलात्कार का दोषी साबित होने के बाद ये दूसरी बार है जब राम रहीम डेरा सच्चा सौदा के मुख्यालय सिरसा जा रहा है.

देश की जेलों में बंद कैदियों की स्थिति चिंताजनक है. हर चार में से तीन कैदी विचाराधीन हैं, जिसका अर्थ है कि उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है और वे अभी तक दोषी साबित नहीं हुए हैं. इनमें से 8.6% कैदी तीन साल से अधिक समय से जेल में हैं. इन्हें न तो जमानत मिल पाती है और न ही फर्लो या पैरोल, जो उनके अधिकार हैं. हरियाणा के रोहतक की सुनारिया जेल से डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम 21 दिन की फर्लो पर रिहा हुए. राम रहीम बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा काट रहे हैं और यह उनकी चौथी अस्थायी रिहाई है. उनकी रिहाई के समय की तस्वीरें चर्चा में हैं, जिनमें वे जेल से बाहर निकलते दिख रहे हैं.

तस्वीरें देखकर लगता ही नहीं कि कोर्ट द्वारा दोषी साबित कोई कैदी अस्थाई तौर पर बाहर जा रहा हो. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. ये 2020 के बाद से तेरहवीं बार है. जब गुरमीत राम रहीम पैरोल या फर्लो पर इस तरह बाहर आ रहा हो. जेल द्वारा 21 दिन की फर्लो पर रिहा किए जाने के बाद गुरमीत राम रहीम जब जेल से बाहर निकला तो उसे लेने के लिए उसकी मुंहबोली बेटी हनीप्रीत जेल पहुंची. खास बात ये है कि 2017 में दो शिष्यों के बलात्कार का दोषी साबित होने के बाद ये दूसरी बार है जब राम रहीम डेरा सच्चा सौदा के मुख्यालय सिरसा जा रहा है.

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फर्लो या पैरोल का चुनाव कनेक्शन

गुरमीत राम रहीम को 21 दिन की फर्लो पर रिहा किया गया है, जिसे वह सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में बिताएगा. इस दौरान डेरा का 77वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा. राम रहीम को अक्सर चुनावों के आसपास फर्लो या पैरोल मिलती है, जैसे कि जनवरी में दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले. उस समय उन्होंने 10 दिन डेरा सच्चा सौदा के सिरसा मुख्यालय में और 20 दिन उत्तर प्रदेश के बागपत में डेरा के आश्रम में बिताए थे.

गुरमीत राम रहीम को 2024 में तीन बार जेल से बाहर आने का मौका मिला. ये तीनों ही बार चुनावों से जुड़े हुए थे. जनवरी में उन्हें 50 दिन की पैरोल मिली थी, जब लोकसभा चुनाव नजदीक थे. अगस्त में 21 दिन की फर्लो मिली, जब हरियाणा विधानसभा चुनाव की चर्चाएं शुरू हो गई थीं. अक्टूबर में उन्हें 20 दिन की पैरोल मिली, लेकिन इस बार शर्तें रखी गईं कि वे चुनाव संबंधी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे, भाषण नहीं देंगे और पैरोल के दौरान हरियाणा में नहीं रहेंगे.

गुरमीत राम रहीम को 2023 में तीन बार फर्लो या पैरोल पर जेल से बाहर आने का मौका मिला. जनवरी में उन्हें 40 दिन की पैरोल मिली, जब डेरा के पूर्व प्रमुख शाह सतनाम की जयंती थी. जुलाई-अगस्त में उन्हें 30 दिन की पैरोल मिली, जब हरियाणा में पंचायत चुनाव हो रहे थे.

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गुरमीत राम रहीम को 2023 में तीन बार फर्लो या पैरोल मिली, जिनमें से एक 21 नवंबर से 13 दिसंबर तक 21 दिन की पैरोल थी, जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव चल रहे थे. यह पैटर्न 2022 में भी देखा गया था, जब उन्हें तीन बार फर्लो या पैरोल मिली थी. फरवरी 2022, 21 दिन की फर्लो, जब पंजाब विधानसभा चुनाव होने वाले थे. जून 2022, 30 दिन की पैरोल, जब हरियाणा में 46 स्थानीय निकायों के चुनाव करीब थे, जिनमें 18 नगर निगम चुनाव शामिल थे. इस दौरान राम रहीम बागपत के आश्रम में रहे, लेकिन रोहतक जिले में उनके ऑनलाइन सत्संग को लेकर काफी हंगामा हुआ.

गुरमीत राम रहीम को 2022 में 15 अक्टूबर से 25 नवंबर तक पैरोल पर रिहा किया गया था, जब हिमाचल प्रदेश विधानसभा और हरियाणा के आदमपुर में उपचुनाव होने वाले थे. यह पैटर्न पहले भी देखा गया है, जब राम रहीम को चुनावों के आसपास फर्लो या पैरोल मिलती रही है. राम रहीम को 24 अक्टूबर 2020 को अपनी बीमार मां से मिलने के लिए एक दिन की रिहाई मिली, जब सोनीपत में बारोदा उपचुनाव चल रहा था. 2019 में राम रहीम 19 जनवरी से 10 मार्च तक जेल से बाहर रहे, लगभग 50 दिनों की अवधि के लिए.

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राम रहीम 2020 से अब तक 300 से ज़्यादा दिन फर्लो या पैरोल पर जेल से बाहर आ चुका है. राम रहीम को जेल से फर्लो या पैरोल के आगे तो सरकारी कर्मचारियों को साल में मिलने वाली छुट्टियां भी शर्मा जाएं. आंकड़ों ये भी साफ़ है कि राम रहीम को अधिकतर पैरोल और फर्लो अक्सर हरियाणा, पंजाब और यहां तक कि राजस्थान में हुए चुनावों के आसपास मिली. इन तीनों ही राज्यों की कई सीटों, खासतौर पर हरियाणा में डेरा के अनुयायियों की तादाद अच्छी खासी है. 1948 में स्थापित हुआ डेरा सच्चा सौदा एक सामाजिक-आध्यात्मिक संगठन है जिसका दावा है कि दुनिया भर में उसके करीब सात करोड़ अनुयायी हैं.

दो शिष्याओं के बलात्कार के आरोप में दोषी
दरअसल, डेरा चीफ को सभी पार्टियों में संपर्क रखने के लिए जाना जाता है. डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख राम रहीम दो गंभीर अपराधों के मामले में दोषी साबित हो चुका है और एक गंभीर केस उसके ख़िलाफ़ अभी चल ही रहा है. 25 अगस्त 2017 पंचकुला की विशेष सीबीआई अदालत ने राम रहीम को अपनी दो शिष्याओं के बलात्कार के आरोप में दोषी पाया गया था. 28 अगस्त, 2017 को उसे कुल बीस साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी. बलात्कार के दोनों मामलों में दस-दस साल की सज़ा जो एक के बाद एक भुगतनी थी. कोर्ट ने राम रहीम को दोनों पीड़ितों को 15- 15 लाख रुपए जुर्माना देने के भी आदेश दिए थे.

पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में दोषी
जनवरी 2019 को राम रहीम को एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में दोषी पाया गया. राम रहीम को इस मामले में उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई. रामचंद्र छत्रपति की 2002 में उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. वो राम रहीम के ख़िलाफ़ बलात्कार के मामलों पर कई बार रिपोर्ट कर चुके थे.

राम रहीम के खिलाफ एक केस अपने कई शिष्यों के जबरन बंध्याकरण यानी नपुंसक बनाने का भी चल रहा है. राम रहीम ने इन आरोपों से इनकार किया है. इस मामले में अक्टूबर 2018 में पंचकुला की सीबीआई अदालत राम रहीम को जमानत दे चुकी है. हत्या के एक मामले में राम रहीम को बरी भी किया जा चुका है. 2002 में डेरा के पूर्व मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या का ये मामला था जिसमें हाइकोर्ट ने जांच को ढीला बताते हुए राम रहीम को बरी कर दिया.
 

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राम रहीम से जुड़े विवादों की फेहरिस्त बहुत लंबी
मई 2007 में राम रहीम पर आरोप लगा कि उसने एक विज्ञापन में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जैसी वेशभूषा और कलगी लगी पगड़ी पहनकर सिख धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई. सिख धर्म से जुड़े संगठनों द्वारा विरोध जताए जाने पर डेरा सच्चा सौदा ने इस पर माफी भी मांगी और कहा कि वो सिख धर्म का पूरा सम्मान करते हैं. लेकिन सिखों की सबसे बड़ी संस्था अकाल तख़्त ने उस माफीनामे को अपर्याप्त बताया.

जनवरी 2016 में विश्व हिंदू परिषद ने पुलिस में एक शिकायत की जिसमें कहा गया कि राम रहीम ने भगवान विष्णु जैसे कपड़े पहनकर हिंदू धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है. राम रहीम से जुड़े विवादों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और कितनी ही उनके अनुयायियों पर क़ानून में बाधा पहुंचाने का भी आरोप लगा है. लेकिन फिलहाल सवाल ये है कि राम रहीम के लिए क़ानून इतना दरियादिल क्यों हो रहा है. उसे इतनी बार फर्लो या पैरोल क्यों मिल रही है. ऐसा नहीं है कि राम रहीम को लगातार मिल रही पैरोल या फर्लो का विरोध नहीं किया गया.

एसजीपीसी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
राम रहीम की लगातार अस्थायी रिहाई का विरोध करते हुए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने हरियाणा सरकार के फैसलों को बार-बार अदालत में चुनौती दी है. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. जनवरी 2023 में एसजीपीसी ने डेरा प्रमुख को हरियाणा सरकार द्वारा बार-बार पैरोल और छुट्टी दिए जाने के खिलाफ सबसे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाज खटखटाया था. अगस्त 2024 में जब हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी, तो एसजीपीसी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

उधर, जेल अधिकारियों का दावा रहा है कि राम रहीम को कभी भी विशेष फायदा नहीं दिया गया है और वो अस्थायी रिहाई के लिए उन प्रावधानों का इस्तेमाल कर रहा है जो सभी दोषियों को उपलब्ध होते हैं. राम रहीम को पैरोल और फर्लो देने के मामले में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पूर्व जेल मंत्री रंजीत सिंह चौटाला सब कहते रहे हैं कि राम रहीम को ये सुविधा देने में किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है.

2023 में जब डेरा चीफ को लगातार मिलने वाली पैरोल पर खट्टर से पूछा गया तो खट्टर ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि अगर राम रहीम को पैरोल मिली है तो ऐसा सभी प्रक्रियाओं पर अमल करने पर ही हुआ होगा जो सही है. सभी दोषी नियमों के तहत पैरोल के लिए याचिका देते हैं. अगर नियम इजाजत देते हैं तो उनको मिलती है, अगर इजाज़त नहीं देते तो नहीं मिलती. 2023 में राम रहीम को पैरोल और फर्लो का मामला जब काफी उठा तो हरियाणा सरकार ने ये आंकड़े गिनाए.

हरियाणा सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2023 में राज्य की तीन केंद्रीय और 17 जिला जेलों में कैद 5832 दोषी साबित कैदियों में से 2,801 को अस्थायी रिहाई का फायदा मिला. इनमें से 2007 को पैरोल और 794 को फर्लो पर रिहा किया गया. कुछ कैदियों ने दोनों ही प्रावधानों का फायदा लिया और वो भी साल में कई बार. इन आंकड़ों में वो 183 सज़ायाफ़्ता क़ैदी शामिल नहीं है जिन्हें इसी दौरान इमरजेेंसी पैरोल या कस्टडी पैरोल दी गई.

पैरोल का नियम क्या है.
 Haryana Good Conduct Prisoners (Temporary Release) Act, 2022 यानी हरियाणा सदाचारी बन्दी (अस्थाई रिहाई) अधिनियम के मुताबिक एक सज़ायाफ़्ता क़ैदी को एक साल में दस हफ़्तों की पैरोल दी जा सकती है. अगर उसने सज़ा का पहला साल पूरा कर लिया हो और ये पैरोल दो हिस्सों में लेनी होती है. लेकिन कई जानकारों का कहना है कि 2022 में इस क़ानून में संशोधन का फ़ायदा राम-रहीम को मिल रहा है. इस संशोधन से क़ैदी द्वारा फर्लो के लिए वजह बताने की ज़रूरत को ख़त्म कर दिया गया. 

 NCRB की रिपोर्ट Prison Statistics India 2022 के मुताबिक 31 दिसंबर, 2022 तक भारतीय जेलों में 5,73,220 लोग बंद थे, जिनमें से तीन चौथाई से ज़्यादा यानी 75.8% क़ैदी विचाराधीन थे. ये संख्या 4,34,302 हो जाती है. ये वो लोग हैं जिनके ख़िलाफ़ केस अभी अदालतों में चल ही रहे हैं उन्हें सज़ा नहीं हुई है. इसका मतलब ये है कि इन में से कई क़ैदी अदालती कार्रवाई के बाद रिहा भी हो सकते हैं. जेलों में बंद 23,772 महिलाओं में से 76.33% यानी 18,146 विचाराधीन कैदी हैं. हालांकि, इस रिपोर्ट में ये नहीं बताया गया है कि कितने कैदी पहली बार अपराध के आरोपी हैं. 31 दिसंबर, 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक विचाराधीन कैदियों में से 8.6% ऐसे हैं जो तीन साल से ज्यादा समय से जेल में हैं.

एक से दो साल तक जेल में कैद विचाराधीन कैदियों की तादाद 63502 थी. दो से तीन साल तक जेल में कैद विचाराधीन क़ैदियों की तादाद 33980 थी. तीन से पांच साल तक जेल में कैद विचाराधीन कैदियों की तादाद 25869 थी. पांच साल से ज़्यादा तक जेल में क़ैद विचाराधीन क़ैदियों की तादाद 11448 थी.

 हालांकि पिछले साल 26 नवंबर को संविधान दिवस के मौके पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि जिन विचाराधीन कैदियों ने किसी अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा का एक तिहाई से अधिक जेलों में बिता दिया है उन्हें रिहा किया जाएगा. गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में पहली बार अपराध करने वालों के लिए जमानत में नरमी का ज़िक्र करते हुए ये बात कही थी.

 इस सिलसिले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का सेक्शन 479 कहता है कि "यदि कोई क़ैदी मृत्यु या आजीवन कारावास जैसे अपराधों का आरोपी नहीं है तो उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए. अगर उसने संबंधित अपराध के लिए तय अधिकतम सज़ा का आधा समय कैद में बिता दिया है. भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता से पहले CrPC के Section 436A में भी ये प्रावधान था.  लेकिन भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता ने इसमें और नरमी बरतते हुए पहली बार अपराध के आरोपियों को ज़मानत पर छोड़ने का प्रावधान किया है, अगर उन्होंने संबंधित अपराध के तहत होने वाली अधिकतम सज़ा का एक तिहाई जेल में बिता दिया है. लेकिन इस प्रावधान में ये स्पष्ट किया गया है कि किसी आरोपी को तब कोर्ट द्वारा ज़मानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए अगर उसके ख़िलाफ़ किसी और मुकदमे या मुकदमों में जांच लंबित हो या मुक़दमा चल रहा हो. सुप्रीम कोर्ट ये भी साफ़ कर चुका है कि BNSS का सेक्शन 479 retrospectively लागू होगा. उन मामलों में भी जो 1 जुलाई 2024 से भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता के लागू होने से पहले के हैं.

ख़ास बात ये है कि BNSS का सेक्शन 479 जेल अधीक्षक का ये कर्तव्य भी तय करता है कि वो किसी व्यक्ति द्वारा अधिकतम सज़ा का आधा या एक तिहाई पूरा होने पर कोर्ट को ये याचिका भेजे कि उस व्यक्ति को ज़मानत पर रिहा कर दिया. लेकिन क्या आपको लगता है कि इस क़ानून का फ़ायदा जिन विचाराधीन क़ैदियों को मिलना चाहिए वो सभी जम़ानत पर बाहर आ गए हैं. उनके लिए फर्लो और पैरोल में वैसी रियायत तो फिर दूर की ही कौड़ी लगती है जैसी राम-रहीम को मिल रही है. 

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