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Explainer: घर के लिए मारामारी, फिर भी मुंबई में खाली क्यों हैं 3 लाख फ्लैट, हैरान कर रही यह रिपोर्ट

कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक ये तब है जब मुंबई मेट्रोपोलिटन इलाके में बीते साल घरों की बिक्री बढ़ी है 2024-25 में 1,62,024 घर मुंबई मेट्रोपोलिटन इलाके में बिके, जबकि उससे पहले के साल 2023-24 में 1,29,793 घर बिके थे. इस तरह घरों की बिक्री में 24.8% की बढ़ोत्तरी हुई है.

रोटी, कपड़ा और मकान इंसान की बुनियादी ज़रूरतें हैं. महंगाई के इस दौर में कई लोगों के लिए रोटी और कपड़े का इंतज़ाम तो जैसे तैसे हो सकता है. लेकिन मकान बनाने का सपना आज भी इस देश की एक बड़ी आबादी के लिए ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना बना हुआ है. अपने सिर पर आशियाने का सपना पूरा करने के लिए अगर किसी को बैंकों से क़र्ज़ मिल भी जाता है तो उसकी ज़िंदगी का एक तिहाई हिस्सा उस क़र्ज़ की किश्तें चुकाने में ही चला जाता है. ऐसे समय जब नौकरियों का भरोसा नहीं, किसी नौकरी पेशा आदमी के सिर पर ये कर्ज हर वक़्त एक तलवार की तरह लटकता रहता है. फिर भी इस देश के करोड़ों लोग अपने सिर पर क़र्ज़ की ये तलवार लटकाने को तैयार रहते हैं. बशर्ते पसंद का घर मिले तो. हालत ये है कि देश में इस समय नौकरीपेशा निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए वाजिब घर भी उपलब्ध नहीं हैं.

तीन लाख से ज़्यादा घर खाली क्यों?
ऐसे में एक सवाल उठ रहा है कि मुंबई मेट्रोपोलिटन एरिया में तीन लाख से ज़्यादा घर खाली क्यों हैं. मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, जो करोड़ों लोगों के लिए सपनों का शहर भी है. लोग मुंबई में बसने का सपना देखते हैं लेकिन मुंबई में रहने के लिए फ़्लैट का इंतज़ाम करना सबसे बड़ी चुनौती है. मुंबई देश के उन इलाकों में से है जहां घर या फ़्लैट सबसे महंगे हैं और किराया भी इतना कि एक निम्न मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा व्यक्ति की तनख़्वाह का बडा़ हिस्सा उसमें निकल जाए. मुंबई में घर ढूंढना कई बार नौकरी ढूंढने से भी ज़्यादा मुश्किल साबित होता है. ऐसे में मुंबई में तीन लाख से ज़्यादा खाली घरों का सवाल आया कहां से.

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ये नतीजा है एक नॉन ब्रोकिंग रियल एस्टेट रिसर्च कंपनी Liases Foras (लाएसेस फोरस) के ताज़ा सर्वे के मुताबिक मुंबई मेट्रोपोलिटन एरिया में खाली पड़े घरों और फ़्लैटों की बिक्री बढ़ी है. इसके बावजूद साल मार्च 2025 तक मुंबई में 3,05,267 घर खाली पड़े थे. कंपनी द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक पुणे में भी 89 हज़ार से ज़्यादा यानी 89,542 घर खाली पड़े हैं. खाली घरों के इस आंकड़े में बीते 19 महीनों में ज़्यादा अंतर नहीं आया है.

कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक ये तब है जब मुंबई मेट्रोपोलिटन इलाके में बीते साल घरों की बिक्री बढ़ी है 2024-25 में 1,62,024 घर मुंबई मेट्रोपोलिटन इलाके में बिके, जबकि उससे पहले के साल 2023-24 में 1,29,793 घर बिके थे. इस तरह घरों की बिक्री में 24.8% की बढ़ोत्तरी हुई है.

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नए उपलब्ध घरों में 2.2% की कमी
अगर पुणे की ही बात करें तो 2024-25 में 85,052 घरों की बिक्री हुई, जबकि उससे पहले के साल में 78,097 घरों की बिक्री हुई थी. इस तरह घरों की बिक्री में 8.9% की तेज़ी आई. इसी दौरान अगर ये देखें कि इन दोनों जगहों पर नए बने घरों की स्थिति क्या रही. तो मुंबई में साल 2024-25 में 1,44,870 नए घर बिक्री के लिए उपलब्ध हुए, जबकि 2023-24 में 1,48,000 नए घर उपलब्ध हुए थे. इस तरह नए उपलब्ध घरों में 2.2% की कमी आई.

खाली घरों की संख्या में कुछ कमी आई
पुणे की बात करें तो साल 2024-25 में 58,758 नए घर बिक्री के लिए उपलब्ध हुए, जबकि उससे पहले के साल 67,214 नए घर उपलब्ध हुए थे. इस तरह पुणे में बिक्री के लिए नए उपलब्ध घरों में 12.6% की कमी आई. आंकड़े बता रहे हैं कि जितनी संख्या में नए घर बने, उससे बस कुछ ज़्यादा ही संख्या में घर बिके. इस तरह से खाली घरों की संख्या बीते 19 महीनों से लगातार एक बराबर बनी हुई है. हालांकि, बीते वित्तीय साल इन खाली घरों की संख्या में कुछ कमी आई है. मुंबई मे तीन लाख घर खाली क्यों हैं. ये बड़ा सवाल है. क्या ये घर मध्यम और निम्न मध्यम आय वर्ग की पहुंच से बाहर हो गए हैं.

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क्या मुंबई का ये आंकड़ा देश के नौ बड़े शहरों में मंडरा रहे हाउसिंग संकट की ओर इशारा कर रहा है. क्या डिवेलपर्स ने मध्यम आय वर्ग के लिए किफ़ायती माने जाने वाले फ़्लैट्स को बनाने का काम कम कर दिया है. क्या डिवेलपर्स का सबसे ज़्यादा ध्यान लग्ज़री हाउसिंग पर है.

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NSE में लिस्टेड real estate data analytics कंपनी PropEquity की रिपोर्ट के मुताबिक ये बात सही है कि किफ़ायती घरों में काफ़ी गिरावट आ गई है. किफ़ायती या मध्यम आय वर्ग के माने जाने वाले फ़्लैट्स, जिन्हें एक करोड़ या उससे कम का माना जा रहा है उनकी सप्लाई बीते दो साल में 36% कम हो गई है. एक करोड़ रुपए भी कम क़ीमत नहीं होती. पूरी ज़िंदगी कमाने के बाद भी इस देश की अधिकतर आबादी इतनी रकम जमा नहीं कर सकती. ख़ैर अब इस रकम तक के मकानों को किफ़ायती माना जाने लगा है, मध्यम आय वर्ग के लायक माने जाना लगा है. PropEquity की रिपोर्ट में नौ मेट्रोपोलिटन शहरों बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, पुणे, ठाणे, नवी मुंबई, कोलकाता और दिल्ली-एनसीआर का जायज़ा लिया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक इन नौ शहरों में एक करोड़ तक के किफ़ायती मकानों की उपलब्धता

  • 2022 में 3,10,216 से गिरकर
  • 2023 में 2,83,323 यूनिट 
  •  2024 में और भी तेज़ी से गिरकर 1,98,926 पर आ गई है.
  • इस लिहाज़ से सबसे ज़्यादा असर दिल्ली-एनसीआर, मुंबई और हैदराबाद पर पड़ा है.

किफायती घरों की सप्लाई में गिरावट के आंकड़े कुछ इस तरह हैं:

- हैदराबाद: 69% की गिरावट, उपलब्ध यूनिट 13,238
- मुंबई: 60% की गिरावट, उपलब्ध यूनिट 6,062
- दिल्ली-एनसीआर: 45% की गिरावट, उपलब्ध यूनिट 2,672
- ठाणे: 36% की गिरावट
- बेंगलुरु: 33% की गिरावट, उपलब्ध यूनिट 25,012
- पुणे: 32% की गिरावट, उपलब्ध यूनिट 50,095
- चेन्नई: 13% की गिरावट, उपलब्ध यूनिट 12,743
- नवी मुंबई: 6% की गिरावट
- कोलकाता: 7% की बढ़ोत्तरी, उपलब्ध यूनिट 10,785

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किफ़ायती घरों की सप्लाई यानी उपलब्धता में ये गिरावट मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लिए चिंता पैदा करती है जो रोज़गार की तलाश में इन शहरों में पहुंचते हैं. भारत की 8% आबादी आज टियर 1 माने जाने वाले बड़े शहरों में रहती है और अगले पांच साल में ये आबादी और भी तेज़ी से बढ़ेगी. क्योंकि रोज़गार की तलाश में और लोग यहां पहुंचेंगे. जानकार मानते हैं कि बड़े शहरों की ओर लोगों के प्रवास और न्यूक्लियर famililes यानी एकल परिवारों के बढ़ते जाने से अगले पांच साल में डेढ़ करोड़ घरों की ज़रूरत पड़ेगी. इसके लिए सरकार को सक्रियता के साथ कदम उठाने होंगे, डेवलपर्स को टैक्स कटौती और सब्सिडी जैसे इंसेटिव देने होंगे ताकि वो किफ़ायती और मध्यम आय वर्ग के लिए घर तैयार कर सकें. इसके अलावा घर ख़रीदने वालों को होम लोन में छूट और स्टाम्प ड्यूटी में कटौती जैसी वित्तीय राहतें भी देनी होंगी ताकि ऐसे घरों की डिमांड बढे़.

एक ओर किफ़ायती और मध्यम आय वर्ग से जुड़े घर घट रहे हैं, वहीं PropEquity की इसी रिपोर्ट के मुताबिक इन नौ शहरों में 1 करोड़ और उससे ऊपर के घरों की उपलब्धता 2022 से 2024 के बीच 48% बढ़ गई है.


 लग्जरी होम सप्लाई में वृद्धि के आंकड़े कुछ इस तरह हैं:

- एनसीआर: 192% की वृद्धि
- बेंगलुरु: 187% की वृद्धि
- चेन्नई: 127% की वृद्धि
- नवी मुंबई: 70% की वृद्धि
- कोलकाता: 58% की वृद्धि
- ठाणे: 53% की वृद्धि
- पुणे: 52% की वृद्धि

लेकिन दो शहरों में लग्जरी हाउसिंग सप्लाई में गिरावट देखी गई:

- हैदराबाद: 11% की गिरावट
- मुंबई: 14% की गिरावट


जानकारों के मुताबिक इसकी एक बड़ी वजह ये है कि भारत में उन लोगों की तादाद बढ़ी है जिनके पास पैसा काफ़ी ज़्यादा है. इन्हें high-net-worth individuals यानी HNI कहा जाता है जिनके पास 10 लाख डॉलर से ज़्यादा की निवेश की जा सकने वाली संपत्ति है यानी क़रीब साढ़े आठ करोड़ रुपए. इससे भी एक डिग्री ऊपर चलते हैं. इन्हें कहते हैं ultra-high-net-worth individuals यानी UHNI... इनकी भी तादाद तेज़ी से बढ़ी है. ये वो वर्ग है जिसके पास 3 करोड़ डॉलर से ज़्यादा निवेश की जा सकने वाली संपत्ति है. रुपए में ये ढाई सौ करोड़ रुपए से ज़्यादा ठहरता है. यानी सुपर-सुपर रिच. भारत का एक बड़ा वर्ग तो इतने पैसे के बारे में सोच भी नहीं पाता. वैसे भी ये तो है ही कि जिसके पास पैसा है उसके पास और पैसा आया है. पूंजी कुछ लोगों तक सिमटती गई है.

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दुनिया के देशों में UHNI लोगों की संख्या के मामले में भारत का स्थान छठा है और एशिया में तीसरा. 2024 में देश में UHNI लोगों की तादाद 13,600 हो गई. इसमें 6% की सालाना तेजी आई है. 2028 तक ये तादाद 50% बढ़ जाएगी.

अब देखते हैं HNI यानी हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स भारत में कितने हैं. 2024 तक भारत में 850,000 HNI थे. फिर बता दें वो लोग जिनके पास साढ़े आठ करोड़ रुपए से ज़्यादा की संपत्ति है. ख़ास बात ये है कि इनमें से 20% HNI 40 साल से कम के हैं, जो बता रहा है कि युवा वेल्थ क्रिएटर्स की ताक़त को बता रहा है. HNI में से अधिकतर टेक कंपनियों, स्टार्ट अप्स, उद्योग जगत, रियल एस्टेट और स्टॉक मार्केट जुड़े लोग शामिल हैं.

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ये बढ़ती तादाद देश में अल्ट्रा लग्ज़री हाउसिंग को बढ़ावा मिलने की बड़ी वजह है. आलीशान घर ऐसे धनकुबेरों के लिए निवेश का भी एक रास्ता है जो उन्हें अच्छा रिटर्न देता है. लेकिन किफ़ायती घरों के बारे में भी तो सोचना होगा. देश में इस समय क़रीब 1 करोड़ 10 लाख किफ़ायती घरों की कमी है. पिछले साल 4 दिसंबर को उद्योग जगत से जुड़ी संस्था CII और real estate consultant Knight Frank India ने अपनी साझा रिपोर्ट में ये आंकड़ा जारी किया.

रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक किफ़ायती घरों की जो जरूरत होगी उससे उनकी उपलब्धता क़रीब 3 करोड़ 12 लाख इकाई होने की संभावना है. इन मकानों के लिए सबसे ज़्यादा मांग समाज के निम्न मध्मयवर्ग में है. एमआईजी, एलआईजी और ईडब्लूएस परिवारों की मांग सबसे ज़्यादा होगी.

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