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This Article is From May 02, 2017

महिला उत्पीड़न मामले में पुलिस की निष्क्रियता से पीड़िता को नुकसान नहीं होना चाहिए : अदालत

महिला उत्पीड़न मामले में पुलिस की निष्क्रियता से पीड़िता को नुकसान नहीं होना चाहिए : अदालत
प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली: दिल्ली की सत्र अदालत ने एक महिला के साथ छेड़खानी एवं उसे धमकी देने के मामले में दोषी की जेल की सज़ा को बरकरार रखते हुए कहा है कि पुलिस की तरफ से कार्रवाई में हुई देरी का असर मामले पर नहीं पड़ना चाहिए.

सत्र अदालत ने महिला के घर में जबरन दाखिल होने एवं उसका उत्पीड़न करने के मामले में मजिस्ट्रेटी अदालत द्वारा दोषी को दी गई 15 माह की सज़ा को कायम रखते हुए यह बात कही.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वृंदा कुमारी ने कहा, "पीड़िता ने बताया था कि वह तुरंत ही पुलिस थाने गई थी, लेकिन उनकी (पुलिस की) ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया... इस तरह की परिस्थिति में, औपचारिक रूप से प्राथमिकी दायर करने में चार दिन की देरी का शिकायतकर्ता के मामले पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए..."

न्यायाधीश ने उस अपील को भी ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि अपराधी नबील अहमद के खिलाफ अपराध साबित करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है. उन्होंने कहा, "अदालत को यह कहने में कोई झिझक नहीं कि आरोपी के पास अपने बचाव में कोई पक्ष नहीं है... शिकायतकर्ता-पीड़िता की गवाही को हिलाया नहीं जा सका और वह अपनी बात पर कायम रही, स्वतंत्र गवाह का न होना मामले पर असर नहीं डाल सकता..."

अभियोजन पक्ष के अनुसार अहमद ने 15 जून, 2007 को महिला के घर में घुसकर उसका यौन उत्पीड़न किया था. आरोपी ने पीड़िता को धमकी भी दी थी कि उसके खिलाफ शिकायत करना उसके परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा. मजिस्ट्रेटी अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 448, के तहत 15 माह की जेल और 10,000 रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई थी.

(इनपुट भाषा से भी)

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