नई दिल्ली:
शुरू होने से दो दिन पहले ही आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की तीन-दिवसीय कार्यक्रम इतने ज़्यादा विवादों में घिर गया है कि अब लगभग हर सरकारी विभाग दावा कर रहा है कि उसने यमुना नदी के किनारे होने वाले इस कार्यक्रम के लिए मंजूरी नहीं दी थी।
अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस ने कहा कि पिछले सप्ताह उनके द्वारा किए गए निरीक्षण में पाया गया कि सात पंटून पुलों की जगह फिलहाल सिर्फ एक ही तैयार हो पाया है, और उसमें भी किनारों पर तारों की कोई बाड़ नहीं लगी है, जिससे लोग भीड़ की धक्का-मुक्की या भगदड़ की नौबत आने पर पानी में गिरने से बच सकें। रिपोर्ट के मुताबबिक, अनुमानित भीड़ को देखते हुए यहां और पुलों की आवश्यकता है। अपने विज्ञापनों में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन का दावा है कि कार्यक्रम में 35 लाख लोग शामिल होने जा रहे हैं।
इस बात की भी आलोचना की जा रही है कि एक निजी कार्यक्रम के लिए पुलों को बनाने का काम करने के लिए सेना से कहा गया, और शीर्ष पर्यावरण अदालत बुधवार को इस बात पर फैसला सुना सकती है कि 'विश्व शांति सम्मेलन' को रद्द किया जाए या नहीं। मंगलवार को न्यायाधीशों ने इस बात पर सवाल किया था कि सेना को किसने शामिल किया, और दिल्ली सरकार ने कहा कि वह सेना से पंटून पुलों की दरख्वास्त सिर्फ उसी हालत में कर सकती है, जब बाढ़ का खतरा हो।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय हरित पंचाट (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल - एनजीटी) से इस आधार पर कार्यक्रम को रद्द करने का आग्रह किया है कि इससे यमुना के पर्यावरणीय माहौल को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचेगा। छह फुटबॉल मैदानों के आकार का स्टेज यहां बनाया जा रहा है, लेकिन कथित रूप से उसे प्रधानमंत्री की सुरक्षा टीम ने 'असुरक्षित' बताया है, क्योंकि प्रधानमंत्री भी कार्यक्रम में शिरकत करने वाले थे। इस बीच, राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी ने भी अपनी शिरकत की पुष्टि कर देने के बाद इसी सप्ताह के शुरू में उसे रद्द कर दिया था।
अब दिल्ली प्रदूषण बोर्ड से लेकर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) तक सरकारी एजेंसियों ने कोर्ट में संकेत दिए हैं कि उन्होंने अनुमतियां प्रदान नहीं कीं। कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से सवाल किया है कि उन्हें यमुना किनारे होने वाले निर्माण, भले ही वह अस्थायी हो, के लिए लाइसेंस दिए जाने की ज़रूरत क्यों महसूस नहीं होती।
अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस ने कहा कि पिछले सप्ताह उनके द्वारा किए गए निरीक्षण में पाया गया कि सात पंटून पुलों की जगह फिलहाल सिर्फ एक ही तैयार हो पाया है, और उसमें भी किनारों पर तारों की कोई बाड़ नहीं लगी है, जिससे लोग भीड़ की धक्का-मुक्की या भगदड़ की नौबत आने पर पानी में गिरने से बच सकें। रिपोर्ट के मुताबबिक, अनुमानित भीड़ को देखते हुए यहां और पुलों की आवश्यकता है। अपने विज्ञापनों में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन का दावा है कि कार्यक्रम में 35 लाख लोग शामिल होने जा रहे हैं।
इस बात की भी आलोचना की जा रही है कि एक निजी कार्यक्रम के लिए पुलों को बनाने का काम करने के लिए सेना से कहा गया, और शीर्ष पर्यावरण अदालत बुधवार को इस बात पर फैसला सुना सकती है कि 'विश्व शांति सम्मेलन' को रद्द किया जाए या नहीं। मंगलवार को न्यायाधीशों ने इस बात पर सवाल किया था कि सेना को किसने शामिल किया, और दिल्ली सरकार ने कहा कि वह सेना से पंटून पुलों की दरख्वास्त सिर्फ उसी हालत में कर सकती है, जब बाढ़ का खतरा हो।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय हरित पंचाट (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल - एनजीटी) से इस आधार पर कार्यक्रम को रद्द करने का आग्रह किया है कि इससे यमुना के पर्यावरणीय माहौल को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचेगा। छह फुटबॉल मैदानों के आकार का स्टेज यहां बनाया जा रहा है, लेकिन कथित रूप से उसे प्रधानमंत्री की सुरक्षा टीम ने 'असुरक्षित' बताया है, क्योंकि प्रधानमंत्री भी कार्यक्रम में शिरकत करने वाले थे। इस बीच, राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी ने भी अपनी शिरकत की पुष्टि कर देने के बाद इसी सप्ताह के शुरू में उसे रद्द कर दिया था।
अब दिल्ली प्रदूषण बोर्ड से लेकर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) तक सरकारी एजेंसियों ने कोर्ट में संकेत दिए हैं कि उन्होंने अनुमतियां प्रदान नहीं कीं। कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से सवाल किया है कि उन्हें यमुना किनारे होने वाले निर्माण, भले ही वह अस्थायी हो, के लिए लाइसेंस दिए जाने की ज़रूरत क्यों महसूस नहीं होती।
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