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This Article is From May 01, 2016

यौन उत्पीड़न, शादी, धोखा? : पति की जमानत रद्द करवाने हाईकोर्ट की शरण में नाबालिग

यौन उत्पीड़न, शादी, धोखा? : पति की जमानत रद्द करवाने हाईकोर्ट की शरण में नाबालिग
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: एक नाबालिग लड़की ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर अपने पति की जमानत को रद्द करने की मांग की है जिसने कथित रूप से उसका यौन उत्पीड़न किया था और बाद में अपने खिलाफ दर्ज मामले में जमानत हासिल करने के लिए उससे शादी कर ली थी। इसके बाद में युवती को घर से बाहर निकाल दिया था। युवती का आरोप है कि वे लोग उससे दहेज भी मांग रहे हैं।

कोर्ट के किस फैसले को चुनौती दी है...
याचिकाकर्ता ने पिछले वर्ष दिसम्बर में निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी है जिसने उसके पति की जमानत को रद्द करने के लिए दायर याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि ‘नाबालिग पीड़ित विवाह कानून के मुताबिक अपने आरोपों के बारे में उचित उपचार हासिल कर सकती है।’ आरोपी बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पोसको), घर में घुसने और लड़की का यौन उत्पीड़न करते समय उसको चोट पहुंचाने संबंधी कानून के तहत आरोपों का सामना कर रहा है।

क्यों दे दी गई थी आरोपी को जमानत...
याचिका के मुताबिक आरोपी ने पीड़िता का मार्च 2014 से अगस्त 2014 के बीच कई बार यौन उत्पीड़न किया था जब वह 15 वर्ष की थी। उसकी शिकायत पर लड़के को गिरफ्तार कर लिया गया और 15 सितम्बर 2014 को लड़की से शादी करने के लिए उसे अंतरिम जमानत दे दी गई। बाद में सितम्बर 2014 में उसे नियमित जमानत दे दी गई।

'बाद में लड़के ने निकाल दिया घर से बाहर और...'
अंतरिम जमानत मिलने के बाद दोनों ने शादी कर ली लेकिन अप्रैल 2015 में लड़के के पक्ष में युवती का बयान रिकॉर्ड हो जाने के बाद उसे ससुराल वालों ने घर से बाहर निकाल दिया। वकील ए पी सिंह के माध्यम से दायर अपनी याचिका में युवती ने आरोप लगाए कि जमानत मिलने के बाद आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों ने उसका ‘शारीरिक और मानसिक’ रूप से उत्पीड़न शुरू कर दिया और दहेज की मांग करने लगे।

'नाबालिग लड़की की शादी...'
लड़की की मां ने अपनी याचिका में यह भी आरोप लगाया कि उसे और उसके परिवार के सदस्यों को आरोपी ने धमकी दी कि अगर उन्होंने मामला वापस नहीं लिया तो उन्हें ‘परिणाम’ भुगतने होंगे। याचिका में कहा गया है, ‘निचली अदालत के न्यायाधीश ने नाबालिग लड़की की शादी को मंजूरी दे दी है जो कानून के तहत वैध नहीं है। निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया जाना चाहिए।’

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