नई दिल्ली: 
                                        सरकार के फैसले से पब्लिक हैरान भी है और परेशान भी। गाड़ियों के सम और विषम नंबर की बात किसी के गले नहीं उतर रही। कोई अपनी मजबूरी गिनवा रहा है तो कोई सरकार को सलाह दे रहा है।
पेशे से एडवोकेट बलजीत सिंह कहते हैं कि पहले पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम दुरुस्त करना था तब ये कदम होना चाहिए था। वहीं, सॉफ्टवेयर इंजीनियर राकेश रहेजा ने तो ये कहा कि सीधा फरमान सुनाना ठीक नहीं। सरकार व्यावहारिक पहलू भी तो देखे।
सीएसई की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता राय चौधरी ने कहा कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सरकार ने जब आईआईटी कानपुर से रिसर्च करवाया तो प्रदूषण की दूसरी सबसे बड़ी वजह गाड़ियों को बताया गया।
राजधानी में गाड़ियों की कुल तादाद तकरीबन 88 लाख है। इनमें करीब 85 लाख प्राइवेट गाड़ियां हैं जिनमें कार करीब 27 लाख, मोटरसाइकिल 29 लाख और स्कूटर करीब 27 लाख हैं। कमर्शियल गाड़ियों की संख्या करीब साढ़े तीन लाख है जिसमें ऑटो 81 हजार, स्कूल कैब 1 लाख, टैक्सी 32 हजार और बस करीब 20 हजार हैं।
इवन ऑड नंबर के इस विचार को रोड स्पेस रेशानिंग कहते हैं जिसे पहली बार 1982 में एथेंस में अपनाया गया फिर सांटियागो, मैक्सिको सिटी, साओ पाउलो, बीजिंग और लंदन में ओलिंपिक के दौरान भी ऐसा हुआ। देखना होगा कि सरकार इसे कितनी सख्ती से लागू करवा पाती है और इससे लोगों का कितना साथ मिलता है।
                                                                        
                                    
                                पेशे से एडवोकेट बलजीत सिंह कहते हैं कि पहले पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम दुरुस्त करना था तब ये कदम होना चाहिए था। वहीं, सॉफ्टवेयर इंजीनियर राकेश रहेजा ने तो ये कहा कि सीधा फरमान सुनाना ठीक नहीं। सरकार व्यावहारिक पहलू भी तो देखे।
सीएसई की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता राय चौधरी ने कहा कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सरकार ने जब आईआईटी कानपुर से रिसर्च करवाया तो प्रदूषण की दूसरी सबसे बड़ी वजह गाड़ियों को बताया गया।
राजधानी में गाड़ियों की कुल तादाद तकरीबन 88 लाख है। इनमें करीब 85 लाख प्राइवेट गाड़ियां हैं जिनमें कार करीब 27 लाख, मोटरसाइकिल 29 लाख और स्कूटर करीब 27 लाख हैं। कमर्शियल गाड़ियों की संख्या करीब साढ़े तीन लाख है जिसमें ऑटो 81 हजार, स्कूल कैब 1 लाख, टैक्सी 32 हजार और बस करीब 20 हजार हैं।
इवन ऑड नंबर के इस विचार को रोड स्पेस रेशानिंग कहते हैं जिसे पहली बार 1982 में एथेंस में अपनाया गया फिर सांटियागो, मैक्सिको सिटी, साओ पाउलो, बीजिंग और लंदन में ओलिंपिक के दौरान भी ऐसा हुआ। देखना होगा कि सरकार इसे कितनी सख्ती से लागू करवा पाती है और इससे लोगों का कितना साथ मिलता है।
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