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This Article is From Dec 13, 2016

साइबर इंसाफ का हाल : 5 साल से नहीं है जज

साइबर इंसाफ का हाल : 5 साल से नहीं है जज
करीब साढ़े पांच साल से ट्रिब्यूनल में कोई जज ही नहीं
नई दिल्ली: देश में आजकल सरकार खूब डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन पैसे के लेनदेन पर शिफ़्ट करने के लिए लोगों को मजबूर और प्रेरित कर रही है लेकिन अगर ऑनलाइन दुनिया में आपके साथ कोई धोखाधड़ी हो जाए तो उसके लिए क्या व्यवस्था है?

सोमवार को प्राइम टाइम में साइबर वकील प्रशांत माली ने दावा किया कि दिल्ली में जो साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल है, उसमें बीते 4 साल से कोई जज साहब ही नहीं है. इस दावे की पड़ताल करने के लिए मंगलवार को मंगलवार को दिल्ली कनॉट प्लेस में ट्रिब्यूनल के दफ़्तर का  जायजा लिया. पूरी वेबसाइट खंगालकर देखने की कोशिश कि देश में साइबर सुरक्षा का क्या हाल है.

(पढ़ें :  अगर आप क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी के शिकार हो जाएं तो अपनाएं ये उपाय)

1. इस ट्रिब्यूनल में 30 जून 2011 के बाद किसी जज (ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी) की नियुक्ति ही नहीं हुई है यानी करीब साढ़े पांच साल से एक अदालत में कोई जज है ही नहीं.

2. ट्रिब्यूनल की वेबसाइट देखकर पता चला कि यहाँ 2009 से केस लंबित हैं और साल 2011 के बाद कोई फैसला इस अदालत से नहीं आया.

3. 30 जून 2011 को जस्टिस राजेश टंडन यहां के जज के पद पर आसीन होकर रिटायर होने वाले आखिरी जज थे.

4. जिस तरह से पर्यावरण के मामलों की सुनवाई के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल होती है इसी तरह साइबर फ्रॉड के मामले सुनने के लिए देश में एकमात्र ख़ास कोर्ट साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल है.

5. कनॉट प्लेस मार्किट को समझने वाले जानकारों के मुताबिक बेशक बीते साढ़े पांच साल से इस अदालत का होना या ना होना बराबर है लेकिन जिस जगह ये हैं और जितनी जगह में है उसके हिसाब से इसका किराया हर महीने कम से कम 30-35 लाख रुपये है.

6. ये ट्रिब्यूनल भारत सरकार के इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय के तहत काम करता है जिसके मंत्री रविशंकर प्रसाद हैं

अगर किसी के साथ कोई साइबर धोखाधड़ी हो जाए तो

# सबसे पहले राज्य के संबंधित न्यायिक अधिकारी के यहां अपील करें.
# न्यायिक अधिकारी राज्य का इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय का सचिव होता है.
# देश के किसी भी राज्य के न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली के साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जा सकती.
#यानी अगर तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, कश्मीर या राजस्थान में भी आपके साथ कोई धोखाधड़ी हो तो न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली में ही चुनौती दें सकते हैं.
#आमतौर पर अगर आप सीधे हाइकोर्ट में भी जाते हैं तो कोर्ट मामला इसी ट्रिब्यूनल में भेज देती है.
#यानी ये एक तरह की हाई कोर्ट ही है जिसमे करीब 100 मामले लंबित हैं लेकिन सुनवाई कोई नहीं.

दिल्ली के साइबर वकील सजल धमीजा जो बीते 7 साल से अपने क्लाइंट के साथ हुई ऑनलाइन 5 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का केस लड़ रहे हैं लेकिन अब तक उसको उसको पैसा नहीं दिला पाये. कहते हैं कि 'जब अदालत में जज होगा तभी तो केस चलेगा और न्याय मिलेगा. 2011 के बाद से ट्रिब्यूनल के मेंबर बस तारीख दे रहे क्योंकि जज साहब है ही नहीं तो जजमेंट कहां से आएगा और कब आएगा?'

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने के मुताबिक 'ये आम जनता के मौलिक अधिकारों का हनन है क्योंकि लोग इंसाफ के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं लेकिन अगर 4-5 साल से वहां कोई जज ही न हो तो न्याय कैसे मिलेगा?'

ये सरकार के डिजिटल इंडिया और कैशलेस सोसाइटी के दावे के हक़ीक़त है. लोगों को इस तरफ धकेला तो जा रहा है लेकिन न्याय और सुरक्षा इंतज़ाम ये है. ऑनलाइन या साइबर फ्रॉड एक अलग तरह का अपराध होता है इसलिए इससे निपटने के लिए अलग अदालत बनाई गई है. लेकिन बिना जज अदालत का कोई मतलब नहीं और बिना न्याय व्यवस्था का कोई मतलब नहीं.

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