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This Article is From Nov 24, 2016

जीवनसाथी का व्यभिचार का आरोप लगाना बड़ा पीड़ादायक : दिल्‍ली उच्च न्यायालय

जीवनसाथी का व्यभिचार का आरोप लगाना बड़ा पीड़ादायक : दिल्‍ली उच्च न्यायालय
नई दिल्‍ली: दूसरी औरत के साथ अवैध संबंध रखने के पत्नी के आरोप से घिरे व्यक्ति के लिए तलाक मंजूर करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि जीवनसाथी द्वारा व्यभिचार का आरोप लगाया जाना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत पीड़ादायक होता है.

न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ ने कहा कि व्यभिचार का आरोप बहुत गंभीर आरोप है और यदि साबित नहीं होता है तो यह एक बड़ी क्रूरता है. अदालत ने कहा कि यह स्थापित हो गया है कि महिला ने अपने पति के खिलाफ व्यभिचार एवं दहेज उत्पीड़न का झूठा आरोप लगाया.

पीठ ने कहा, 'किसी के लिए भी इससे अधिक पीड़ा की बात नहीं हो सकती है उसका जीवनसाथी उसपर व्यभिचार का आरोप लगाए. यह स्थापित कानून है कि व्यभिचार का आरेाप गंभीर आरोप है और यदि साबित नहीं होता है तो यह क्रूरता है'. उच्च न्यायालय का फैसला एक व्यक्ति की याचिका पर आया है. वह तलाक की अपनी अर्जी निचली अदालत से रद्द होने के विरूद्ध उच्च न्यायालय पहुंचा था. अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला की ओर से अदालत में कोई पेश नहीं हुआ.

न्यायालय ने इस व्यक्ति को क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक मंजूर कर दी और कहा कि यह दंपति 1995 से ही साथ नहीं रह रहा है और ऐसे में उनकी शादी अपरिवर्तनीय रूप से टूट गई.

दरअसल, 1995 में फरवरी में शादी होने के बाद इस व्यक्ति की पत्नी अपने मायके चली गई. अगले साल उसने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए निचली अदालत में अर्जी लगाई. जब उसकी बीवी ने ससुराल लौटने का आश्वासन दिया तब उसने 2001 में अपनी अर्जी वापस ले ली, लेकिन वह ससुराल नहीं लौटी. फिर उस व्यक्ति ने 2009 में निचली अदालत में तलाक की अर्जी लगाई. महिला ने निचली अदालत में उस पर व्यभिचार और दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया. वहां दहेज उत्पीड़न के आरोप से वह व्यक्ति बरी हो गया, लेकिन निचली अदालत ने उसकी तलाक की अर्जी खारिज कर दी.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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