ईवीएम के साथ छेड़छाड़ संभव नहीं...
- ईवीएम में इंटरनेट का कनेक्शन नहीं होने से हैक होना असंभव
- पोलिंग पार्टी को केंद्र के लिए रवानगी से ठीक पहले मिलती हैं मशीनें
- दलों के पोलिंग एजेंट वोटिंग से पहले मशीनों का परीक्षण देखते हैं
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नई दिल्ली:
विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने बीजेपी पर इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया. इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ईवीएम में छेड़छाड़ का संदेह व्यक्त करते हुए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव में ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से मतदान कराने का आदेश दे दिया. जबकि दिल्ली के मुख्य चुनाव आयुक्त संजय श्रीवास्तव के मुताबिक ईवीएम मशीन से किसी भी तरह की छेड़छाड़ संभव नहीं है. उन्होंने इस बारे में दिल्ली सरकार की चिट्ठी का जवाब दे दिया है.
दिल्ली सरकार ने कहा है कि ईवीएम मशीन की जगह बैलेट पेपर से चुनाव हो. इसके जवाब में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए दिल्ली सरकार को खुद ईवीएम मशीन से चुनाव कराने के नियम में बदलाव कराने पड़ेंगे. साथ ही बैलेट बाक्स और बैलेट पेपर छपवाने में खासा वक्त लगेगा. मुख्य चुनाव आयुक्त संजय श्रीवास्तव ने कहा है कि ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ संभव नहीं है क्योकि ईवीएम का इंटरनेट का कनेक्शन नहीं होता है. यही कारण है कि उसे ऑनलाइन हैक नहीं किया जा सकता.
किस बूथ पर कौन सी ईवीएम जाएगी, इसके लिए पहले लोकसभा क्षेत्र फिर विधानसभा क्षेत्र और सबसे अंत में बूथ निर्धारित किया जाता है. पोलिंग पार्टी को एक दिन पहले डिस्पैचिंग के समय ही पता चल पाता है कि उसे कौन सी मशीन मिल रही है. ईवीएम में दो मशीनें होती हैं, बैलट और कंट्रोल. वर्तमान में इसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी भी होती है, जो मतदाता को एक पर्ची दिखाती है जिससे मतदाता बूथ पर ही आश्वस्त हो सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है या नहीं.
वोटिंग के पहले सभी ईवीएम की प्राथमिक जांच होती है. यही नहीं सुबह मतदान शुरू होने से पहले मतदान केंद्र पर पोलिंग पार्टी सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एंजेटों के सामने मॉक पोलिंग कराती है. मॉक पोल के बाद उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का सर्टिफिकेट देते हैं. यही नहीं वोटिंग मशीन में मतदान शुरू होने से पहले एजेंट के दस्तखत होते हैं जिन्हें मतगणना के समय एजेंट देख सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में पहले भी ईवीएम मशीन में गड़बड़ी के मामले आए लेकिन किसी में भी टैंपरिंग सिद्व नहीं हो पाई है. एमसीडी के चुनावों की घोषणा हो चुकी है. ईवीएम की जगह अब बैलेट के उपयोग के लिए दिल्ली सरकार को नियम में बदलाव करना होगा. काफी कम समय में बड़ी तादाद में बैलेट पेपर छपवाना भी संभव नहीं होगा. चुनाव आयोग ने यह साफ कर दिया है. अब देखना है कि केजरीवाल सरकार निर्वाचन आयोग के तर्कों से संतुष्ट होती है या नहीं.
दिल्ली सरकार ने कहा है कि ईवीएम मशीन की जगह बैलेट पेपर से चुनाव हो. इसके जवाब में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए दिल्ली सरकार को खुद ईवीएम मशीन से चुनाव कराने के नियम में बदलाव कराने पड़ेंगे. साथ ही बैलेट बाक्स और बैलेट पेपर छपवाने में खासा वक्त लगेगा. मुख्य चुनाव आयुक्त संजय श्रीवास्तव ने कहा है कि ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ संभव नहीं है क्योकि ईवीएम का इंटरनेट का कनेक्शन नहीं होता है. यही कारण है कि उसे ऑनलाइन हैक नहीं किया जा सकता.
किस बूथ पर कौन सी ईवीएम जाएगी, इसके लिए पहले लोकसभा क्षेत्र फिर विधानसभा क्षेत्र और सबसे अंत में बूथ निर्धारित किया जाता है. पोलिंग पार्टी को एक दिन पहले डिस्पैचिंग के समय ही पता चल पाता है कि उसे कौन सी मशीन मिल रही है. ईवीएम में दो मशीनें होती हैं, बैलट और कंट्रोल. वर्तमान में इसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी भी होती है, जो मतदाता को एक पर्ची दिखाती है जिससे मतदाता बूथ पर ही आश्वस्त हो सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है या नहीं.
वोटिंग के पहले सभी ईवीएम की प्राथमिक जांच होती है. यही नहीं सुबह मतदान शुरू होने से पहले मतदान केंद्र पर पोलिंग पार्टी सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एंजेटों के सामने मॉक पोलिंग कराती है. मॉक पोल के बाद उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का सर्टिफिकेट देते हैं. यही नहीं वोटिंग मशीन में मतदान शुरू होने से पहले एजेंट के दस्तखत होते हैं जिन्हें मतगणना के समय एजेंट देख सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में पहले भी ईवीएम मशीन में गड़बड़ी के मामले आए लेकिन किसी में भी टैंपरिंग सिद्व नहीं हो पाई है. एमसीडी के चुनावों की घोषणा हो चुकी है. ईवीएम की जगह अब बैलेट के उपयोग के लिए दिल्ली सरकार को नियम में बदलाव करना होगा. काफी कम समय में बड़ी तादाद में बैलेट पेपर छपवाना भी संभव नहीं होगा. चुनाव आयोग ने यह साफ कर दिया है. अब देखना है कि केजरीवाल सरकार निर्वाचन आयोग के तर्कों से संतुष्ट होती है या नहीं.
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