लॉकडाउन के बढ़ने से सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ प्रवासी मज़दूरों को हुई है. देश की राजधानी दिल्ली में भी बुरा हाल है. दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास हज़ारों प्रवासी मज़दूर यमुना के किनारे सोने के लिए मजबूर हैं. हालात इस क़दर ख़राब हैं कि उन्हें सड़े केले तक खाने पड़ रहे हैं. दिल्ली के निगमबोध घाट पर यमुना किनारे सड़े हुए केले के ढेर में प्रवासी मज़दूर ढूंढ रहे हैं कि कोई एक ठीक केला मिल जाए तो पेट को राहत मिले.
एक मजदूर ने बात करने पर बताया,'भैय्या क्या करें, खाना नहीं मिल रहा है तो केले ही खा लें.अलीगढ़ से हूं यहीं सो रहे हैं खाना नहीं आता केले से चल जाएगा.' निगमबोध घाट से लेकर मजनू के टीले तक हज़ारों प्रवासी मज़दूर यमुना के किनारे सोते मिल जाएंगे. 55 साल के जगदीश कुमार जो कि बरेली के रहने वाले हैं, पुरानी दिल्ली में मज़दूरी करते थे लेकिन लॉकडाउन के चलते सब बंद है, रहने के लिए जगह नहीं है और सड़क पर जाते हैं तो पुलिस मारती है. इसलिए यहीं यमुना किनारे पड़े हुए हैं. जगदीश ने बताया,'भैया दो दिन बाद खाना मिला है. यहीं मज़दूरी करता था. अब यहीं फ़ंसा हूं.'
यमुना किनारे जगदीश जैसे हज़ारों मज़दूर शनिवार को निगमबोध के रैन बसेरे जल जाने के बाद ऐसे ही लॉकडाउन के दिन गिन रहे हैं . मीडिया में ख़बर आने के बाद दिल्ली सरकार जागी है और इन प्रवासी मज़दूरों को स्कूलों में शिफ़्ट किया जा रहा है.
दिल्ली सरकार की ओर से विपिन रॉय ने बताया, 'यहां हज़ारों मज़दूर हैं. हम इन्हें स्कूलों में ले जा रहे हैं जो शेल्टर होम बनाए गए हैं.' अब सवाल यही है कि अगर सरकार सही समय पर जागे तो इन प्रवासी मज़दूरों को सड़े केले न खाने पड़ें . जानवरों के साथ सोना न पड़े. सवाल सरकारों पर ही है कि क्या वे वाक़ई इन मज़दूरों का पेट भरने में सक्ष्म हैं?
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