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एशिया कप के सबसे पहले हीरो, जिसने भारत को बनाया चैंपियन, लेकिन 10 मैच में ही खत्म हुआ करियर

Surinder Khanna: Hero of the first Asia Cup: भारत ने आखिरी बार  2023  में एशिया कप का खिताब जीता था. इससे पहले, भारत सात बार यह खिताब जीत चुका था जिससे वह इस टूर्नामेंट की सबसे सफल टीम बन गई है

एशिया कप के सबसे पहले हीरो, जिसने भारत को बनाया चैंपियन, लेकिन 10 मैच में ही खत्म हुआ करियर
The Hero Of First Asia Cup: एशिया कप के पहले हीरो की कहानी
  • भारत ने 1984 में पहला एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट जीता था, जिसका आयोजन शारजाह में हुआ था.
  • विकेटकीपर-ओपनर सुरिंदर खन्ना ने भारत के लिए शानदार बल्लेबाजी और विकेटकीपिंग प्रदर्शन किया था.
  • सुरिंदर खन्ना ने एशिया कप में मैन ऑफ द मैच और मैन ऑफ द सीरीज का पुरस्कार जीता था.
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Surinder Khanna: Hero of the first Asia Cup: एशिया कप (Asia Cup 2025) क्रिकेट टूर्नामेंट को लेकर उत्साह चरम पर है. भारतीय टीम एक बार फिर ट्रॉफी जीतने की प्रबल दावेदार है. भारत ने आखिरी बार  2023  में एशिया कप का खिताब जीता था. इससे पहले, भारत सात बार यह खिताब जीत चुका था जिससे वह इस टूर्नामेंट की सबसे सफल टीम बन गई है. वहीं, श्रीलंका ने 6 बार और पाकिस्तान ने दो बार एशिया कप का खिताब जीता है. इस बार एशिया कप दुबई में होना है, दुबई में ही भारत और पाकिस्तान के बीच 14 सितंबर को महामुकाबला खेला जाएगा. 

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भारत ने जीता था पहला एशिया कप (1984)

सबसे पहले 1984 में पहला एशिया कप खेला गया था जिसमें भारतीय टीम विजेता बनी थी. शाहजाह में एशिया कप का पहला संस्करण खेला गया था. पहले एशिया कप में विकेटकीपर-ओपनर सुरिंदर खन्ना का प्रदर्शन लाजवाब रहा. भारत ने खिताब जीतने के अपने सफ़र में श्रीलंका और पाकिस्तान को हराया था. 

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सुरंदर खन्ना का रहा था धमाकेदार परफॉर्मेंस 

सुरिंदर खन्ना ने टूर्नामेंट के दौरान भारत के बेहतरीन प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाई थी. भारत के उद्घाटन मैच में, उन्होंने गुलाम पारकर के साथ ओपनिंग बल्लेबाज़ी की और नाबाद 51 रनों की शानदार पारी खेलकर भारत को श्रीलंका पर 10 विकेट से जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई. पाकिस्तान के खिलाफ अगले मैच में, उन्होंने अपनी शानदार फॉर्म जारी रखी, बल्ले से 56 रन बनाए और विकेट के पीछे से दो स्टंपिंग करके अपनी विकेटकीपिंग से भी कमाल का परफॉर्मेंस किया था. पूरे टूर्नामेंट में, दिल्ली के इस खिलाड़ी ने बल्ले से तो कमाल दिखाया ही, साथ ही विकेटकीपर के तौर पर भी बेहतरीन प्रदर्शन किया था.  उन्होंने दोनों मैचों में "मैन ऑफ द मैच" का अवार्ड जीता और साथ ही अपने शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें "मैन ऑफ द सीरीज़" का भी अवार्ड मिला था. 

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अपने करियर में केवल 10 वनडे मैच ही खेल पाए

वैसे,  खन्ना का वनडे करियर, जिसकी शुरुआत 9 जून 1979 को एजबेस्टन में वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच से हुई थी, दुर्भाग्य से ज़्यादा दिन नहीं चला. उनका वनडे करियर सिर्फ़ 10 मैचों तक ही सीमित रहा,और इस प्रारूप में उन्होंने आखिरी मैच 12 अक्टूबर 1984 को पाकिस्तान के खिलाफ क्वेटा, पाकिस्तान के अयूब नेशनल स्टेडियम में खेला था.

सुरिंदर खन्ना ने 10 वनडे मैच में  22 की औसत से 176 रन बनाए और चार स्टंपिंग भी की. घरेलू क्रिकेट में दिल्ली के लिए सुरिंदर के रन बनाने का सिलसिला चलता रहा.  उन्होंने 106 प्रथम श्रेणी मैच खेले और 43 की औसत से 5,337 रन बनाए. हिमाचल के खिलाफ़ 1987-88 में उन्होंने नाबाद 220 रन की पारी खेली, जो उनका बेहतरीन प्रदर्शन है. 

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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और फिर खत्म हो गया करियर

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू मैदान पर खेले गए चार वनडे मैचों में वे असफल रहे, लेकिन फिर भी उन्हें पाकिस्तान दौरे के लिए टीम में बरकरार रखा गया. क्वेटा में पहले वनडे में मेजबान टीम ने निर्धारित 40 ओवरों में 7 विकेट पर 199 रन बनाए, सलामी बल्लेबाज़, खन्ना ने 37 गेंदों में 31 रनों की पारी खेली, लेकिन भारत 153 रनों पर ढेर हो गया, क्वेटा की पारी के बाद उन्होंने फॉर्म में वापसी की झलक दिखाई, लेकिन सियालकोट में अगले वनडे से पहले उन्हें हैमस्ट्रिंग की चोट लग गई और उनकी जगह किरमानी को टीम में शामिल किया गया. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मैच के दौरान ही दौरा रद्द कर दिया गया, इसके बाद खन्ना ने फिर कभी कोई इंटरनेशनल मैच नहीं खेल पाए.

रिटायरमेंट के बाद बने क्रिकेट विशेषज्ञ

अपनी रिटायरमेंट के बाद, खन्ना ऑल इंडिया रेडियो के लिए क्रिकेट विशेषज्ञ बन गए.  अपने बाद के दिनों में, खन्ना पीतमपुरा डीडीए स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स स्थित अपनी अकादमी (जहां छात्रों की आयु 4 से 35 साल तक हो सकती है) में कोचिंग देते थे. वे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) में उप महाप्रबंधक (खेल) के रूप में भी कार्यरत रहे और उन्होंने उनके लिए फुटबॉल और तीरंदाजी अकादमियां स्थापित करने में मदद की है. सेल ओपन गोल्फ टूर्नामेंट की शुरुआत का श्रेय भी उन्हीं को जाता है.

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