कर्नाटक के खिलाफ 2006 में दिल्ली के रणजी ट्रॉफी मैच के तीसरे दिन सुबह का माहौल अलग था. कर्नाटक के पहली पारी में 446 रन के जवाब में दिल्ली का स्कोर दूसरे दिन की समाप्ति पर 5 विकेट पर 103 रन था. टीम पर फॉलोऑन का संकट मंडरा रहा था. और तीसरे दिन विकेटकीपर पुनीत बिष्ट ड्रेसिंग रूम पहुंचे तो वहां सन्नाटा पसरा था. एक कोने में 17 वर्ष का विराट कोहली बैठा था जिसकी आंखें रोने से लाल थीं. बिष्ट यह देखकर सकते में आ गए लेकिन उन्हें अहसास हो गया कि इस लड़के के भीतर कोई तूफान उमड़ रहा है. कोहली के पिता प्रेम का कुछ घंटे पहले ही ब्रेन स्ट्रोक के कारण निधन हुआ था. इसके बावजूद विराट तीसरे दिन मैच खेलने पहुंचे थे. कोहली और बिष्ट अविजित बल्लेबाज थे, लेकिन कोहली पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.
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एक समय दिल्ली के विकेटकीपर रहे बिष्ट अब मेघालय के लिये खेलते हैं. उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा,‘आज तक मैं सोचता हूं कि उसके भीतर ऐसे समय में मैदान पर उतरने की हिम्मत कहां से आई. हम सब स्तब्ध थे और वह बल्लेबाजी के लिये तैयार हो रहा था.' उन्होंने कोहली के सौवें टेस्ट से पहले उस घटना को याद करते हुए कहा,‘उसके पिता का अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था और वह इसलिये आ गया कि वह नहीं चाहता था कि टीम को एक बल्लेबाज की कमी खले क्योंकि मैच में दिल्ली की हालत खराब थी.'सोलह साल पहले की वह घटना आज भी बिष्ट को याद है और यह भी कि कप्तान मिथुन मन्हास और तत्कालीन कोच चेतन चौहान ने विराट को घर लौटने की सलाह दी थी.
बिष्ट ने कहा,‘उस समय चेतन सर हमारे कोच थे. चेतन सर और मिथुन भाई दोनों ने विराट को घर लौटने को कहा था क्योंकि उन्हें लगा कि इतनी कम उम्र में उसके लिये इस सदमे को झेलना आसान नहीं होगा.' उन्होंने कहा,‘टीम में सभी की यही राय थी कि उसे अपने घर परिवार के पास लौट जाना चाहिये, लेकिन विराट कोहली अलग मिट्टी के बने हैं.'बिष्ट ने करीब एक दशक तक दिल्ली के लिये खेलने के बाद 96 प्रथम श्रेणी मैचों में 4378 रन बनाये हैं. इसके बावजूद युवा विराट कोहली के साथ 152 रन की वह साझेदारी उन्हें सबसे यादगार लगती है. बिष्ट ने उस मैच में 156 और कोहली ने 90 रन बनाये थे.
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उन्होंने कहा,‘विराट ने अपने दुख को भुलाकर जबर्दस्त दृढता दिखाई थी. उसने कुछ शानदार शॉट्स खेले और मैदान पर हमारी बहुत कम बातचीत हुई. वह आकर इतना ही कहता था कि लंबा खेलना है , आउट नहीं होना है. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं. मेरा दिल कहता था कि उसके सिर पर हाथ रखकर उसे तसल्ली दूं लेकिन दिमाग कहता था कि नहीं , हमें टीम को जिताने पर फोकस करना है.' बिष्ट ने कहा,‘इतने साल बाद भी विराट उसी 17 साल के लड़के जैसा है. उसमें कोई बदलाव नहीं आया.'
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