एमएस धोनी और युवराज सिंह टीम इंडिया की जीतों का हिस्सा रहे हैं (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
किसी भी क्रिकेटर को इंटरनेशनल लेवल पर पहुंचने के लिए घरेलू क्रिकेट में रनों का अंबार लगाना या जबर्दस्त विकेट झटकना आवश्यक होता है. वास्तव में घरेलू क्रिकेट ही वह सीढ़ी है, जो बड़े से बड़े क्रिकेट को अपनी पहचान बनाने का मौका देता है. इसी मौके की तलाश में ऋषभ पंत, प्रियंक पांचाल, समित गोहेल, कुलदीप यादव जैसे वर्तमान रणजी सीजन में धूम मचा रहे हैं. बल्लेबाजी में तो इस साल पांच तिहरे शतक लग चुके हैं, वहीं सेमीफाइनल राउंडअप भी तय हो चुका है. इनमें झारखंड की टीम जहां पहली बार सेमी में गई है, वहीं मुंबई, तमिलनाडु, गुजरात की टीमें अपने अनुभव के साथ पहुंची हैं. इन टीमों में ईशान किशन जैसे कई उभरते खिलाड़ी हैं, जो सीनियर टीम से खेलने का सपना संजोए हुए हैं, लेकिन इसके लिए इन्हें करिश्माई प्रदर्शन करना होगा. वैसे भी हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह इंटरनेशनल के साथ-साथ घरेलू टूर्नामेंट भी जीते, लेकिन टीम इंडिया के कई ऐसे धुरंधर रहे हैं, जो आज तक यह कमाल नहीं कर सके हैं.
'कैप्टन कूल' धोनी...
टीम इंडिया के सबसे सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को ही लें, चाहे वनडे वर्ल्ड कप हो या फिर टी-20 वर्ल्ड कप या फिर चैंपियन्स ट्रॉफी, आईसीसी का हर टूर्नामेंट देश को दिलाया है. इनके अलावा भी उन्होंने टीम इंडिया को अपनी कप्तानी में कई अविस्मरणीय सफलताएं दिलाई हैं. उन्होंने अपनी कप्तानी में टीम इंडिया को टेस्ट में नंबर वन बनाया, तो वहीं साल 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप और 2011 का वनडे वर्ल्ड कप भी टीम को दिलाया, लेकिन धोनी को बस एक बात का मलाल है कि वह अपनी टीम झारखंड को अपने रहते कभी भी रणजी ट्रॉफी नहीं जितवा पाए. हालांकि वर्तमान में वह टीम के मेंटर हैं और उनकी टीम पहली बार सेमीफाइनल में पहुंच गई है. एमएस धोनी ने बिहार की ओर से घरेलू क्रिकेट खेलना शुरू किया था (फाइल फोटो)
धोनी के घरेलू करियर पर नजर डालें, तो उन्होंने इसकी शुरुआत बिहार की ओर से साल 2000 में की थी. उन्होंने पहला रणजी मैच जमशेदपुर में असम के खिलाफ खेला था. उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 131 मैच खेले और 7038 रन बनाए, जिसमें नौ शतक जड़े. उनके इसी प्रदर्शन की वजह से उन्हें 2003-2004 में टीम इंडिया की कैप मिली थी.
'कलाई मास्टर' मोहम्मद अजहरुद्दीन...
देश के तीसरे सबसे सफल कप्तान और कलाई के जादूगर कहे जाने वाले मोहम्मद अजहरुद्दीन ने टीम इंडिया को कई उपलब्धियां दिलाईं. लेग साइड में शॉट खेलने की मास्टरी से पाकिस्तान के जहीर अब्बास और ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल की याद दिलाने वाले अजहर रणजी में हैदराबाद की ओर से खलते थे, लेकिन उनके रहते यह कभी भी रणजी ट्रॉफी नहीं जीत पाई. अजहरुद्दीन ने 1981 में हैदराबाद की तरफ से रणजी में डेब्यू किया था.
'वेरी वेरी स्पेशल' लक्ष्मण...
लक्ष्मण और अजहर में तीन समानताएं हैं. पहली दोनों हैदराबाद टीम से रणजी खेलते थे, दूसरी दोनों ही कलाई के उस्ताद रहे और तीसरी दोनों के ही रहते हैदराबाद टीम रणजी ट्रॉफी नहीं जीत पाई. वीवीएस लक्ष्मण ने 1993 में हैदराबाद की ओर से रणजी डेब्यू किया था और वह साल 2012 तक इसका हिस्सा रहे. मतलब उन्होंने भी लगभग 19 साल रणजी खेला, लेकिन उनके रहते टीम को यह खिताब नहीं मिल पाया.
लक्ष्मण ने 1996 में टीम इंडिया के लिए डेब्यू किया था. लक्ष्मण की कोलकाता में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली गई पारी (281 रन) को भला कौन भूल सकता है. इसके अलावा भी उन्होंने कई अहम पारियां खेलकर टीम इंडिया को टेस्ट मैचों और सीरीज में जीत दिलाई. घरेलू मैचों में भी उनका बल्ला खूब चला और उन्होंने 267 फर्स्ट क्लास मैचों में 19730 रन बनाए, जिनमें 55 शतक ठोके, लेकिन वह ऐसी कोई पारी नहीं खेल पाए कि टीम रणजी चैपिंयन बन जाए.
फिरकी के उस्ताद हरभजन सिंह...
टीम इंडिया से बाहर चल रहे हरभजन सिंह ने टीम इंडिया को वर्ल्ड कप दिलाने में अहम योगदान दिया था. 36 साल के हो चुके इस ऑफ स्पिनर की कप्तानी में पंजाब टीम इस सीजन में कुछ खास नहीं कर पाई और खिताबी दौड़ से पहले ही बाहर हो चुकी है. भज्जी ने 1997 में पंजाब टीम से रणजी करियर की शुरुआत की थी. हरभजन सिंह आईपीएल में मुंबई इंडियन्स से खेलते हैं (फाइल फोटो)
रणजी खेलते हुए उनको लगभग 19 साल हो चुके हैं. इस दौरान उन्होंने पंजाब टीम की कप्तानी भी की है, लेकिन टर्न लेते विकेटों पर भी पंजाब को चैंपियन नहीं बना पाए और उनका यह सपना अधूरा ही है. उनकी टीम चार बार इस टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पहुंची है, लेकिन खिताब दूर रह गया. भज्जी ने टीम इंडिया के लिए 103 टेस्ट मैचों में 417 विकेट चटकाए हैं, वहीं 196 फर्स्ट क्लास मैचों में 777 विकेट अपने नाम कर चुके हैं. इतनी सफलता के बावजूद घरेलू खिताब नहीं जीत पाए.
विस्फोटक युवी...
भज्जी और युवराज सिंह में कई समानताएं हैं. दोनों पंजाब रणजी टीम से खेलते हैं. दोनों के ही रहते टीम यह खिताब नहीं जीती है. 2007 की टी-20 वर्ल्ड कप विजेता और 2011 की वनडे वर्ल्ड कप विजेता टीम इंडिया का हिस्सा भी दोनों रहे. इन दिनों युवराज सिंह खेल से ज्यादा अपनी शादी को लेकर चर्चा में हैं. पंजाब की ओर से 1997 में ही रणजी डेब्यू करने वाले युवी ने फर्स्ट क्लास मैचों में अब तक 133 मैचों में 8804 रन बनाए हैं. इंटरनेशनल लेवल पर भी उन्होंने कुल मिलाकर 11000 से अधिक रन बनाए हैं, लेकिन उनके रहते भी पंजाब टीम रणजी ट्रॉफी नहीं जीत पाई. मैदान पर बेहद आक्रामक नजर आने वाले युवराज सिंह भी पंजाब को रणजी नहीं जिता पाए हैं (फाइल फोटो)
इस प्रकार हम देखें, तो युवराज सिंह, हरभजन सिंह, वीवीएस लक्ष्मण जैसे सितारों के साथ ही सफलतम कप्तानों में शामिल धोनी और मोहम्मद अजहरुद्दीन भी रणजी नहीं जीत पाए हैं. जबकि दोनों ने टीम इंडिया को कई बार गौरवान्वित किया है.
'कैप्टन कूल' धोनी...
टीम इंडिया के सबसे सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को ही लें, चाहे वनडे वर्ल्ड कप हो या फिर टी-20 वर्ल्ड कप या फिर चैंपियन्स ट्रॉफी, आईसीसी का हर टूर्नामेंट देश को दिलाया है. इनके अलावा भी उन्होंने टीम इंडिया को अपनी कप्तानी में कई अविस्मरणीय सफलताएं दिलाई हैं. उन्होंने अपनी कप्तानी में टीम इंडिया को टेस्ट में नंबर वन बनाया, तो वहीं साल 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप और 2011 का वनडे वर्ल्ड कप भी टीम को दिलाया, लेकिन धोनी को बस एक बात का मलाल है कि वह अपनी टीम झारखंड को अपने रहते कभी भी रणजी ट्रॉफी नहीं जितवा पाए. हालांकि वर्तमान में वह टीम के मेंटर हैं और उनकी टीम पहली बार सेमीफाइनल में पहुंच गई है.
धोनी के घरेलू करियर पर नजर डालें, तो उन्होंने इसकी शुरुआत बिहार की ओर से साल 2000 में की थी. उन्होंने पहला रणजी मैच जमशेदपुर में असम के खिलाफ खेला था. उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 131 मैच खेले और 7038 रन बनाए, जिसमें नौ शतक जड़े. उनके इसी प्रदर्शन की वजह से उन्हें 2003-2004 में टीम इंडिया की कैप मिली थी.
'कलाई मास्टर' मोहम्मद अजहरुद्दीन...
देश के तीसरे सबसे सफल कप्तान और कलाई के जादूगर कहे जाने वाले मोहम्मद अजहरुद्दीन ने टीम इंडिया को कई उपलब्धियां दिलाईं. लेग साइड में शॉट खेलने की मास्टरी से पाकिस्तान के जहीर अब्बास और ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल की याद दिलाने वाले अजहर रणजी में हैदराबाद की ओर से खलते थे, लेकिन उनके रहते यह कभी भी रणजी ट्रॉफी नहीं जीत पाई. अजहरुद्दीन ने 1981 में हैदराबाद की तरफ से रणजी में डेब्यू किया था.
मोहम्मद अजहरुद्दीन भारत के तीसरे सबसे सफलत कप्तान हैं (फाइल फोटो)
उन्होंने साल 2000 तक रणजी क्रिकेट खेला. मतलब 19 साल के करियर में भी उनकी घरेलू टीम को ट्रॉफी जीतने में सफलता नहीं मिली. इंटरनेशनल लेवल पर उन्होंने 99 टेस्ट मैच खेले और 45.03 के औसत से 6215 रन बनाए, जिनमें 22 शतक ठोके. मैच फिक्सिंग विवाद के चलते साल 2000 में उनका करियर थम गया था.'वेरी वेरी स्पेशल' लक्ष्मण...
लक्ष्मण और अजहर में तीन समानताएं हैं. पहली दोनों हैदराबाद टीम से रणजी खेलते थे, दूसरी दोनों ही कलाई के उस्ताद रहे और तीसरी दोनों के ही रहते हैदराबाद टीम रणजी ट्रॉफी नहीं जीत पाई. वीवीएस लक्ष्मण ने 1993 में हैदराबाद की ओर से रणजी डेब्यू किया था और वह साल 2012 तक इसका हिस्सा रहे. मतलब उन्होंने भी लगभग 19 साल रणजी खेला, लेकिन उनके रहते टीम को यह खिताब नहीं मिल पाया.
टेस्ट मैचों में वीवीएस लक्ष्मण ने कई यादगार पारियां खेली हैं (फाइल फोटो)
लक्ष्मण ने 1996 में टीम इंडिया के लिए डेब्यू किया था. लक्ष्मण की कोलकाता में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली गई पारी (281 रन) को भला कौन भूल सकता है. इसके अलावा भी उन्होंने कई अहम पारियां खेलकर टीम इंडिया को टेस्ट मैचों और सीरीज में जीत दिलाई. घरेलू मैचों में भी उनका बल्ला खूब चला और उन्होंने 267 फर्स्ट क्लास मैचों में 19730 रन बनाए, जिनमें 55 शतक ठोके, लेकिन वह ऐसी कोई पारी नहीं खेल पाए कि टीम रणजी चैपिंयन बन जाए.
फिरकी के उस्ताद हरभजन सिंह...
टीम इंडिया से बाहर चल रहे हरभजन सिंह ने टीम इंडिया को वर्ल्ड कप दिलाने में अहम योगदान दिया था. 36 साल के हो चुके इस ऑफ स्पिनर की कप्तानी में पंजाब टीम इस सीजन में कुछ खास नहीं कर पाई और खिताबी दौड़ से पहले ही बाहर हो चुकी है. भज्जी ने 1997 में पंजाब टीम से रणजी करियर की शुरुआत की थी.
रणजी खेलते हुए उनको लगभग 19 साल हो चुके हैं. इस दौरान उन्होंने पंजाब टीम की कप्तानी भी की है, लेकिन टर्न लेते विकेटों पर भी पंजाब को चैंपियन नहीं बना पाए और उनका यह सपना अधूरा ही है. उनकी टीम चार बार इस टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पहुंची है, लेकिन खिताब दूर रह गया. भज्जी ने टीम इंडिया के लिए 103 टेस्ट मैचों में 417 विकेट चटकाए हैं, वहीं 196 फर्स्ट क्लास मैचों में 777 विकेट अपने नाम कर चुके हैं. इतनी सफलता के बावजूद घरेलू खिताब नहीं जीत पाए.
विस्फोटक युवी...
भज्जी और युवराज सिंह में कई समानताएं हैं. दोनों पंजाब रणजी टीम से खेलते हैं. दोनों के ही रहते टीम यह खिताब नहीं जीती है. 2007 की टी-20 वर्ल्ड कप विजेता और 2011 की वनडे वर्ल्ड कप विजेता टीम इंडिया का हिस्सा भी दोनों रहे. इन दिनों युवराज सिंह खेल से ज्यादा अपनी शादी को लेकर चर्चा में हैं. पंजाब की ओर से 1997 में ही रणजी डेब्यू करने वाले युवी ने फर्स्ट क्लास मैचों में अब तक 133 मैचों में 8804 रन बनाए हैं. इंटरनेशनल लेवल पर भी उन्होंने कुल मिलाकर 11000 से अधिक रन बनाए हैं, लेकिन उनके रहते भी पंजाब टीम रणजी ट्रॉफी नहीं जीत पाई.
इस प्रकार हम देखें, तो युवराज सिंह, हरभजन सिंह, वीवीएस लक्ष्मण जैसे सितारों के साथ ही सफलतम कप्तानों में शामिल धोनी और मोहम्मद अजहरुद्दीन भी रणजी नहीं जीत पाए हैं. जबकि दोनों ने टीम इंडिया को कई बार गौरवान्वित किया है.
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