नई दिल्ली:
जैसे भारत के शुरुआती बल्लेबाज दूसरी पारी में लगभग हमेशा नाकाम होते रहे थे, यहां भी हुए। टीम 183 रन पर अपने छह विकेट गंवा चुकी थी। ऐसे समय में, जब हार निश्चित लग रही थी, तेंदुलकर ने कुछ और ही ठान रखा था। टीम के दिग्गज बल्लेबाज पैवेलियन लौट चुके थे, और तब सचिन ने 119 रनों की बेहतरीन नाबाद पारी खेली। पहले उन्हें कपिल देव का साथ मिला, जिनके साथ उन्होंने छठे विकेट के लिए 56 रन जोड़े, और उसके बाद मनोज प्रभाकर (नाबाद 67) के साथ मिलकर सचिन ने सातवें विकेट के लिए 160 रन जोड़कर टेस्ट मैच ड्रॉ करवाया।
इंग्लैंड के दिग्गज खिलाड़ी भी इस खिलाड़ी के जज़्बे को देखकर हैरत में थे। सचिन को पहली बार 'मैन ऑफ द मैच' के पुरस्कार से नवाज़ा गया। इस पहले शतक के बाद की सारी कहानियां और उनकी उपलब्धियां तो आपके दिमाग सजी-संवरी हैं ही। पहले शतक से शुरू हुआ शतकों का काफिला उनके 100 अंतरराष्ट्रीय शतक जड़ने के बाद थमा।
सचिन की इस पारी के गवाह इंग्लैंड और विश्व क्रिकेट के बेहतरीन बल्लेबाजों में शामिल ग्राहम गूच, माइकल एथर्टन और डेविड गॉवर भी थे, जिन्होंने फील्डिंग करते हुए डेवन मैल्कम, एंगस फ्रेज़र और क्रिस लुइस के सामने सचिन को अदम्य साहस और ज़िद से टिके देखा। मैल्कम और फ्रेज़र की गेंदबाजी इंग्लैंड की स्विंग लेती पिचों पर किसी भी बल्लेबाज़ की सबसे बड़ी परीक्षा मानी जाती थी, लेकिन सचिन ने वह कठिन परीक्षा पास की और उसके बाद तो उनके सामने सारे गेंदबाज 'असफल' होते ही रहे।
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के टेस्ट शतकों में से ज्यादातर उनके प्रशंसकों की यादों में बसे हैं, लेकिन पहला शतक फिर भी पहला ही होता है... इसलिए 25 साल पहले (14 अगस्त, 1990 को) सचिन का इंग्लैंड की धरती पर बेहद मुश्किल हालात में बनाया गया पहला शतक आज तक हर किसी को याद है। चेहरे पर स्कूली बच्चों जैसी मासूमियत और जोश लिए सचिन ने मैनचेस्टर में अपनी बेदाग बल्लेबाजी से दुनिया को बता दिया था कि आने वाला समय बस उनका है।
भारत और इंग्लैंड के बीच हुई सीरीज़ के उस दूसरे टेस्ट मैच में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया था और तीन खिलाड़ियों के शतकों के दम पर 519 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। जवाब में भारतीय टीम ने अपनी पहली पारी में सिमटने से पहले 432 रन का स्कोर खड़ा किया। सचिन ने इस पारी में भी 68 रन बनाए थे। इसके बाद इंग्लैंड ने दूसरी पारी 320 रन पर घोषित कर दी, और अब भारत के सामने 408 रनों का विजय लक्ष्य था। खैर, इसके बाद ही सचिन का समय जैसे शुरू होना था, क्योंकि सिर्फ आखिरी दिन का खेल बाकी था।
भारत और इंग्लैंड के बीच हुई सीरीज़ के उस दूसरे टेस्ट मैच में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया था और तीन खिलाड़ियों के शतकों के दम पर 519 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। जवाब में भारतीय टीम ने अपनी पहली पारी में सिमटने से पहले 432 रन का स्कोर खड़ा किया। सचिन ने इस पारी में भी 68 रन बनाए थे। इसके बाद इंग्लैंड ने दूसरी पारी 320 रन पर घोषित कर दी, और अब भारत के सामने 408 रनों का विजय लक्ष्य था। खैर, इसके बाद ही सचिन का समय जैसे शुरू होना था, क्योंकि सिर्फ आखिरी दिन का खेल बाकी था।
जैसे भारत के शुरुआती बल्लेबाज दूसरी पारी में लगभग हमेशा नाकाम होते रहे थे, यहां भी हुए। टीम 183 रन पर अपने छह विकेट गंवा चुकी थी। ऐसे समय में, जब हार निश्चित लग रही थी, तेंदुलकर ने कुछ और ही ठान रखा था। टीम के दिग्गज बल्लेबाज पैवेलियन लौट चुके थे, और तब सचिन ने 119 रनों की बेहतरीन नाबाद पारी खेली। पहले उन्हें कपिल देव का साथ मिला, जिनके साथ उन्होंने छठे विकेट के लिए 56 रन जोड़े, और उसके बाद मनोज प्रभाकर (नाबाद 67) के साथ मिलकर सचिन ने सातवें विकेट के लिए 160 रन जोड़कर टेस्ट मैच ड्रॉ करवाया।
इंग्लैंड के दिग्गज खिलाड़ी भी इस खिलाड़ी के जज़्बे को देखकर हैरत में थे। सचिन को पहली बार 'मैन ऑफ द मैच' के पुरस्कार से नवाज़ा गया। इस पहले शतक के बाद की सारी कहानियां और उनकी उपलब्धियां तो आपके दिमाग सजी-संवरी हैं ही। पहले शतक से शुरू हुआ शतकों का काफिला उनके 100 अंतरराष्ट्रीय शतक जड़ने के बाद थमा।
सचिन की इस पारी के गवाह इंग्लैंड और विश्व क्रिकेट के बेहतरीन बल्लेबाजों में शामिल ग्राहम गूच, माइकल एथर्टन और डेविड गॉवर भी थे, जिन्होंने फील्डिंग करते हुए डेवन मैल्कम, एंगस फ्रेज़र और क्रिस लुइस के सामने सचिन को अदम्य साहस और ज़िद से टिके देखा। मैल्कम और फ्रेज़र की गेंदबाजी इंग्लैंड की स्विंग लेती पिचों पर किसी भी बल्लेबाज़ की सबसे बड़ी परीक्षा मानी जाती थी, लेकिन सचिन ने वह कठिन परीक्षा पास की और उसके बाद तो उनके सामने सारे गेंदबाज 'असफल' होते ही रहे।
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