मुंबई में आरे में रात के अंधेरे में पुलिस सुरक्षा के बीच पेड़ों को काटने से रोकने की कोशिश करने के कारण 29 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. अब यह सभी जमानत पर बाहर हैं. गिरफ्तार किए गए लोगों में छात्र, आदिवासी महिलाएं, लॉ स्टूडेंट, स्टार्टअप शुरू करने वाले युवक भी शामिल थे. पुलिस ने इन सभी के साथ अपराधियों की तरह बर्ताव किया. कई लोगों के घर वाले अब डरे हुए हैं.
टाटा इंस्टिट्यूट की छात्रा मीमांसा सिंह ने कहा कि आज हमारी लॉ एंड डेवलपमेंट विषय पर परीक्षा है. इसमें भी शुरुआत से फारेस्ट राइट, ट्राइबल राइट के बारे में पढ़ाया गया है. विकास और डिस्प्लेसमेंट के बारे में भी पढ़ाया गया है.
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस में पढ़ने वाले कपिलदीप अग्रवाल और मीमांसा सिंह सोमवार को वन अधिकार और आदिवासी अधिकार जैसे विषयों पर परीक्षा दे रहे हैं. जिन विषयों पर यह पढ़ाई कर रहे हैं उसी के तहत जब यह चार अक्टूबर को आरे में रात के समय पेड़ों को बचाने पहुंचे तो ना केवल वहां लाठी चार्ज किया गया, बल्कि इन्हें गिरफ्तार भी किया गया. कपिलदीप अग्रवाल आरे मुद्दे पर रिसर्च कर रहे हैं. लेकिन इन्होंने कभी नहीं सोचा था कि जिस आरे कॉलोनी पर उनकी पढ़ाई जारी है. उसे ही बचाने की कोशिश पर उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा. दोनों विद्यार्थी अब जमानत पर बाहर हैं. इन्हें अब तक नहीं पता आखिर इन्होंने क्या गलत किया और इन पर गैर जमानती धाराएं क्यों लगाईं गई.
श्रुति नायर मुंबई के लोअर परेल में डिज़ाइन स्टूडियो की एक स्टार्ट अप चलाती हैं. पर्यावरण और पशु प्रेमी होने के कारण यह अलग-अलग जगहों पर जानवरों को रेस्क्यू करती हैं और अपने दफ्तर में उनकी देखभाल भी करती हैं. वे पिछले कुछ महीनों से आरे में पेड़ों को बचाने लगातार शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी करती आई हैं. लेकिन चार अक्टूबर को जब वे अपने सहकर्मी के साथ आरे में पेड़ों को बचाने के लिए पहुंचीं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. आरोप है कि इन लोगों के साथ पुलिस ने अपराधियों जैसा बर्ताव किया. अब घर वालों को इनकी चिंता होती है. इन्हें अब ऐसे मुद्दों से दूर रहने की सलाह भी दी जाती है.
चार अक्टूबर को आरे कॉलोनी में पेड़ों को काटने की शुरुआत होने के बाद से ही वहां पर पुलिस का पहरा बढ़ गया है. पहले के तीन दिनों तक वहां रहने वाले आदिवासियों को भी बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा था. लोग पहचान पत्र लेकर चलने को मजबूर थे.
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जमानत पर बाहर आए हुए लोगों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी आपबीती सुनाई. कई लोगों को हिरासत में लिया गया था, जिन्होंने हिंसा के किस्सों बयां किए.
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अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है जहां इस पर अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को होने वाली है. लेकिन मामले में गिरफ्तार 29 लोगों को 15 दिनों में एक बार पुलिस स्टेशन का चक्कर लगाना पड़ता है. ऐसे में यह सभी इस मामले में इनके खिलाफ दाखिल मामलों को ख़त्म करने की मांग करते दिख रहे हैं.
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