
- ईरान-इजरायल युद्ध से अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में अस्थिरता बढ़ी है.
- कच्चे तेल की कीमतें 77 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गई हैं.
- भारत अपनी जरूरत का 80% कच्चा तेल आयात करता है.
ईरान-इजरायल के बीच युद्ध से अंतराष्ट्रीय तेल बाजार में अनिश्चितता बढ़ती जा रही है. शुक्रवार को अंतराष्ट्रीय बाजार में ट्रेडिंग के दौरान कच्चा तेल की कीमत में उथल-पुथल जारी रही. कच्चे तेल की कीमत बढ़कर ट्रेडिंग के दौरान एक समय 77 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चली गयी. यहां भारत के लिए चुनौती यह है कि वह अपनी जरूरत का करीब 80% कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है. ईरान-इजरायल युद्ध अगर लंबा चलेगा तो इसका भारत के ऑयल इंपोर्ट बिल पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.
मई 2025 में भारत ने जिस रेट पर कच्चे तेल का आयात किया था वह 64 डॉलर प्रति बैरल था. लेकिन 19 जून को यह $13.68 बढ़कर 77.72 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया. यानी करीब 21.36% महंगा!
तेल अर्थशास्त्री किरीट पारिख ने एनडीटीवी से कहा, "अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल अगर $1 प्रति barrel महंगा होता है, तो इसकी वजह से भारत सरकार का सालाना ऑयल इंपोर्ट बिल करीब 14,000 करोड़ तक बढ़ जाता है. अगर तेल की कीमत 76 डॉलर के आसपास इस साल बनी रहती है तो मौजूदा साल में भारत का तेल आयात पर खर्च करीब 1,70,000 करोड़ रुपये तक बढ़ जाएगा".
अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल बाजार में बढ़ती अनिश्चितता के बीच, केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी पिछले एक हफ्ते में बड़ी सरकारी तेल कंपनियों के सीएमडी के साथ कई दौर की बैठक कर चुके हैं. जाहिर है, पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और गैस दोनों की कीमतों में उथल-पुथल बढ़ेगी जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर, विशेषकर ऑयल इम्पोर्ट बिल पर सीधा असर पड़ेगा.
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