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This Article is From May 25, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : यूपी के कुछ हिस्से क्यों उबल रहे हैं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 25, 2017 23:58 pm IST
    • Published On मई 25, 2017 23:57 pm IST
    • Last Updated On मई 25, 2017 23:58 pm IST
हमारी आज की राजनीति बेवजह आक्रामक होती जा रही है. नेताओं की भाषा में जो आक्रामकता है वही एंकर की हो गई है, वही अब सड़कों पर लोगों की होती जा रही है. तरह तरह की फिज़ूल की धार्मिक और जातीय सेनाओं के भरोसे राजनीति अपनी आकांक्षा ज़ाहिर करेगी तो फिर औपचारिक दलों का क्या होगा, उन्हें यह भी सोच लेना चाहिए.

आज कल हर दल में ऐसे बड़े नेता मिल जाएंगे जिनकी अपनी फिज़ूल की सेना है और ऐसी सेनाएं मिल जाएंगी जिन्हें हर दल के कई नेता अपना आशीर्वाद देते हैं. इतिहास के नायकों के नाम पर ऐसी यात्राएं निकलती हैं और लोकतंत्र को सामंतवाद का अड्डा बनाया जा रहा है. इन दिनों कहीं से भी ऐसी शोभा यात्राओं के निकलने की खबर आ जाती है जिनके बारे में पहले सुना तक नहीं गया. इन यात्राओं में शामिल होकर सांसद या विधायक या होने वाला सांसद या विधायक अपनी सामाजिक और धार्मिक पहचान कायम करता है. कई बार हमें यह सब इतना सामान्य लगता है कि हम परवाह ही नहीं करते कि जात के नाम पर सेनाएं, धर्म के नाम पर सेनाएं, ऐतिहासिक नाययकों के नाम पर सेनाएं आपके सामाजिक जीवन में ग़लत हस्तक्षेप कर रही हैं. टकराव पैदा कर रही हैं. इतिहास का इतना ही शौक है तो पड़ोस के किसी कॉलेज में इतिहास विषय में एडमिशन लीजिए, मूर्ति बनाकर इतिहास का सम्मान करने का भ्रम मत पालिये. लोगों को पांच रुपये दवा के नहीं मिलते हैं और हम इतिहास के सम्मान के नाम पर हज़ारों करोड़ की मूर्तियां बनाते हैं और शोभा यात्राएं निकालते हैं. इनके नाम पर राजनीति आपको मूर्ख बना रही है, इतिहास नहीं पढ़ा रही है.

प्रवचन देने की प्रेरणा आजकल के नेताओं के भाषण से ही मिली है जो राजनीति की बात कम, नैतिक शिक्षा टाइप के भाषण ज़्यादा देने लगे हैं. अगर सरलीकरण करना हो तो कह सकते हैं कि यूपी बेकाबू हो गया है. नए मुख्यमंत्री योगी से संभल नहीं रहा है. मीडिया के जिस हिस्से में उनके दिन रात जग कर आधी रात को मीटिंग कर फैसले लेने की खबरें आ रही थीं वहां भी सरलीकरण शुरू हो गया होगा. नई सरकार के बाद ज़रूर कुछ घटनाएं ऐसी हुई हैं जिससे संकेत अच्छा नहीं जा रहा है मगर यूपी के कई हिस्सों में शांति भी है और ठीक ठाक ही चल रहा है. हमने यह तय कर लिया था कि फांसी की सज़ा देंगे तो बलात्कार की घटना कम हो जाएगी. साफ और सख्त संदेश जाएगा. लेकिन नहीं हुआ. इसके लिए दोषी फांसी की सज़ा नहीं है, दोषी सरकार भी नहीं है, नैतिक ज़िम्मेदारी ज़रूर बनती है उसकी, लेकिन कुछ तो है, हम इस समस्या की बुनियाद पर बात नहीं करना चाहते. ग्रेटर नोएडा में जेवर एक जगह है युमना एक्सप्रेस वे के पास. वहां बुधवार रात जो घटना हुई है वो सरकार से सवाल तो पूछती है, समाज से भी पूछती है.

साबौता गांव के पास यमुना एक्सप्रेस वे पर हथियारबंद छह गुंडों ने एक कार रोक ली. घटना रात डेढ़ से ढाई के बीच हुई है. इस कार में आठ लोग थे जो जेवर से बुलंदशहर जा रहे थे. लूटपाट का परिवार के मुखिया शकील कुरैशी ने विरोध किया तो उन्हें गोली मार दी. पहले गुंडे शकील के बच्चों को गोली मार रहे थे लेकिन जब शकील ने मिन्नत की तो बच्चों को छोड़ दिया और शकील को गोली मार दी. महिलाओं के टुपट्टों से पुरुषों को बांध कर उन्हें उल्टा लटका दिया. फिर चारों महिलाओं को उतार कर खेत में ले गए और गैंग रेप किया. शकील और उनका परिवार इतनी रात को यात्रा इसलिए कर रहा था कि उनके किसी रिश्तेदार की डिलिवरी होनी थी. जच्चा और बच्चा दोनों ख़तरे में थे. इसलिए पूरा परिवार भाग कर उनकी मदद के लिए जा रहा था. पुलिस घटना के एक घंटे बाद पहुंची. एक घंटे के भीतर अपराधियों ने किसी और परिवार की ज़िंदगी बचाने निकले एक परिवार की ज़िंदगी तबाह कर दी.

31 जुलाई 2016 के रोज़ ढाई बजे तड़के बुलंदशहर ज़िले में दिल्ली कानपुर हाईवे पर ऐसी ही घटना हुई थी. एक परिवार नोएडा से शाहजहांपुर के लिए निकला क्योंकि उसे एक अंत्येष्टि में शामिल होना था. उस कार में पति पत्नी, दो बेटियां और दो पुरुष रिश्तेदार सवार थे. पांच छह डाकुओं ने कार रोक ली. 45 साल की महिला और 15 साल की महिला को कार से उतार कर ले गए और उनके साथ बलात्कार किया. इस दौरान बाकी परिवारवालों को बंदूक की नोक पर बंधक बनाए रखा.

उस समय कई चैनलों ने कितना सुरक्षित है यूपी का हाईवे टाइप कार्यक्रम किया. दबाव भी बना और सुरक्षा के इंतज़ाम भी किये ही गए होंगे. तब नेताओं ने कहा था कि यूपी में गुंडा राज है. राज तो बदल गया मगर गुंडे नहीं बदले हैं. अपराधी 24 घंटे के अंदर पकड़े गए थे मगर अपराध की प्रवृत्ति नहीं थमी है. जब एक्सप्रेस वे और हाईवे सुरक्षित नहीं होंगे तो रात बिरात आपात स्थिति में जाने वाले परिवारों के साथ क्या होगा, इसकी गारंटी कौन लेगा. यह भी सही नहीं है कि हाईवे पर पुलिस की कार नहीं होती है. होती है. फिर भी घटनाएं होती हैं. हाइवे पुलिस देर से पहुंचती है.

अपराध की घटना पर राजनीति से अपराध पर कोई असर नहीं पड़ता है. जिस राज्य में सरकार बनते ही पुलिस अधिकारियों के पीटने की खबर आने लगे उस राज्य में अपराधियों का मनोबल टूटने में थोड़ा तो वक्त लग सकता है. हालांकि अब अधिकारियों के पीटने की घटनाएं बंद हो गईं हैं लेकिन उत्तर प्रदेश का राजनीतिक और सामाजिक चरित्र रातों रात तो नहीं बदल सकता है. कैसे बदलना चाहिए इस पर ज़रूर बात कीजिए. मुराबादबाद में भाजपा के नगर अध्यक्ष हैं, उन्हें गिरफ्तार किया गया है. क्यों किया गया है क्योंकि नगर अध्यक्ष जी किसी की शिकायत लेकर थाने गए, शिकायत ले ली गई, मगर जब कार्रवाई का आश्वासन मिला तो भाजपा नेता असंतुष्ट हो गए. आरोप है कि नेता जी ने ठाकुरद्वारा थाने में तैनात दारोगा से हाथापाई की, इस मारपीट में दारोगा जी को चोटें आईं हैं, जिसका मेडिकल करा लिया गया है. इंस्पेक्टर की कुर्सी के बराबर बैठकर यह कहते सुने गए हैं कि दारोगा को जूते मारेंगे, थाने के बाहर पुलिस की पिटाई होगी, और जब पिटाई होगी तो देखते हैं कौन मंत्री बचाने आते हैं. इतने प्रतिभाशाली नगर अध्यक्ष के लिए बढ़िया स्क्रिप्ट न लिखने के आरोप में गीतकार जावेद अख्तर को गिरफ्तार कर लेना चाहिए. ख़ैर, पुलिस को सुधारने के नगर अध्यक्ष के इस महान कार्य में मदद के लिए भाजपा ज़िलाध्यक्ष भी आ गए. जब हमारे संवाददाता अनवर ने सीओ यानी क्षेत्राधिकारी से बात की तो उनसे राजनीतिक दल का नाम भी नहीं लिया गया. कहते रहे किसी राजनीतिक दल ने शिकायत की थी. हम उनका डर समझते हैं, उनके व्यावहारिक होने का सम्मान करते हैं, एक बयान के चलते ट्रांसफर झेलो और पता नहीं क्या झेलो, उचित नहीं लगता है. आप वीडियो के ज़रिये कुछ अंदाज़ा कीजिए कि वहां क्या हुआ होगा, एक बीप साउंड सुनाई देगी, इसका मतलब है उस जगह पर ऐसी गालियां दी गईं हैं जिसे हम टीवी पर नहीं सुना सकते.

यह बात शोध का विषय है कि सरकार बीजेपी की है फिर भी नगर अध्यक्ष को इतने लोगों के साथ एफआईआर के लिए क्यों जाना पड़ा. अगर उनकी ये स्थिति है तो फिर देश भर के थानों को लेकर बहस कीजिए जहां एफआईआर कराना भी एक झमेले से कम नहीं है. फर्जी एफआईआर तो अलग विषय है. नगर अध्यक्ष को मारपीट के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया लेकिन थाने से ही ज़मानत मिल गई. नगर अध्यक्ष जी, सविनय निवेदन है कि गुस्से को काबू में रखें. दारोगा अमित शर्मा के साथ जो हुआ उसके लिए खेद व्यक्त करें. रही बात कानून की तो सबको पता है यह अपना काम करता है.

मुरादाबाद के आरटीओ कार्यालय के बाहर 9 मई को बीजेपी और बंजरंग दल के लोग आपस में इस बात को लेकर उलझ गए कि फिटनेस चेकिंग के लिए आने वाली गाड़ियों के लिए मेडिकल किट कौन बेचेगा. इस बात के लिए दोनों पक्षों में तलवारबाज़ी का भी प्रदर्शन हुआ. भारतीय संस्कृति के इन प्रतीकों का इस्तमाल सिर्फ इतिहास को लेकर डराने के काम में ही नहीं, मेडिकल किट बेचने के काम में भी लाया जा सकता है, यह ज्ञान मुझे इतिहास की कक्षा में नहीं बल्कि इस वीडियो फुटेज से प्राप्त हुआ है. लाठी डंडे जैसे पारंपरिक हथियारों का भी इस्तमाल हुआ. पत्थर भी चले हैं मगर यह ज्ञात नहीं हुआ कि पत्थर चलाने की प्रेरणा कश्मीर से मिली है या लोकल ही किसी से मिल गई है. और हां, 7 राउंड गोली भी चली है. इसका मतलब दोनों पक्ष पारंपरिक के साथ साथ आधुनिक युद्ध कौशल में भी दक्ष रहे होंगे. सोचिये शौर्य का यह प्रदर्शन भारी वाहनों में मेडिकल किट लगाने के ठेके को लेकर हुआ है. राष्ट्र निर्माण में ठेके का रोल कितना महत्वपूर्ण है आप समझ रहे होंगे. इसके बाद आज़ाद भारत की पुलिस दल बल के साथ पहुंची तब तक लड़ने वाले भाग चुके थे. इस मामले में गिरफ्तारी भी हुई है. बजरंग दल और भाजपा भी आपस में गोली बारी कर सकते हैं इसकी कल्पना अशोक वाजपेयी और केदारनाथ सिंह जैसे लिबरल कवियों ने भी अपनी कविता में नहीं की है.

आप सोच रहे होंगे कि कानून व्यवस्था की इन ख़राबियों को लेकर मैं क्रोधित तेवर के साथ एंकरिंग क्यों नहीं कर रहा हूं. अब इस तरह से किसी को गोली चलाते देखेंगे, थाने में घुस कर मारते देखेंगे तो शांत रहना ही समयानुकूल होगा. पाकिस्तान की बात होती तो वहां के सारे जनरलों, सेनाध्यक्षों को ललकार देता क्योंकि मुझे अपनी सेना पर भरोसा है कि वो इन्हें स्टुडियो तक पहुंचने ही नहीं देगी. पुलिस पर भी भरोसा है मगर इस लेवर का भरोसा नहीं है. इसीलिए हमारे एंकर लोग पाकिस्तान पर ज़्यादा ध्यान देते हैं. हम यूपी की बात कर रहे हैं. फिरोज़ाबाद में मंत्री जी मिल गए, परिवहन मंत्री, घटना के बारे में पता नहीं मगर कार्रवाई क्या होगी उसके बारे में ज़ोरदार बयान दिया है. इसके बाद कानून व्यवस्था के मंत्री राम पति जी का भी बयान सुनियेगा जो उन्होंने उन्नाव में दिया है.

ज़मीन में जाएंगे या मारे जाएंगे. इस तरह के उग्र बयानों से अच्छा है कि व्यवस्थाओं को ठीक किया जाए, जहां पुलिस भी बेहतर हो और पुलिस को कोई नेता मारे भी न. पूरे देश में थाने राजनीति का अड्डा बन गए हैं. एक एफआईआर कराने के लिए किसी को सौ लोगों के साथ क्यों जाना पड़ता है. इसके अलावा इस बात पर भी सोचिये यूपी में ऐसा क्यों हो रहा है. क्यों कहीं संप्रदाय तो कहीं समुदाय आपस में भिड़े हुए हैं. क्यों सहारनपुर की हिंसा थम नहीं रही है. क्यों अलीगढ़ में भांति भांति के तनाव हैं. क्या ज़रूरी है कि हर घटना को सामाजिक अहं का सवाल बना दिया जाए, जातीय अहंकार का सवाल बना दिया जाए. इतना गुस्सा क्यों है लोगों में.

सहारनपुर की हिंसा पर गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट मांगी है. केंद्र से रैपिड एक्शन फोर्स की चार कंपनियां वहां भेजी गई हैं. 5 मई से वहां तरह तरह के झगड़े हो रहे हैं. पहले अंबेडकर जयंती की शोभायात्रा को लेकर तनाव हुआ, फिर महाराणा प्रताप जयंती की शोभा यात्रा को लेकर तनाव हुआ. कई लोगों ने कहा कि यूपी में महाराणा प्रताप जयंती की शोभा यात्रा पहले नहीं सुनी. इसी तरह कई तरह की यात्राएं समय समय पर निकलने लगी हैं. तनाव के कारणों पर बहस हो सकती है, लेकिन इस हिंसा में एक से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, कई लोग घायल हैं और कई लोग जेल में हैं. इसके बाद भी हिंसा नहीं रुक रही है. क्या इस हिंसा के बाद राजनीतिक हिसाब होना है, किसका वोट किसे मिलेगा, क्या इतनी सी बात सहारनपुर की जनता नहीं समझती है कि वे शांत रहें, क्या उनके बीच कोई नहीं है जो इस लड़ाई को बंद करवाये. कहीं जाटव बनाम ठाकुर है तो कहीं बाल्मीकि बनाम मुस्लिम है.

इस हिंसा की बुनियाद को समझना होगा, क्या कोई एक वर्ग सत्ता मिलने से ज़्यादा उत्साहित है, क्या किसी एक वर्ग को लग रहा है कि सत्ता उसकी है. तो इसका समाधान सरकार के व्यवहार में भी है और समाज में भी है. समाज को भी थोड़ा सुधरना होगा और वो सुधार सत्ता से बेहतर कोई नहीं कर सकता. हिंसा और टकराव की खबरों में सिर्फ हिन्दू बनाम मुस्लिम नहीं हैं, जाटव बनाम राजपूत हैं तो कहीं राजपूत बनाम मुस्लिम हैं तो कहीं हिन्दू बनाम हिन्दू हैं. झारखंड में तो गौतम गुंजन और गंगेश को भी भीड़ ने मार दिया. हमें यह सोचना होगा कि फालतू की यह राजनीतिक आक्रामकता चुनाव जीतने का फार्मूला हो सकती है, जीने का नहीं. यूपी ही क्यों, आप बंगाल देख लीजिए, बात बात में टकराव है, बात बात में हिंसा है. वहां भी रैपिड एक्शन फोर्स की कंपनियां भेजने की मांग हुई है. मुख्यमंत्रियों से इस्तीफे की मांग की राजनीति तो होती रहेगी, पहले अपने सामाजिक रिश्तों का ख़्याल कीजिए, उन्हें बिगड़ने मत दीजिए.

केशोपुर जाफरी गांव के ठाकुर लोग थाने पहुंच गए और कहा कि हम इस्लाम अपना लेंगे. विधायक ने भी इन्हें समझाने का प्रयास किया. ठाकुर जाति के लोगों की शिकायत थी कि उनके साथ उत्पीड़न हुआ है और जाटव समाज के लोग धर्म परिवर्तन करने की बात कर रहे हैं. जब उन्हें इस्लाम में न्याय मिल रहा है तो हम भी धर्म परिवर्तन करेंगे. दलित समाज के लोगों ने कहा कि अपना धर्म बदल रहे हैं और उन्होंने अपने देवी देवताओं की तस्वीरें तालाब में प्रवाहित कर दीं. आरोप यह लगा कि ठाकुर समाज ने अपनी एक नाली जाटवों के मोहल्ले की तरफ खोल दी. इसके विरोध में टकराव हो गया. पुलिस ने दोनों पक्षों के लोगों के खिलाफ मामला तो दर्ज कर लिया है लेकिन क्या ज़िलाधिकारी को जाकर नहीं देखना चाहिए कि किसी मोहल्ले की तरफ नाली खोली गई है या नहीं. खोली गई है तो उसे बंद करना चाहिए. इस खबर के और भी पहलु होंगे जो समय की कमी के कारण हम नहीं बता रहे हैं लेकिन दोनों समाज की यह ज़िद बता रही है कि बात से जितनी समस्या नहीं है उतनी मोहब्बत अपनी अपनी ज़िद से है. तभी मैं कह रहा हूं कि इतना गुस्सा एक दूसरे को लेकर क्यों है. 25 मई को अलीगढ़ के एक इलाके में ड्रोन कैमरे से निगरानी की गई. पुलिस ड्रोन कैमरे से पता लगा रही है कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है. एक हफ्ते के भीतर दो समुदाय दो बार आमने सामने आ गए. मामला क्या था, बाल्मीकि समुदाय के बच्चे का एक्सिडेंट मुस्लिम समुदाय के युवक की बाइक से हो गया. इस बात को लेकर झगड़ा दो समुदायों के बीच बन गया, अगर पुलिस नहीं संभालती तो न जाने कितने लोगों की जान चली जाती.

अब सोचिये कि वाकई लोगों के पास इतनी फुर्सत है कि बात बात में इतनी लड़ाई हो रही है. आखिर एक समाज का दूसरे समाज पर भरोसा इतना कम क्यों हो गया है कि एक के साथ की दुखद घटना पूरे समुदाय के नाक का सवाल बन जाती है. आप सोचिये ये सामान्य स्थिति नहीं है. मुख्यमंत्री योगी जवाबदेह हो सकते हैं मगर हालात तो आपके पड़ोस में पैदा हो रहे हैं. पुलिस भी सोच रही है लेकिन पुलिस को और भी काम है. ऐसा नहीं है कि अपराध और टकराव की इन खबरों के बीच रोमियों का स्कूल कॉलेज में अटेंडेंस 100 परसेंट हो गया है. समाज में उनके बाहर देखे जाने की संभावना अभी भी है. इसलिए पुलिस इन रोमियो को पकड़ने की ट्रेनिंग ले रही है.

मथुरा में व्यापारियों की हत्या हुई, पांच करोड़ की लूट हुई थी तो उसी पुलिस ने पकड़ा भी, पता नहीं उन लोगों का क्या हुआ जिन्होंने आगरा में पुलिस वालों पर हमले किये थे. कम से कम यूपी पुलिस को अपने सिपाहियों और अफसरों के ऊपर हुए हमलों पर स्टेटस रिपोर्ट देनी चाहिए कि इन मामलों में वो ज़रा फास्ट है और कार्रवाई कर दी गई है. ताकि लोगों को भरोसा मिले कि कम से कम पुलिस को मत छेड़ो. क्या आप जानते हैं कि सहारनपुर में एसएसपी रहे लव कुमार के घर पर जो भीड़ घुसी थी, उसमें मामला दर्ज हुआ था, उसका क्या हुआ. उनका तबादला कर दिया गया, लव कुमार की जगह जो एसएसपी आए अब उनका भी तबादला हो चुका है. इन सब हालात के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा में कह चुके हैं कि राज्य में अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है.

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