क्यों गर्माया राम मंदिर मुद्दा?

दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद की संत उच्चाधिकार समिति की बैठक में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनिश्चितकाल के लिए इंतजार नहीं किया जा सकता.

क्यों गर्माया राम मंदिर मुद्दा?

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

राम मंदिर को लेकर बीजेपी की नीयत पर अब सवाल उठाया जा रहा है. बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर दिया गया है. ऐसा करने वाले संघ परिवार से जुड़े साधु संत हैं. पिछले साढ़े चार साल से राम मंदिर का इंतजार कर रहे इन साधु संतों के सब्र का बांध अब टूट रहा है. शुक्रवार को दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद की संत उच्चाधिकार समिति की बैठक में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनिश्चितकाल के लिए इंतजार नहीं किया जा सकता. अब केंद्र की बीजेपी सरकार से कहा गया है कि वे संसद में कानून बना कर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ करे.

दिन भर चली संतों की बैठक में राम मंदिर का मुद्दा ही छाया रहा. यह तय किया गया है कि अक्टूबर के महीने में सभी राज्यों में धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि हर राज्य के राज्यपाल से मिलें और उन्हें मंदिर पर जनभावना से अवगत कराएं. नवंबर महीने से सभी संसदीय क्षेत्रों में जनसभाएं करने का फैसला हुआ. यह भी तय किया गया कि इस मुद्दे पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिला जाएगा.

राम मंदिर मुद्दे को लेकर आई यह गर्मी सीधे-सीधे चुनाव से जोड़ी जा रही है. यह संदेश दिया जा रहा है कि केंद्र में अपने बूते सरकार बनाने वाली बीजेपी राम मंदिर बनाने के लिए गंभीर नहीं है. बैठक में आए संतों ने बीजेपी सरकार के लिए काफी तीखे शब्दों का इस्तेमाल किया.

कुछ संतों ने कहा कि जब तीन तलाक को खत्म करने के लिए सरकार अध्यादेश ला सकती है तो फिर राम मंदिर के लिए क्यों नहीं. महामंडलेश्वर डॉ. रामेश्वरदास वैष्णवजी महाराज ने कहा कि सरकार तीन तलाक की ही तरह राम मंदिर निर्माण के लिए भी अध्यादेश लाए.

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि कोर्ट से कभी फैसला नहीं हो सकेगा. एक मात्र विकल्प है कि कानून बना कर मंदिर का निर्माण हो. महामंडलेश्वर अनुभूतानंद ने कहा कि केवल कोर्ट के भरोसे नहीं रह सकते. केंद्र और 22 राज्यों में सरकार के बावजूद हमें याचना करनी पड़ रही है. यह बहुत कष्ट का विषय है.

पूर्व गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद के तेवर भी काफी तीखे थे. उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि इस सरकार के एजेंडे में ही नहीं है. बीजेपी को पालमपुर प्रस्ताव को याद करना चाहिए. उन्होंने कहा कि राम मंदिर की प्रतीक्षा करते हुए कई महापुरूष स्वर्ग सिधार गए. संतों को प्रधानमंत्रीजी को बीजेपी द्वारा किए गए वादों की याद दिलानी चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्यसभा में अल्पमत का बहाना नहीं चलेगा. संसद का संयुक्त सत्र बुला कर कानून पारित कराना चाहिए. पीएम सारे सवालों के जवाब देते हैं लेकिन रामजन्मभूमि के सवाल से क्यों बच रहे हैं. स्वामी हरिहरानंद ने कहा कि कानून बनाने के लिए सरकार को एक डेडलाइन दी जाए. उसके बाद आंदोलन शुरू कर दिया जाए.

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि रामजन्मभूमि का फैसला 2019 से पहले न हो पाए इसके लिए हिंदू विरोधी शक्तियां जबर्दस्त षड्यंत्र कर रही हैं. उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान की ओर ध्यान दिलाया जिसमें उन्होंने कहा था कि रामजन्मभूमि के सवाल पर हम संतों की उच्चाधिकार समिति के निर्णय से बंधे हैं.

यह सारे बयान इस ओर इशारा कर रहे हैं कि संतों के सब्र का बांध अब टूट रहा है. लेकिन यह भी इशारा है कि वे सियासी दांवपेंच का हिस्सा बन रहे हैं. इसमें पूरे घटनाक्रम में एक महत्वपूर्ण बात संघ प्रमुख मोहन भागवत के राम मंदिर पर आए बयान हैं. पिछले 20 दिनों में उनके तीन अलग-अलग बयान आए हैं. इनमें हाल ही में हरिद्वार में आया एक बयान भी खासा महत्वपूर्ण है जिसमें वे कह रहे हैं कि मंदिर बनने की बात हो तो विपक्ष भी तैयार हो जाएगा.

यह सारी कवायद एक रणनीति का हिस्सा लग रही है. पिछले साढ़े चार साल में पीएम नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर पर कोई बयान नहीं दिया है और न ही वे अयोध्या गए हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी अयोध्या पर पार्टी की वही लाइन दोहराते आए हैं जिसमें आपसी सहमति या फिर अदालत के जरिए मंदिर बनाने की बात है. ऐसे में लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले आरएसएस बीजेपी पर दबाव बढ़ाना चाह रहा है. बीजेपी के लिए राम मंदिर के मुद्दे से बच निकलना अब मुश्किल होता जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद ही अयोध्या आंदोलन से जुड़े रहे हैं. वे कहते आए हैं कि जल्दी ही राम मंदिर बनेगा.

बीजेपी को बारबार पालमपुर अधिवेशन में हुए प्रस्ताव की याद दिलाई जाती है. जून नवासी में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में बीजेपी का अधिवेशन हुआ था. इसमें राम मंदिर को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया था. प्रस्ताव में कहा गया था कि रामजन्मभूमि राम मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं को सौंप दी जानी चाहिए. बीजेपी चाहती है कि अयोध्या विवाद या तो दोनों समुदायों के बीच आपसी बातचीत से हल हो या फिर अगर ऐसा न हो पाए तो कानून के जरिए हल निकाला जाए.

लेकिन बाद में गठबंधन सरकार बनाने पर बीजेपी ने कानून की बात को ठंडे बस्ते में डाल कर अदालत से इसके हल की बात कहनी शुरू कर दी. जहां तक अदालतों से इसके हल का सवाल है, इलाहबाद हाई कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था. जिसमें एक हिस्सा मुस्लिम समुदाय को, एक हिस्सा राम लला को और तीसरा हिस्सा हिंदू समुदाय को देने की बात कही गई थी. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और कई साल से यह मामला वहां लटका हुआ है. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अयोध्या से जुड़े एक मामले को बड़ी पीठ को भेजने से इनकार करते हुए मालिकाना हक के मुकदमे की सुनवाई 29 अक्टूबर से करने की बात कही है. इसके बाद इसका अदालती हल निकलने की संभावना बढ़ गई है. मगर वीएचपी के तेवरों से लगता है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने के लिए भी तैयार नहीं है. ऐसे में उसकी सारी रणनीति बीजेपी को मुश्किल में डालने की लगती है. कुछ बेहद आक्रामक नेता वीएचपी से अलग हो गए हैं और वे अयोध्या मुद्दे पर आक्रामक हैं. वीएचपी की यह कवायद उसका जवाब भी लगती है.

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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