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This Article is From Jan 27, 2019

अगड़ी जातियों के ग़रीबों के आरक्षण पर पिछड़ी जाति के नेताओं और दलों में बेचैनी क्यों?

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 27, 2019 00:01 am IST
    • Published On जनवरी 27, 2019 00:01 am IST
    • Last Updated On जनवरी 27, 2019 00:01 am IST

केंद्र सरकार द्वारा अगड़ी जातियों के ग़रीब लोगों के लिए जब से 10 प्रतिशत के आरक्षण के प्रावधान के लिए संविधान में संशोधन किया गया है, बिहार की राजनीति में या आप कह सकते हैं कि जातिगत राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया. राज्य के दो प्रमुख दल सत्तारूढ़ जनता दल युनाईटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता भले कार्यक्रम कुछ भी हो लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर अपने प्रयास, उस दिशा में उठाये गये क़दम और वर्तमान संदर्भ में अपने विचार रखना नहीं भूलते.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही यह क़दम लोकसभा चुनावों में अगड़ी जाति के लोगों का कोपभाजन न होना पड़े इसके मद्देनज़र उठाया हो लेकिन धरातल पर सच्चाई यही है कि इस क़दम के बाद पिछड़ी जातियों और दलित समुदाय में एक असंतोष की भावना उपजी है और बिहार में राजद और जेडीयू दोनों अपने-अपने तरीक़े से इसे भुनाने की कोशिश में लगे हैं. जहां राष्ट्रीय जनता दल, जो इस मुद्दे पर पहले दिन से संसद से सड़क तक आक्रामक है, उसका प्रयास है कि इस मुद्दे पर ग़ैर यादव पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को अपने परंपरागत वोट बैंक से एक बार फिर जोड़ा जाए. वहीं जेडीयू जो थोड़ा फूंक-फूंक कर बोल रही है. उसका हर संभव प्रयास है कि राजद के पिछले इतिहास को उजागर कर कम से कम नुक़सान सहा जाए और अपने वोटरों को समेट कर रखा जाये.

यही एक कारण है कि नीतीश कुमार जिन्हें शायद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इस मुद्दे पर भरोसे में नहीं लिया, उन्होंने प्रतिक्रिया देने में कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखायी. नीतीश कुमार की पार्टी ने संविधान संशोधन का समर्थन किया लेकिन इस क़दम के ऊपर नीतीश की प्रतिक्रिया तत्काल नहीं मिली. जब उन्होंने मुंह खोला तो स्वागत किया क्योंकि पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के वर्तमान 50 प्रतिशत के आरक्षण के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई थी और ये अलग 10% का आरक्षण का प्रावधान किया गया था. लेकिन साथ ही साथ उन्होंने पिछड़ी जातियों की आबादी के अनुरूप आरक्षण बढ़ाने के मांग का भी समर्थन किया. नीतीश ने साफ़-साफ़ इसका व्यावहारिक समाधान भी बताया कि अगली जनगणना जो 2021 में होने वाली है, उसके साथ-साथ जातिगत जनगणना भी हो जाए तो उसके आंकड़ों के आधार पर वर्तमान आरक्षण के प्रावधान को बढ़ाया जा सकता है.

नीतीश को भी इस बात का अंदाज़ा है कि पिछड़ी जातियों और दलितों में कोई हर्ष का माहौल नहीं है लेकिन उनकी कोशिश है कि राजद इस एजेंडे को हाईजैक पना कर ले. इसलिए नीतीश अपनी हर सभा में पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के ज़माने में जो आरक्षण व्यवस्था लागू की गई थी, जिसमें पिछड़ा और अति पिछड़ा को बीच वर्गीकृत कर अति पिछड़ों को ज़्यादा आरक्षण का लाभ दिया गया, उसमें अपनी भूमिका की चर्चा करते हैं. साथ-साथ मंडल कमीशन के पूरे देश में लागू होने के बाद कैसे उन्होंने उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा कर्पूरी ठाकुर द्वारा जारी आरक्षण को ख़त्म कर मंडल कमीशन को लागू करने की कोशिशों का मुखर विरोध किया था, इसकी भी विस्तृत चर्चा करते हैं. नीतीश के साथ एक बड़ा एडवांटेज यह है कि उन्होंने बिहार में सत्ता संभालते ही पंचायतों में अतिपिछड़ों को 20 प्रतिशत आरक्षण दिया और एक विस्तृत सर्वेक्षण भी कराया था. हालांकि नीतीश ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए कर्पूरी ठाकुर फ़ॉर्मूला में सवर्ण जातियों के गरीबों को जो 3% आरक्षण का प्रावधान था और जिसे लालू यादव ने ख़त्म कर दिया था, उसे फिर कभी वापस लागू नहीं किया, लेकिन आरक्षण के मामले में नीतीश अपने विरोधियों पर भारी पड़ते हैं.

वहीं राष्ट्रीय जनता दल ने केंद्रीय कैबिनेट के फ़ैसले के साथ ही विरोध शुरू कर दिया था. राजद का कहना था कि 'हम सवर्ण जातियों के गरीबों के आरक्षण के विरोधी तो नहीं हैं लेकिन साथ ही साथ अगर आप 15% आबादी को 10 प्रतिशत आरक्षण दे रहे हैं तो OBC जातियों का प्रतिशत 56 प्रतिशत है, तो उनका उनके लिए भी आरक्षण आबादी के अनुपात में होना चाहिए. राजद नेताओं ने न केवल लोकसभा और राज्यसभा में इसका जमकर विरोध किया बल्कि बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर हर दिन अगर सार्वजनिक मंच से नहीं तो सोशल मीडिया से सरकार से सवाल ज़रूर पूछते हैं. राजद को मालूम है कि उनके इस क़दम के बाद उनकी अगड़ी जाति के कुछ पुराने नेताओं को अगर छोड़ दें तो लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, उन्हें अगड़ी जातियों का वोट मिलने से रहा. लेकिन उनका ये अनुमान है या कहें अति आत्मविश्वास कि राज्य में 90 के दशक के समान एक बार फिर से पिछड़ी जातियों के मतदाता गोलबंद होंगे और मुस्लिम-दलित के साथ ही एक बहुत ही बड़ा बोट बैंक होगा. लेकिन अभी तक तो राजद नेताओं के पक्ष में ऐसा समर्थन या गोलबंदी ज़मीन पर हो रही हो, उसका बहुत उदाहरण देखने को नहीं मिला है. लेकिन उनका दावा है कि फीडबैक के अनुसार इस मुद्दे पर ग्रामीण इलाकों में काफ़ी असंतोष है. लेकिन यह वोट में तब्दील हो पाएगा इस पर संशय है क्योंकि नीतीश कुमार की भी अति पिछड़ी जातियों में और गैर यादव पिछड़ी जातियों में मज़बूत पकड़ है. वहीं भारतीय जनता पार्टी जो इस मुद्दे पर कुछ ज़्यादा ही उत्साहित है वो इस बात को लेका राहत की सांस ले रही है कि कम से कम अब उन्हें मध्य प्रदेश, राजस्थान की तरह अगड़ी जातियों के असंतोष का सामना नहीं करना पड़ेगा. चुनाव में उन्हें मान मनौव्‍वल करने की ज़रूरत नहीं होगी और आरक्षण के मुद्दे पर नीतीश कुमार का जो ट्रैक रिकॉर्ड रहा है, उसकी दुहाई देकर वो लोकसभा चुनाव की नैया आसानी से पार कर सकते हैं.

BJP के नेताओं का कहना है कि अभी हाल में भी जिन भी चैनलों का सर्वेक्षण आया है उसमें NDA को भारी बढ़त हासिल है. इससे साफ है कि राजद पिछड़ों और दलितों में इस मुद्दे पर जिस असंतोष की बात कर रही है वो हवा में तीर चलाने के समान है. हां वो एक बात ज़रूर मानते हैं कि अगर नीतीश बिहार में गठबंधन की अगुवाई नहीं कर रहे होते और महागठबंधन में होते तो BJP को आरक्षण के मुद्दे पर इस क़दम के बाद 1-2 सीटें भी मिलना मुश्किल था.

लेकिन NDA के नेता इस बात को लेकर सशंकित हैं कि अगर इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने अगले दो तीन महीने के दौरान या चुनाव के बीचो-बीच इस संविधान संशोधन के प्रतिकूल अगर कोई टिप्पणी या फ़ैसला दे दिया तो यह जो आरक्षण का पासा है वो उल्टा भी पड़ सकता है. इसलिए बिहार BJP के वरिष्ठ नेता और उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी अभी से कह रहे हैं कि जिस जातिगत आरक्षण की बात नीतीश कुमार ने उठायी है वो अगली जनगणना में ज़रूर होगा. साथ ही साथ विश्वविद्यालय और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित जो आरक्षण के रोस्टर का सवाल है उस पर भी NDA के नेता आशान्वित हैं कि केंद्र सरकार लोकसभा के अगले सत्र में आवश्यक बिल ज़रूर लाएगी. हालांकि किसी भी दल के नेता हों वो एक बात पर समान विचार रखते हैं कि अब सरकारी नौकरियों में नियुक्तियं इतनी कम हो रही हैं कि आरक्षण का कुआं दिनोदिन सूखता जा रहा है. लेकिन यह बात भी है कि सवर्ण जातियों के लिए जो आरक्षण का प्रावधान किया गया है उसके बाद अनुसूचित जाति हो या जनजाति या पिछड़ी जातियां, सबको वर्तमान में जो आरक्षण का लाभ है वो अब कम लग रहा है और उनके बीच से और अधिक की मांग ख़ासकर पिछड़ी जातियों से और अधिक आरक्षण की मांग आने वाले दिनों में बढ़ेगी जिसका किसी को लाभ मिलेगा तो किसी को नुक़सान निश्चित रूप से उठाना पड़ेगा.

(मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं)

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