नेपाल में चल रहे युवाओं के विरोध-प्रदर्शन, जिसे 'जेन जेड' आंदोलन का नाम दिया गया है. यह आंदोलन नेपाल के इतिहास में अभूतपूर्व है. इसके नाम से ही पता चलता है कि इस आंदोलन का नेतृत्व नेपाली युवा कर रहे हैं.
क्या चाहते हैं नेपाल के युवा
नेपाल में एक पीढीगत बदलाव हो रहा है, जहां युवा रोजगार, विकास और बेहतर जीवनशैली की तलाश में हैं. सोशल मीडिया ने इस बदलाव में बड़ी भूमिका निभाई है, जिसने नेपाली युवाओं को दुनिया से जोड़ा और बेहतर जीवनशैली, सुविधाएं और अवसरों का सपना दिखाया है. कॉलेज में पढ़े-लिखे कई युवा उच्च शिक्षा और बेहतर अवसर की तलाश में नेपाल छोड़ रहे हैं, जबकि जो रह जा रहे हैं, वे आमतौर पर मजबूरी में ही यह विकल्प अपना रहे हैं. दूसरी ओर, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के लोग विदेशों में मजदूरी करके रोजी-रोटी कमा रहे हैं, उनके भेजे पैसे से उनके परिवारों की समृद्धि और खर्च करने की ताकत बढ़ी है. मध्य पूर्व या दक्षिण-पूर्व एशिया के विकसित देशों में उनके जीवन की कहानियों से नेपाल के युवाओं में वंचित महसूस करने की भावना बढ़ी है, जो पहले से ही अपने साथियों से पिछड़ जाने के एहसास में जी रहे हैं. इससे लोगों में देश के हालात को लेकर निराशा और हताशा बढ़ी है.
नेपाल के राजनीतिक नेतृत्व ने लोगों की उम्मीदों की अनदेखी की है. साल 2015 में नया संविधान अपनाने और संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य में बदल जाने के बाद भी राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक वृद्धि की धीमी रफ्तार और भ्रष्टाचार ने विकास की उम्मीदों पर कुठाराघात किया. इससे नेताओं और जनता के बीच की खाई साफ नजर आती है. सोशल मीडिया ने देश की समस्याओं को उजागर करने में बड़ी भूमिका निभाई. नेपाल के तीन प्रमुख नेताओं केपी ओली (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूनिफाइड मार्क्सवादी-लेनिनवादी)), शेर बहादुर देउबा (नेपाली कांग्रेस) और पुष्प कमल दहल प्रचंड (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र)) पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे. कई लोगों का तो यह भी मानना है कि भ्रष्टाचार ही इन्हें एकजुट रखता है.

भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर पाबंदी के विरोध में प्रदर्शन करते नेपाली युवा.
नेपाल में सोशल मीडिया ने नेताओं के बच्चों की लग्जरी लाइफ को भी दिखाया, जिन्हें आमतौर पर 'नेपो-किड्स' कहा जाता है. नेताओं के ये बच्चे विदेश पढ़ते हैं और व्यापारिक समझौते करते हैं. कुछ रील्स और पोस्ट्स में यह दावा किया गया कि शेर बहादुर देउबा के बेटे जयबीर देउबा का संबंध हिल्टन होटल से है. हालांकि उन्होंने इस तरह के किसी संबंध से इनकार किया, इसके बाद भी प्रदर्शनकारियों ने होटल को आग लगा दी.
क्या सोशल मीडिया पर नियंत्रण से भड़का जेन जेड
नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश की. सितंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को रजिस्ट्रेशन कराने का आदेश दिया, जिससे अधिकारी आपत्तिजनक सामग्री पर नजर रख सकें. ओली सरकार के इस कदम ने सोशल मीडिया पर नियंत्रण के खिलाफ व्यापक गुस्से और विरोध को जन्म दिया. ओली सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए 28 अगस्त से एक हफ्ते का नोटिस दिया था, लेकिन ऐप संचालकों ने कोई कदम नहीं उठाया. इसका परिणाम यह हुआ कि व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स जैसे 26 ऐप्स पर सरकार ने पाबंदी लगा दी. कुछ लोगों के लिए सरकार का यह कदम अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार पर हमला था. वहीं दूसरे लोगों के लिए, यह विदेश में रहने वाले अपने परिजनों से जुड़ने और रील्स व वीडियो के जरिए कुछ पैसे कमाने का मुफ्त का मंच खोना था. इससे युवाओं, खासकर जेन जेड में भारी नाराजगी फैल गई. काठमांडू के माइतीघर में आठ सितंबर को हजारों लोग भ्रष्टाचार पर रोक और सोशल मीडिया पर लगी पाबंदी को हटाने की मांग को लेकर जमा हुए. लेकिन जल्द ही हालात बेकाबू हो गए. इसमें कम से कम 22 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक लोग घायल हो गए. इसके अगले दिन विरोध और हिंसक हो गया. प्रदर्शनकारियों ने राजनेताओं पर हमला किया, उनके घर जलाए और संसद भवन व राष्ट्रपति निवास जैसी सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया. यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण था कि आंदोलन में असामाजिक तत्व घुस आए थे.

सोशल मीडिया ने नेपाल की समस्याओं को उजागर करने में बड़ी भूमिका निभाई है.
नेपाल में हालात इतने बेकाबू हो गए कि पुलिस स्टेशन जला दिए गए और जेलें तोड़ दी गईं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 18 जेलों से करीब छह हजार कैदी फरार हो गए हैं. कई अपराधी भारत की सीमा पार करने की कोशिश में थे, लेकिन भारत की सीमा की सुरक्षा करने वाले सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) ने कुछ को पकड़ लिया. इसके बाद भारत ने नेपाल से लगती सीमा पर एसएसबी की तैनाती बढ़ा दी.
नेपाल में कहां रखे गए हैं नेता
हालात खराब होते देख प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नौ सितंबर को इस्तीफा दे दिया. उनकी कैबिनेट के कई अन्य मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के सांसदों ने संसद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन प्रदर्शनकारी इससे शांत नहीं हुए. राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सेना तैनात करनी पड़ी. प्रमुख नेताओं को शिवपुरी आर्मी स्टाफ कॉलेज में रखा गया है. राष्ट्रपति सेना मुख्यालय में हैं. कर्फ्यू लगा दिया गया है. सेना प्रमुख को लोगों से देश में शांति की अपील करनी पड़ी. समाज के हर वर्ग ने 'जेन जेड' के प्रति सहानुभूति और समर्थन दिखाया है.

नेपाल में बनने वाली अंतरिम सरकार के संभावित प्रमुख के रूप में पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम भी आगे है.
कौन करेगा जेन जेड का नेतृत्व
नेपाल में अभी कोई सरकार नहीं है. जेन जेड के पास नया नेतृ्त्व पैदा करने के लिए ऊर्जा, ताकत और आकांक्षा है, लेकिन उनके पास राजनीतिक अनुभव की कमी है. अभी तक जेन जेड का कोई नेता उभर कर सामने नहीं आया है. कुछ जेन जेड समूहों ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़ाया है, जबकि कुछ ने काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह का नाम आगे बढ़ाया है, जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जेन जेड के आंदोलन को समर्थन दिया था. कुछ लोग धरान के मेयर हरका संपंग को अपने प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहते हैं. वहीं जेन जेड के नेता राष्ट्रपति और सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल से मिलने और वार्ता के लिए सेना मुख्यालय का चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन अभी तक कोई साफ तस्वीर उभर कर सामने नहीं आई है.

नेपाल में पैदा हुई अंशाती के बाद उससे लगती सीमा पर गश्त लगाते सशस्त्र सीमा बल के जवान.
भारत को क्या करना चाहिए
नेपाल में किसी भी तरह की राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए चिंता का विषय है. खुली सीमा का अपराधियों द्वारा गलत इस्तेमाल होने से लेकर नेपाल भारत का सबसे बड़ा विकास साझेदार है. इसलिए, जमीन पर बदलाव लाने वाली समुदायिक विकास परियोजनाओं में करीबी सहयोग जारी रखने के प्रयास होने चाहिए. नेपाल के युवाओं की जरूरतों को पूरा करने वाले क्षेत्रों की पहचान करना बहुत जरूरी है. दोनों देशों के शैक्षणिक संस्थानों के बीच संपर्क बढ़ाना चाहिए, जैसे शिक्षा का आदान-प्रदान और नेपाली छात्रों के लिए भारत में पढ़ने के लिए मिलने वाली फैलोशिप को बढ़ाना. इस हालात में भारत को सावधानी बरतनी चाहिए और नेपाल की आंतरिक राजनीति में ज्यादा हस्तक्षेप करते हुए नजर नहीं आना चाहिए. इसका सबसे अच्छा रास्ता नेपाल में 'लोगों की पसंद' का सम्मान करना है.
डिसक्लेमर: लेखक दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में पढ़ाती हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.