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क्या ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत में भी बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन होना चाहिए? एक्टर सोनू सूद ने भी दी अपनी राय, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

Social Media Accounts Ban for Children: ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन कर दिया. ऑस्ट्रेलिया के इन कदम के बाद से भारत में भी बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन करने की चर्चा हो रही है.

क्या ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत में भी बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन होना चाहिए? एक्टर सोनू सूद ने भी दी अपनी राय, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन होना चाहिए?
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Social Media Accounts Bans for Children: ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन कर दिया. ऑस्ट्रेलिया ने 10 दिसंबर, 2025 से 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया है. इस कानून के तहत टिक टॉक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक, रेडिट, स्नैपचैट और ट्विच जैसे 10 प्रमुख प्लेटफार्म पर बच्चों को एक्सेस करने से रोक दिया गया है. कंपनियों को अब आयु सत्यापन टूल का उपयोग करना होगा, जैसे कि फेसियल-एनालिसिस सेल्फी या पहचान पत्र की जांच. उल्लंघन करने पर कंपनियों को 49.5 मिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर यानी लगभग 300 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लग सकता है. ऑस्ट्रेलिया के बाद अब भारत में भी इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई है.

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एक्टर सोनू सूद ने की बैन की मांग

भारत में भी इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई है. कुछ लोगों का मानना है कि भारत को भी ऑस्ट्रेलिया की तरह सोशल मीडिया पर बैन लगाना चाहिए, जबकि अन्य लोगों का कहना है कि यह व्यावहारिक नहीं होगा. अभिनेता सोनू सूद ने भी ट्वीट कर सरकार से बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर बैन लगाने की मांग की है. उन्होंने ट्वीट किया, "ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया है और अब भारत को भी ऐसा ही करने पर विचार करना चाहिए. हमारे बच्चों को वास्तविक बचपन, मजबूत पारिवारिक बंधन और स्क्रीन की लत से मुक्ति पाने का अधिकार है."

क्या भारत को ऑस्ट्रेलिया की तरह बैन करना चाहिए?

वेलनेस और फिटनेस एक्सपर्ट मीनल पाठक, जो दो बच्चों की मां हैं. वह भी भारत को ऑस्ट्रेलिया जैसी नीति अपनाने के समर्थन में है. बच्चे तेजी से ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म और डिस्कोर्ड जैसे संचार पोर्टलों के आदी हो रहे हैं. उनके विचार में इस कारण प्रतिबंध लगाना आवश्यक है, क्योंकि बच्चों का मस्तिष्क बहुत कोमल और आसानी से प्रभावित होने वाला होता है और इन प्लेटफॉर्मों के आकर्षण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है.

बाल एवं किशोर मनोचिकित्सक, आईएमएचए की संस्थापक सदस्य और चिल्ड्रन फर्स्ट की सह-संस्थापक डॉ. कविता अरोरा कहती हैं, "ऑस्ट्रेलिया एक निर्णायक दिशा में आगे बढ़ रहा है और न केवल भारत बल्कि सभी देशों को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. जब ​​कोई सरकार या राष्ट्र इस तरह की घोषणा करता है, तो यह संकेत देता है कि समस्या इतनी महत्वपूर्ण है कि उस पर कड़ा रुख अपनाना जरूरी है. वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि समस्या को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है जितनी ली जानी चाहिए और इसलिए लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उपाय इतने बड़े होने चाहिए."

डॉ. अरोरा के मुताबिक, जमीनी हकीकत यह है कि किशोरों की वास्तविक दुनिया में सोशल मीडिया ने हर चीज पर अपना कब्जा जमा लिया है. मानव और बाल विकास से जुड़ी हर वो चीज, चाहे वो शारीरिक हो, मानसिक हो, रिश्ते हों या संपर्क, अब केंद्र में नहीं रही. इसने बच्चों के विकास के हर चरण को प्रभावित किया है, और इसका असर उनके वयस्क होने पर ही नजर आएगा.

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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