समस्या यह है कि किसान दिल्ली आ जाते हैं तब भी कोई नहीं सुनता, मीडिया में आ जाते हैं तब भी किसी को फर्क नहीं पड़ता. ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ करने का दावा नहीं करती है, उसके तमाम दावों और योजनाओं और उनकी वेबसाइट के बाद भी खेती का संकट जहां तहां से निकल ही आता है. किसान फिर से जंतर-मंतर पर आ गए हैं. मध्यप्रदेश के मंदसौर से अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने किसान मुक्ति यात्रा निकाली, जो 6 राज्यों से होते हुए दिल्ली पहुंची है. इस यात्रा को देश के 150-200 से अधिक किसान संगठन अपना समर्थन दे रहे हैं. मंच पर किसान नेताओं के अलावा पहली बार आत्महत्या करने वाले किसानों के बच्चों ने भी अपनी व्यथा दिल्ली वालों को सुनाई. इस उम्मीद में कि दिल्ली के लोगों को सुनाई देती होगी.
जंतर मंतर पर चल रहे किसान मुक्ति संसद में दो ही मांगें प्रमुख हैं. किसानों को फसल का पूरा दाम मिले और किसानों को पूर्ण रूप से कर्ज़ मुक्त किया जाए. एनडीए के उप राष्ट्रपति के उम्मीदवार वेंकैया नायडू का बयान तो याद ही होगा कि किसानों के कर्ज़ माफी की मांग करना आजकल फैशन हो गया है. खेती से 48 फीसदी लोग जुड़े हैं जिनमें 22.5 फीसदी ग़रीबी रेखा से नीचे हैं. आपको लगता है कि किसानों के पास फैशन के लिए वक्त और पैसा है.
इस संसद में कई सांसदों ने हिस्सा लिया. स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के राजू शेट्टी, आम आदमी पार्टी छोड़ चुके डा धर्मवीर गांधी, सीपीएम के सीताराम येचुरी, मोहम्मद सलीम, तपन कुमार सेन. जेडीयू के शरद यादव, अली अनवर, शिवसेना के अरविंद सावंत, कांग्रेस के बीआर पाटिल. आप दर्शक भी इन सांसद या नेताओं को जानते होंगे मगर इस मंच पर कई किसान नेताओं ने भी भाषण दिया जिन्हें आप नहीं जानते हैं, जिन्हें हम पत्रकार भी नहीं जानते हैं, मगर वे अपने अपने इलाके में किसानों की आवाज़ हैं. उनके नेता हैं. एलान हुआ कि अब पूरी कीमत और कर्ज़े से पूर्ण मुक्ति की लड़ाई आर पार होगी. किसान दाम मांग रहे हैं. बीजेपी ने वादा किया था कि लागत में पचास फीसदी जोड़कर मुनाफा तय किया जाएगा. अभी तक इस वादे के इंतज़ार में हैं. सरकार अब इस वादे पर नहीं बोलती है मगर 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने की बात करती है. सरकार को यही बताना चाहिए कि इस वक्त किसानों की आमदनी कितनी है और 2022 में दुगनी होकर कितनी हो जाएगी. किसान मांग कर रहे हैं कि अगर एक क्विंटल गेहूं उगाने में 1500 रुपया खर्चा आ रहा है तो उसमें 750 रुपया जोड़कर यानी 2250 रुपया प्रति क्विटंल दो. इस वक्त गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1625 रुपये है.
मीडिया में जब भी किसानों की खुदकुशी ख़बर आती है तब उसका परिवार उस ख़बर से ग़ायब रहता है. मरने वाले किसान की पत्नी का संघर्ष और उनके बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर का ज़िक्र तो कभी आता भी नहीं.
महाराष्ट्र से चलकर जंतर मंतर पर इन बच्चों का आना हम सबकी नाकामी है. मैं जानता हूं कि अब हम सब अपनी हर तरह की नाकामी से सामान्य हो चुके हैं. फर्क नहीं पड़ता, मगर ये बच्चे एक और बार प्रयास कर रहे हैं कि झूठे आंसू रोने वाली सरकारें अगर कुछ करती हैं तो उनका असर कहां है. क्या उस व्यवस्था को शर्म आ रही है जिसने इन बच्चों को सिर्फ आश्वासन दिया है. मुआवज़ा दिया है मगर किसानों की समस्या का समाधान कहां है. कब होगा. नेताओं की रैलियां देखिये. वो हर चुनाव में आलीशान होती जा रही हैं. उनके पास कहां से इतना पैसा आता है. क्या आप वाकई मानते हैं कि वो व्हाईट मनी का पैसा रैलियों में उड़ा रहे हैं. जिस देश की राजनीति जहां छक कर नोट उड़ाती है उस देश की राजनीति क्यों नहीं इन सवालों का समाधान करती है. आखिर नेताओं के ऐश तो कभी कम नहीं होते हैं, क्या आपने कभी नेता को ट्रेन से चलकर चुनाव प्रचार पर जाते देखा है, तो फिर ये किसान कैसे मर रहे हैं. उनके बच्चे क्यों अनाथ हो रहे हैं.
हम इन परिवारों की कहानी नहीं जानते. हमारी संवेदनशीलता अब बेचारी हो गई है. वो किस किस के लिए रोए और कहां कहां रोए. कभी गटर में मर जाने वाले अनाम मज़दूरों के लिए रोने का नाटक करना पड़ता है तो कभी उसे शहीद के लिए रोना पड़ता है, कभी देश के हालात के लिए. इस बार जंतर मंतर पर किसानों की संसद में किसानों का मुल्क आया था. तमिलनाडु वाले किसान भी लौट आए हैं.
16 जुलाई को जब ये किसान प्रधानमंत्री से मिलने गए तो गिरफ्तार कर लिये गए. 17 जुलाई को नरमुंड लेकर बैठ गए. किसानों का कहना है कि ये खोपड़ी उन किसानों की है जिन्होंने खुदकुशी की है. मार्च महीने में भी किसानों ने तरह तरह से प्रदर्शन किया ताकि दिल्ली में असर पैदा हो जाए. मगर दिल्ली को न तो नरमुंड से फर्क पड़ता है न नरकंकाल से. दिल्ली की अंतरात्मा पर दिल्ली बैठ गई है. यहां के दरबार में नेता भाषण देकर भी प्यारा लगता है. झूठे आंसू रोता है जिस पर ताली बजती है मगर किसानों की आत्महत्या आज तक रुकी नहीं. जारी है. जय जवान जय किसान का नारा कभी जगाने के लिए था, आज इस नारे का इस्तमाल किसानों को ठगने के लिए किया जाता है. जब भी नेता को धोखा देना होता है वो किसानों को अन्नदाता कहता है, देवता कहता है, भगवान कहता है सब कहता है मगर उसकी समस्या को कभी दूर नहीं करता है.
This Article is From Jul 18, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : किसानों की समस्याओं का हल क्या?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 18, 2017 23:39 pm IST
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Published On जुलाई 18, 2017 22:41 pm IST
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Last Updated On जुलाई 18, 2017 23:39 pm IST
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