क्या कहा था गांधी ने नारेबाज़ी की मारामारी पर

क्या कहा था गांधी ने नारेबाज़ी की मारामारी पर

नारेबाज़ी को लेकर कई तरह की नारेबाज़ी हो रही है। बात सर काटने से लेकर देश से भगाने तक की होने लगी है। टॉपिक बदल-बदल कर वहीं सारी धमकियां लौट रही हैं। सबके पास अपनी-अपनी दलीलें हैं। मैं यहां इतिहास के पन्नों से एक दस्तावेज़ पेश करना चाहता हूं ताकि आप समझ सकें कि यही सब बातें, यही सब धमकियां और दलीलें पहले भी दी जा चुकी हैं। जिसके बहकावे में आकर लोग एक दूसरे को मारते भी रहे और होश आने पर अपनी ग़लती का अहसास भी किया और आपस में गले लगाने की बात करने लगे।

भारत जब आज़ाद हुआ तब देश के कई हिस्सों में दंगे हो गए थे। गांधी जी नोआखली के दंगे के बाद बिहार के दौरे पर आ गए। बिहार में भयानक दंगा हुआ था। उस दौरान उन्होंने पटना-जहानाबाद के आसपास के पचास गांवों का दौरा किया था। गांधी जी जब भी पटना में होते, शाम को गांधी मैदान में प्रार्थना सभा करते और भाषण भी देते थे। तब गांधी मैदान का नाम बांकीपुर मैदान था। 7 मार्च, 1947 को पटना की प्रार्थना सभा में उन्होंने वंदे मातरम् और जय हिन्द के बारे में अपने विचार प्रकट किए थे।

तब की बिहार सरकार ने तय किया कि गांधी जहां-जहां जायेंगे और भाषण देंगे उनकी रिपोर्ट दर्ज होगी। बिहार सरकार ने उनकी प्रार्थना सभा को छपवाया था जिसका नाम था 'गांधी जी के दुखे हुए दिल की पुकार'। आप पाठकों से अनुरोध है कि आप भी इस पुकार को सुने और समझें। यह हिस्सा मुझे पटना के पूर्व पत्रकार श्रीकांत के सहयोग से हासिल हुआ है- रवीश कुमार


‘जय हिन्द’ और ‘वंदे मातरम्’ पर महात्मा गांधी के विचार
“मैंने सुना है कि यहाँ हिन्दू मुसलमानों को देखते हैं, तो चीखते हैं और उन्हें डराते हैं। उनके सामने ‘जयहिन्द’ और ‘बन्दे मातरम्’ के नारे लगाते हैं। नारे लगाना अच्छी बात है, लेकिन हमको पहले यह सोचना चाहिए कि हम दूसरे को डराने धमकाने या उसे तकलीफ पहुंचाने के लिए तो नारे नहीं लगा रहे हैं। हम बहुत बड़ा पाप कर चुके हैं। उन नारों से कहीं यह तो नहीं जाहिर होता कि हमने जो कुछ किया है, उसका हमें घमंड है और हम उसे सही समझते हैं। नोआखाली के हिन्दू भी इसी तरह मुसलमानों के ‘अल्ला हो अकबर’ के नारे से डरते थे। गरचे ‘अल्ला हो अकबर’ का मतलब है ईश्वर महान् है और इससे डरना नहीं चाहिए, लेकिन जब नारों का इस्तेमाल गलत किया जाता है, तो उसका मतलब भी गलत समझा जाता है और वे अच्छी चीज की जगह बुरी चीज बन जाती हैं।

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‘जय हिन्द’ का यह मतलब नहीं कि हिन्दुओं की जय (फाह) और मुसलमानों की क्षय (हार)। लेकिन आज वह ऐसा ही समझते हैं, क्योंकि हमने उनको इस नारे का गलत इस्तेमाल करके डरा दिया है। हम एक-दूसरे के नारे सुनकर समझने लगते हैं कि दूसरे हम से लड़ने की तैयारी कर रहा है और दूसरे भी तैयारी करने लगते हैं। अगर इस तरह हम लड़ते रहे और एक जगह का बदला दूसरी जगह लेते रहे, तब तो सारे हिन्दुस्तान में खून की नदियां बह जायंगी और फिर भी बदले का खातमा नहीं होगा। हिन्दुओं को चाहिये कि अगर उनके बीच मुसलमानों का एक बच्चा भी आ जाय, तो वे उसे इस तरह प्यार करें, उसे इस तरह नहलायें-धुलायें, कपड़े पहनायें कि वह समझे कि हम अपने ही घर में हैं। ऐसा होगा तभी मुसलमान महसूस करेंगे कि हिन्दू हमारे दोस्त हो गये हैं।“
(स्रोत: गांधी जी के दुःखे हुए दिल की पुकार, प्रकाशक: प्रचार-विभाग, बिहार सरकार, प्रथम संस्करण: 1947)