नमस्कार... एक बार फिर आप लोगों के सामने हूं... और आज भी आपसे करने के लिए मेरे दिलो-दिमाग में बहुत-सी बातें उमड़ रही हैं... सबसे पहले, मेरे पिछले 'आलेख' को सराहने के लिए आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद... लेकिन मैं एक बार फिर कहना चाहूंगा कि मैंने कोई आलेख नहीं लिखा था, मैं तो अपने पाठकों से सिर्फ बातचीत कर रहा था... ख़ैर, जाने दीजिए...
आज बात करते हैं, हम लोगो के शौक के बारे में... किसी को घूमना पसंद होता है, किसी को घर पर बैठना... किसी को कुछ खेलने का शौक होता है, किसी को टीवी देखते रहने का... किसी को गाने सुनते रहना पसंद होता है, किसी को सिर्फ़ बतियाते रहना... मेरे भी कुछ शौक हैं... लिखना-पढ़ना, पुराने हिन्दी फिल्मी गाने सुनना, फिल्में देखना (लेकिन सिनेमा हॉल में कम ही जाता हूं), इन्टरनेट सर्फिंग करते रहना... लेकिन मुझे सबसे ज्यादा अच्छा लगता है कार चलाना... जब भी दिल करता है, मैं कार लेकर बीवी-बच्चों के साथ सैर पर निकल जाता हूं...
लेकिन अब दिल्ली में कार चलाते हुए डर लगने लगा है... क्या पता, कब कोई दूसरा ड्राइवर कोई बेवकूफी कर दे, और कोई अनहोनी हो जाए... हालांकि यह दूसरे भी अक्सर हम जैसे कोई दिल्ली वाले ही होते हैं, लेकिन शायद जिंदगी की कीमत को उतनी गहराई से नहीं समझ पाते... क्या पता, क्या वजह है इस लापरवाही के पीछे, लेकिन मैं हैरान होता हूं... इन लोगों को कभी अपने मां-बाप, भाई-बहन, बीवी-बच्चे याद नहीं आते क्या... इन्हें कुछ हो जाएगा तो कहां जाएंगे वे लोग, क्या करेंगे...
ज्ञान नहीं दे रहा हूँ, लेकिन मुझे तो मां-बाप, बीवी-बच्चे बहुत याद आते हैं... और हमेशा चिंता रहती है कि अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरे पीछे इनका क्या होगा... लेकिन फिर ख़याल आता है, मां-बाप, बीवी-बच्चों से प्यार तो सबको होता है, फिर ये लोग ऐसा क्यों करते हैं... जवाब नहीं मिलता...
मैंने अपनी पत्नी से इस बारे में चर्चा कि, तो उन्होंने अंदाजा लगाया - शायद इन लोगों को तेज़ गाड़ी या मोटरबाइक चलाकर सबसे आगे निकल जाने के एहसास से सुकून मिलता होगा... लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है, मैं किसी जनरल नॉलेज क्विज में फर्स्ट आया था... सर्टिफिकेट और कप लेकर जब घर पहुंचा तो पापा ऑफिस में थे, और मम्मी बाज़ार गई थी... कप जीतने का सारा मज़ा जाता रहा... अरे भाई, अगर आपको कुछ हो गया, या खुदा-न-खास्ता आप नहीं रहे, तो किस काम आएगी आगे निकल जाने की खुशी, और किसको खुश करेगा आपके सबसे आगे निकल जाने का एहसास...
पत्नी का अगला तर्क था - जल्दबाजी से गाड़ी भगाने वाले अक्सर किशोरावस्था में पहुंचे बच्चे होते हैं... शायद छोटी उम्र होने की वजह से जीवन को गंभीरता से ले ही नहीं सकते, और तेज़ गति में थ्रिल महसूस करते हैं... मेरा तर्क अब भी वही था... थ्रिल महसूस करने के चक्कर में मां-बाप को के सपनों को क्यों सूली पर चढ़ाते हो भाई लोगों... अभी हाल ही में गुड़गांव टोल रोड पर चार बच्चे एक कार में सवार थे, और एक्सीडेंट कर बैठे... एक ही बच पाया... जो तीन मरे, उनमें से किसी की भी उम्र 18 से ज्यादा नहीं थी... अब उनके मां-बाप से पूछकर देखो, कैसा लगता है बच्चों के थ्रिल का स्वाद... बच्चों के लिए भले ही गति या स्पीड थ्रिल का सबब हो, लेकिन मां-बाप के मुंह में जिंदगी-भर कड़वाहट आती रहेगी, जब भी वे थ्रिल शब्द सुनेंगे...
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ़ बच्चे ऐसा करते हैं... ट्रक ड्राइवर इस मामले में सबसे ज्यादा बदनाम होते हैं... शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए भी इन लोगों को हमेशा कोसा जाता है, लेकिन परिवार तो ट्रक ड्राइवर का भी होता है... बड़ी गाड़ी होने से यह गारंटी तो नहीं मिल जाती कि एक्सीडेंट में इन्हें कुछ नहीं हो सकता... तो फिर ये लोग ऐसा क्यों करते हैं... शायद रात-रात भर ट्रक चलाने के लिए जागना आसान लगने लगता है... लेकिन नहीं, मैंने तो सुना है, शराब पीने से स्नायु तंत्र और रिफ्लेक्सिस उतना बढ़िया काम नहीं कर सकते, जितना सामान्य हालत में करते हैं... तो फिर कैसे सम्भव है कि वे लोग इस बारे में समझते न हों... खैर, अपने और अपने परिवार के बारे में वे नहीं सोच पाते, यह अफसोसनाक है, लेकिन उन लोगों की वजह से बाकी शहर भी तो खतरे के निशान पर बैठकर सड़क पर निकलता है, उसका क्या...
एक और तर्क था पत्नी का - अब अगर वह अपने परिवार का भला नहीं सोचते, तो हमें क्या... मुझे तुरंत अपने पसंदीदा उपन्यासकार की किसी रचना की पंक्ति याद आ गई... किसी का बेटा अगर ड्रग्स लेना शुरू करता है, तो यह उसकी प्रॉब्लम है... लेकिन अगर अपनी ड्रग्स की ज़रूरत पूरी करने के लिए वह पड़ोसी की कार का स्टीरियो चुराता है, तो फिर यह सिर्फ़ कार वाले पड़ोसी की नहीं, सारी सोसाइटी की प्रॉब्लम बन जाती है... इसी तरह ट्रक ड्राइवर शराब पीने से पहले क्या सोचता है, मुझे फर्क नहीं पड़ना चाहिए... लेकिन जब वह शराब पीकर सड़क पर निकलता है, यह मेरे पूरे समाज के लिए खतरा है, सबकी समस्या है...
पत्नी ने फिर कहा, एक शराब पिए आदमी को हम (यहां 'हम' से मेरी पत्नी का तात्पर्य सारी सोसाइटी था) सड़क पर ट्रक चलाने देते हैं, एक नाबालिग़ (जो गाड़ी चलाने का अधिकारी नहीं हो सकता) को हम मोटरबाइक या कार लेकर निकलने देते हैं... क्या यह हमारी कमजोरी नहीं है... इस बार मेरे पास कोई जवाब नहीं था... सचमुच, यह हमारी भी तो कमजोरी है... चलिए माना, पुलिस वाला ट्रक वाले को नज़रअंदाज़ कर सकता है, लेकिन क्या मां-बाप भी अपनी ही नाबालिग़ संतान को नहीं रोक सकते... प्यार जताने के लिए उसके नाबालिग़ हाथ में गाड़ी की चाबी देकर वे एक ऐसी बेवकूफी करते हैं, जिसके बाद, भगवान न करे, हो सकता है, प्यार करने के लिए संतान ही न रहे...
अब पुलिस वाले क्या करेंगे, क्या नहीं, मैं नहीं जानता, लेकिन मैं आपसे, और अपने-आप से भी, वादा करता हूं, कि मेरा बेटा बालिग़ होने से पहले मेरी कार को हाथ नहीं लगा पाएगा... मैं उसको कभी किसी दूसरे की जिंदगी खतरे में डालने नहीं दूंगा... मैं कभी उसको ऐसा मौका नहीं दूंगा, कि वह ख़ुद मुझसे कहीं दूर चला जाए, क्योंकि मैं अपने बेटे से बहुत प्यार करता हूं... आप भी करते हैं न...?
विवेक रस्तोगी NDTV.in के संपादक हैं...डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.