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This Article is From Oct 19, 2020

इन तीन बड़े बयानों के साथ अमित शाह दे रहे बदलाव का संकेत

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 20, 2020 08:53 am IST
    • Published On अक्टूबर 19, 2020 15:48 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 20, 2020 08:53 am IST

भारत के सबसे मुखर राजनेताओं में से एक आजकल नरम रुख दिखा रहे हैं.कोविड-19 के संक्रमण में लंबा वक्त बीतने और अस्पताल में ज्यादा दिन तक ठहराव के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अप्रत्याशित तौर पर ज्यादा नरम रुख अख्तियार कर रहे हैं. चुनाव प्रचार के दौर में भी 55 वर्षीय राजनेता विरोधियों पर हमले नहीं कर रहे हैं. 

सीएनएन-न्यूज 18 को दिए उनके हालिया साक्षात्कार के कुछ बयानों पर गौर फरमाइए-


1.बिहार विधानसभा चुनाव में जो भी आंकड़े हों, अगर बीजेपी को भी ज्यादा सीटें मिलती हैं तो भी नीतीश कुमार हमारे मुख्यमंत्री होंगे. इसको लेकर 1 अण्णे मार्ग (मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास) पर नीतीश कुमार राहत की लंबी सांस का अंदाजा हर कोई लगा सकता है. वह चिराग पासवान के प्रभाव को कम करने की कोशिश करते दिखे, जो नीतीश कुमार के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार उतारकर उन्हें बड़ा नुकसान पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं. 

पिछले हफ्ते एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में 37 वर्षीय चिराग पासवान ने अलग ही बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी उनके हृदय में बसते हैं, जैसे कि भगवान श्रीराम, हनुमान के सीने में बसते थे. चिराग ने यह भी कहा था कि भाजपा का नेता बिहार का अगला मुख्यमंत्री होगा, जहां वोटिंग 28 अक्तूबर से शुरू हो रही है. हालांकि भाजपा लगातार नीतीश कुमार को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रही है कि वह चिराग के साथ मिलकर उन्हें नुकसान पहुंचाने का प्रयास नहीं कर रही, लेकिन सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार भी झुंझला गए थे और उन्होंने जेपी नड्डा के साथ चर्चा से इनकार कर दिया था, जो भाजपा के नाममात्र के अध्यक्ष हैं, उन्होंने जोर देकर कहा था कि वह सिर्फ शाह के साथ बातचीत कर आगे बढ़ेंगे.

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इस सबसे, विधिवत तौर पर उनके मित्र और राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अवगत करा दिया था. शाह को तब बताया गया था कि पासवान बेहद चतुराई से एक खतरनाक खेल खेल रहे हैं, बिहार में जो जीत एकदम तय दिखाई दे रही है, उस पर पानी फिर सकता है, अगर भाजपा नीतीश को सबसे ज्यादा वोट पाने से रोकने की कवायद में आधे-अधूरे ढंग से आगे बढ़ती है.

शाह ने नीतीश को सांत्वना और भरोसा दिलाया कि वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में एकमात्र व्यक्ति हैं. यह सब ऐसे वक्त हुआ जब पासवान ने पीछे हटने के कोई संकेत नहीं दिए हैं. वास्तव में सहृदयी सहयोगी के भाव में शाह को वो मिल रहा है, जो वह चाहते हैं.

2.अब तनिष्क के बहिष्कार को लेकर सोशल मीडिया पर चल रही ट्रोलिंग को लेकर शाह के रुख पर विचार करते हैं. ट्रोलिंग के जरिये दो अलग-अलग मजहबों के बीच शादी से जुड़े इस विज्ञापन पर सवाल उठाए गए थे. नफरत की राजनीति और ब्लैकमेलिंग के आगे घुटने टेक देने को लेकर आलोचना के बीच टाटा ने भारी विवाद के बीच विज्ञापन पिछले हफ्ते वापस ले लिया था.

" ऐसे छोटे-मोटे हमले भारत के सामाजिक सौहार्द्र को नहीं बिगाड़ सकते. हमारा सामाजिक ताना-बाना बेहद मजबूत है. बहुत सारे हमलों के बावजूद यह मजबूती से खड़ा है. यह अविभाज्य है. मैं मानता हूं कि किसी भी मामले जरूरत से ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई जानी चाहिए. " सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स द्वारा इस विज्ञापन को लव जिहाद को बढ़ावा देने का हथकंडा बताए जाने पर शाह ने यह प्रतिक्रिया दी थी. 

शाह का बयान इस प्रकार का था, जो किसी भी धर्मनिरपेक्ष राजनेता की ओर से सामान्य बयान माना जाता. लेकिन भाजपा ऐसे बयानों को तंज कसते हुए रुग्ण मानसिकता वाला करार देती. लेकिन यह बयान गृह मंत्री की ओर से आया था. ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक फटकार की तरह है, जो भाजपा की ट्रोल आर्मी को शायद ही पहले कभी मिली हुई होगी.
शाह का बयान राजनीतिक गलियारे में भी खूब चर्चा में रहा. पूरे नॉर्थ ब्लॉक में, जहां गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय है, वहां एक ही सवाल उठ रहा था- क्या शाह ने वस्तुतः भाजपा की आईटी सेल की बदनाम ट्रोल आर्मी को बाहर का रास्ता दिखा दिया है ?

दिल्ली में यह चर्चा तेज है कि अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह जैसे ज्वलंत मुद्दे पर केवल मोदी और शाह ही सोशल मीडिया आर्मी को चुप करा सकते हैं, जिसने पहले राजनाथ सिंह, दिवंगत सुषमा स्वराज और मेनका गांधी जैसे नेताओं पर भी बिना किसी विरोध प्रदर्शन के निशाना साधा है.

भाजपा नेता, जिनसे मैंने बात की, उनका कहना है कि तनिष्क विवाद में शाह को दखल देना पड़ा, क्योंकि मोदी सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं  का सामना करना पड़ रहा था और यह संभावित निवेशकों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से भी झटका था.

3.अब दिवंगत युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत को लेकर शाह के नए रुख को लेकर बात करें, एक ऐसा मामला जिसे साजिशन कई कहानियों के साथ बॉलीवुड कलाकारों पर निशाना साधने के तौर पर देखा गया. महाराष्ट्र से आने वाले मोदी कैबिनेट के एक मंत्री ने कहा, हमें इस बारे में रुख थोड़ा नरम करने की जरूरत थी और इस मामले में शाह से बेहतर और कौन हो सकता था.

लिहाजा शाह ने कहा, " टीआरपी के लिए मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिए. " सभी चीजों पर सोच विचार किया गया, जिससे टकराव को थोड़ा कम किया जा सका. जबकि भाजपा ने हत्या की जांच से भागने का प्रयास का मुद्दा उठाते हुए पूर्व सहयोगी उद्धव ठाकरे और मुंबई पुलिस पर महीनों तक हमला बोला.

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भाजपा ने ठाकरे को घेरने का कोई प्रयास बाकी नहीं रखा, उसने सुशांत केस का इस्तेमाल, एक तरह से भाजपा की जगह महाराष्ट्र में दो विपक्षी दलों के साथ गठबंधन बनाने वाले ठाकरे पर हमला बोलने के लिए किया. 
शाह का रुख संकेत देता है कि वह ठाकरे के साथ सुलह के लिए दरवाजे खुले ऱखना चाहते हैं, क्या महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के दलों को एक-दूसरे के लिए अब बोझिल महसूस करना चाहिए. 

इसी परिप्रेक्ष्य में शाह ने कहा था कि महाराष्ट्र के राज्यपाल (जिन्हें अक्सर केंद्र की कठपुतली करार दिया जाता है) ने राज्य में धार्मिक स्थलों को बंद रखने के उद्धव ठाकरे के फैसले पर मुद्दे से परे जाकर प्रतिक्रिया दी. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ठाकरे को लिखा था, क्या आप सेकुलर हो गए हैं. यह बयान बेहद अनुचित था. 
शाह ने कहा, "कोश्यारी बेहतर शब्दों का चुनाव कर सकते थे". शिवसेना ने तुरंत ही शाह के बयान का स्वागत किया. शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा, वह शाह की समझ की प्रशंसा करते हैं और उनके बयान के साथ यह मुद्दा अब खत्म हो गया है. 

तो शाह का बदलाव क्या है ? जब रामदास अठावले की आरपीआई के अलावा भाजपा के सभी बड़े सहयोगी दलों ने उसे छोड़ दिया, तब ऐसा प्रतीत होता है कि शाह कम से कम उन आरोपों का जवाब देते हैं कि भाजपा अपने सहयोगी दलों के प्रति कोई सम्मान प्रदर्शित नहीं करती, दिखावे के तौर पर भी नहीं. 

नए शाह अब शांत हो गए हैं, लेकिन जरा बंगाल चुनाव की कवायद तेज होने तक इंतजार करिए, उम्मद है कि शाह हमें तब पुराने तेवर में देखने को मिलेंगे.

(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)

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