वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भारत की कूटनीति कठिन मोड़ पर खड़ी है. अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर टैरिफ बढ़ाने और रूस से तेल आयात को लेकर दबाव गहराने के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा खास मायने रखती है. तियानजिन में चल रहे 25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान रविवार को हुई मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की द्विपक्षीय मुलाकात को गलवान झड़प के बाद पहली गंभीर बातचीत माना जा रहा है.
दोनों नेताओं ने तय समय 40 मिनट की बैठक को बढ़ाकर एक घंटे तक रखा. इस दौरान सीमा विवाद, डायरेक्ट फ्लाइट सेवा, मानसरोवर यात्रा, आतंकवाद और आपसी सहयोग जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई. यह मुलाकात सिर्फ भारत-चीन संबंधों को स्थिर करने की दिशा में कदम नहीं है, बल्कि वैश्विक आर्थिक दबाव और बहुपक्षीय सुरक्षा व्यवस्था के बीच एक अहम संदेश भी देती है.
प्रधानमंत्री मोदी का संदेश: भारत और चीन का भविष्य आपस में जुड़ा हुआ
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'भारत और चीन की 2.8 अरब लोगों की साझी रुचियां हैं और दोनों देशों का सहयोग पूरी मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है. हमें अपने संबंधों को किसी तीसरे देश के दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए.' उन्होंने यह भी कहा कि विवादित सीमा पर सैनिकों की वापसी के बाद शांति और स्थिरता का माहौल बन चुका है, जो आगे की बातचीत के लिए ठोस आधार प्रदान करता है. प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति को वर्ष 2026 में भारत में होने वाले शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया. इस आमंत्रण को दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

शी जिनपिंग का दृष्टिकोण: दोस्ती ही सही विकल्प
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मुलाकात के दौरान कहा कि भारत और चीन के लिए दोस्ती ही सही विकल्प है. उन्होंने जोर देकर कहा कि सीमा विवाद को आपसी रिश्तों की पहचान बनने नहीं देना चाहिए. शी ने दोनों देशों के संबंधों को 'दीर्घकालिक और रणनीतिक दृष्टिकोण' से देखने की आवश्यकता पर बल दिया.
उन्होंने कहा, 'चीन और भारत दो प्राचीन सभ्यताएं हैं और दुनिया के दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश हैं. इसलिए ‘ड्रैगन और हाथी' को एक साथ आकर मित्र और अच्छे पड़ोसी बनना चाहिए.' इसके साथ ही उन्होंने बहुपक्षीयता के समर्थन और एक बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.
शी जिनपिंग ने SCO पर क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने की जिम्मेदारी को भी रेखांकित किया. उनका कहना था कि संगठन केवल आर्थिक और राजनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य क्षेत्रीय देशों के बीच विश्वास बढ़ाना और संघर्षों को रोकना भी है.

सीमा सुरक्षा और आतंकवाद पर बातचीत
प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक के दौरान सीमा-पार आतंकवाद को प्रमुख मुद्दा बताया. उन्होंने कहा कि इसका प्रभाव केवल भारत पर ही नहीं, बल्कि चीन पर भी पड़ता है. इसलिए दोनों देशों के लिए यह आवश्यक है कि इस चुनौती से निपटने में आपसी समझ और सहयोग को मजबूत किया जाए. पीएम मोदी ने विशेष रूप से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए आतंकवाद से लड़ाई को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर जोर दिया. इस संदर्भ में चीन की ओर से सकारात्मक रुख ने भारतीय कूटनीति के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है. यह पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जो सीमा-पार आतंकवाद को लगातार बढ़ावा देता रहा है.
द्विपक्षीय बैठक का ऐतिहासिक महत्व
यह मुलाकात उस समय हुई है जब वैश्विक अस्थिरता बढ़ रही है और अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाए जाने के कारण दोनों देशों की अंतरराष्ट्रीय रणनीति पर दबाव बढ़ा है. SCO शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं की बैठक ने वैश्विक मंच पर एकजुटता और सामंजस्य बनाए रखने का स्पष्ट संदेश दिया.
गलवान घाटी की पिछली झड़पों के बाद यह पहली गंभीर द्विपक्षीय बैठक है. दोनों पक्षों ने सीमा पर सैनिकों की वापसी और शांति बनाए रखने के लिए सहमति जताई है. यह कदम भारत और चीन के बीच स्थिरता स्थापित करने के लिए रणनीतिक पहल के रूप में देखा जा रहा है.

चीनी मीडिया का कवरेज और दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा पर चीनी सरकारी मीडिया ने महत्वपूर्ण कवरेज दिया. Global Times ने इस यात्रा को 'चीन और भारत सहयोगी हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं: शी' शीर्षक से प्रकाशित किया. इस लेख में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के द्विपक्षीय बैठक संबंधी बयान का हवाला देते हुए बताया गया कि चीन और भारत को अच्छे पड़ोसी और एक-दूसरे की सफलता में सहयोगी बनना चाहिए.
चीन के सरकारी मीडिया Xinhua ने भी SCO शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी का स्वागत किया. रिपोर्ट में बताया गया कि शी जिनपिंग ने दोनों देशों को अपने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखने, और स्थायी, सुदृढ़ और स्थिर विकास के लिए प्रयासरत रहने पर जोर दिया.
पत्रकारों और विश्लेषकों की राय
SCO शिखर सम्मेलन में उपस्थित चीनी पत्रकारों ने भी बैठक के महत्व को रेखांकित किया. Zhang Xiao ने कहा, 'हम पड़ोसी राष्ट्र हैं और दुनिया के प्रमुख विकासशील देश हैं. हमारी अर्थव्यवस्थाएं बड़ी हैं और व्यापार सहयोग व्यापक है. हमें हाथ मिलाकर काम करना चाहिए.'
Wu Lei, चीनी मीडिया CGTN के मुख्य संपादक ने बताया कि दोनों नेताओं की SCO में भागीदारी वैश्विक व्यवस्था में बदलाव के संदर्भ में महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि सीमा मुद्दा व्यापक संबंधों पर हावी नहीं होना चाहिए और प्रत्यक्ष उड़ानें फिर से शुरू होने की उम्मीद है.
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
इस बैठक ने न केवल भारत और चीन, बल्कि पूरे SCO और वैश्विक समुदाय के लिए संदेश दिया है. यह दर्शाता है कि दोनों एशियाई शक्तियां बहुपक्षीय सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दे रही हैं. SCO शिखर सम्मेलन का आयोजन और दोनों नेताओं की भागीदारी वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सीमा मुद्दों को सुलझाने के साथ-साथ आपसी सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है. दोनों नेताओं ने कहा कि आने वाले वर्षों में भारत–चीन संबंधों को संवेदनशीलता, सम्मान और विश्वास के आधार पर आगे बढ़ाया जाएगा. इसके साथ ही व्यापार, संस्कृति, पर्यटन और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की दिशा में भी कई पहल करने पर सहमति बनी है.
विशेष रूप से वर्ष 2026 में भारत में होने वाले शिखर सम्मेलन का आमंत्रण, दोनों देशों के बीच संबंधों को नए मुकाम तक पहुंचाने की रणनीतिक सोच का प्रतीक है. यह बैठक इस बात का संकेत है कि गलवान घाटी की झड़प के बाद भारत–चीन संबंध धीरे-धीरे सामान्य और मजबूत हो रहे हैं.
तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन और प्रधानमंत्री मोदी–शी जिनपिंग की द्विपक्षीय बैठक ने भारत–चीन संबंधों में नए युग की शुरुआत का संकेत दिया है. यह मुलाकात न केवल द्विपक्षीय समझ को मजबूती देने का माध्यम बनी है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और बहुपक्षीय दृष्टिकोण को सुदृढ़ करने में भी सहायक साबित होगी. भारत और चीन के बीच यह संवाद भविष्य में क्षेत्रीय स्थिरता, शांति और विकास के लिए महत्वपूर्ण आधार तैयार करेगा.
(डिस्क्लेमर : लेखक देश की राजनीति पर पैनी नजर रखते हैं. वो राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.)