शरद शर्मा की खरी खरी : किसको लगा झटका? किसको मिली राहत?

नई दिल्‍ली:

दिल्ली में अधिकार की लड़ाई को लेकर आज जब मैं रिपोर्टिंग कर रहा था तो बीच में कुछ समय निकालकर सोशल मीडिया और बाकी न्यूज़ चैनल्स को देखा तो ऐसा लगा कि कहीं मैंने तो कोई गलत रिपोर्ट नहीं की है?(गलती तो किसी से भी हो सकती है)। लेकिन चलिए अच्छी बात रही कि मैंने कोई गलत रिपोर्ट नहीं चलाई क्योंकि मैंने वही रिपोर्ट किया जैसा कोर्ट ने कहा था और जो बहस चलती दिख रही थी वो नज़रिये और समझ के कारण थी।

बहस ये चल रही थी कि झटका किसको लगा? किसको राहत मिली? अदालत का आदेश किसके पक्ष में गया और किसके खिलाफ?

रिपोर्टिंग के समय सिर्फ रिपोर्टिंग करके अब ज़रा अपनी समझ बता देता। क्योंकि मैं आज सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट दोनों में मौजूद था।

झटका
सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को झटका लगा क्योंकि कोर्ट ने दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच के अधिकार क्षेत्र पर न कोई टिपण्णी की और ना दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर कोई रोक लगाई जिसमें कहा गया था कि एसीबी केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकती है जबकि केंद्र सरकार की दलील ही ये है कि एसीबी का दायरा सिर्फ दिल्ली सरकार के अधिकारियों/कर्मचारियों तक सीमित है।

राहत
अब ज़ाहिर सी बात, जो केंद्र सरकार के लिए झटका है वो दिल्ली सरकार के लिए राहत है। दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्रांच फिलहाल के लिए दिल्ली के अंदर जैसे काम कर रही थी वैसे ही करेगी और केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार किसी के भी अधिकारियों और कर्मचारियों को करप्शन के मामलों में पकड़ सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस फैसले की तारीफ़ भी की जिसमें उसने दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल को ज़मानत ना देने का फैसला सुनाया था। ध्यान रहे कि असल में इस पुलिस वाले की ज़मानत की सुनवाई के आदेश में हाई कोर्ट ने एंटी करप्शन ब्रांच का दायरा बताया था।

झटका
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर कोई रोक नहीं लगाई। ये दिल्ली सरकार के लिए झटका है क्योंकि कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा कि सरकार अपने ट्रान्सफर वाले आदेश प्रस्ताव के रूप में एलजी को भेजे और एलजी इस पर चर्चा कर सकते हैं।

राहत
केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर कोई रोक नहीं लगी इसलिए उसके लिए राहत की बात है। यानी फिलहाल के लिए ये नोटिफिकेशन लागू रहेगा जिसके तहत दिल्ली में एलजी ही अंतिम फैसला लेंगे।

झटका
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट जब इस मामले पर सुनवाई करे तो वो इस बात पर ध्यान ना दे कि इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट अपने आदेश की एक टिप्पणी में नोटिफिकेशन को 'संदिग्ध' बता चुकी है। हाई कोर्ट इस मामले की स्वतंत्र सुनवाई करे। ये दिल्ली सरकार को झटका है क्योंकि इसके दम पर वो पॉलिटिकल लड़ाई को मज़बूत बनाकर आगे बढ़ रही थी और आक्रामक हो रही थी।

राहत
केंद्र सरकार को राहत ये है कि जबसे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में टिपण्णी करके नोटिफिकेशन संदिग्ध जताया था तबसे केंद्र सरकार सवालों के घेरे में आ गयी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में इस टिपण्णी को निष्प्रभावी रखने को कहकर कुछ राहत दी।

झटका
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार अपने हाल ही के दो ट्रान्सफर वाले आदेश प्रस्ताव के रूप में एलजी को भेजे। अगर इसको इस तरह से समझें और देखें कि अभी और आगे सरकार नाम सुझाएगी और एलजी चर्चा करके अंतिम मुहर लगाएंगे। तो इसका मतलब ये हुआ कि एलजी अपनी तरफ से कोई नाम नहीं लाएंगे? बस सरकार के नामों पर ही चर्चा होगी? अगर हां तो ये केंद्र सरकार को झटका है

राहत
अगर ऊपर के पॉइंट को ध्यान में रखकर ये मान लें कि यही सही व्याख्या होगी तो ये दिल्ली सरकार को राहत होगी क्योंकि फिर वो अपने नाम सुझा पाएगी और जो कहा जा रहा है नोटिफिकेशन के ज़रिये भी कि एलजी खुद फैसला ले सकते हैं और चर्चा भी मंत्रिमंडल या सीएम से करनी है या नहीं ये उनका अधिकार है तो उस परिस्थिति में तो दिल्ली सरकार के लिए ये स्थिति राहत भरी होगी, कहां सरकार नाम सुझाएगी।

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तो कुल मिलाकर बात नज़रिये और समझ की है। एक बात ये भी है कि मीडिया में कोर्ट की खबरें झटका, राहत और फटकार जैसे शब्दों के इर्द गिर्द घूमती हैं इसलिए जो दिख रहा है वो ऐसा है।