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This Article is From Aug 17, 2016

रियो में गहराते 'अंधेरे' को उजाले में बदल सकती हैं सिंधु

Shailesh Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 17, 2016 15:36 pm IST
    • Published On अगस्त 17, 2016 15:25 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 17, 2016 15:36 pm IST
सुबह चार बजे के आसपास का समय सिंधु की जिंदगी बदलने वाला रहा है. आज से नहीं, वर्षों से. पीवी रमन्ना इस वक्त अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर गोपीचंद एकेडमी जाया करते थे. घर बहुत दूर था तो उन्होंने एकेडमी के आसपास घर लेने का फैसला किया था. कभी-कभी बच्ची का मन नहीं होता था. लेकिन खुद बेहतरीन वॉलीबॉल खिलाड़ी रहे रमन्ना को पता था कि बड़ा खिलाड़ी बनना है तो आराम से प्यार छोड़ना पड़ेगा. मां विजया अपनी बच्ची को हमेशा बताती थीं कि बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए क्या जरूरी है. ..और फिर कोच गोपीचंद, उनके लिए तो शायद ही कभी सुबह देर से शुरू होती हो. उनकी पत्नी पीवीवी लक्ष्मी कहती भी हैं कि रात में दो बजे उठकर भी गोपी ये तैयारी कर रहे होते हैं कि आज अपने शिष्यों के लिए क्या करना है.

सुबह का वक्‍त ही सूरज निकलने का होता है
गोपी जिसकी तैयारी इतने सालों से करते रहे हैं, वो सच होने के करीब है. सच के करीब पहुंचने का समय भी वही रहा जो हर रोज अभ्यास का समय होता है. जाहिर है, अभ्यास ही है, जिससे सपने सच होते हैं. रियो में भले ही वो देर शाम हो, लेकिन भारत में सुबह का वही वक्त था, जब सूरज निकलने को होता है. उस वक्त अंधेरा घना होता है. उस अंधकार को चीरते हुए सूरज अपनी किरणें बिखेरता है. सिंधु ने भारतीय खेलों के लिए वही किया. पदक के जीरो वाले अंधेरे को भेदते हुए किरणें लाने की कोशिश. वैंग यीहान किसी भी लिहाज से कमजोर खिलाड़ी नहीं थीं. वे लंदन ओलिंपिक्स के फाइनल में पहुंची थीं. लेकिन सिंधु के बारे में कहा जाता है कि बड़ी खिलाड़ी से उन्हें डर नहीं लगता. वे छोटी खिलाड़ी के साथ कई बार कमजोर खेल जाती हैं. 22-20 और 21-19 का स्कोर बहुत कुछ बताता है. पिछड़कर वापसी करना भी सिंधु की मानसिक मजबूती को बताता है. दरअसल, पिछले दो मैच सिंधु की जिंदगी के दो बेहतरीन मुकाबलों में हैं. बेहतरीन मैचों की हैट्रिक हो जाए, तो भारत के लिए पदक पक्का हो जाएगा.

सिंधु के वापसी करते ही गोपी की मुट्ठियां बंध गईं
वैंग यीहान के खिलाफ पहले गेम में पिछड़ने के बाद ब्रेक हुआ. गोपीचंद ने उनके कान में कुछ कहा. उसके बाद वे बैठे. सिंधु ने वापसी की. गोपी की मुट्ठियां बंधी. कुछ बुदबुदाए. पता नहीं, वे ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे या अपनी कही बातें दोहरा रहे थे. लेकिन वह समय था जो बताता है कि एक कोच और खिलाड़ी के बीच तालमेल का क्या मतलब होता है. एक कोच के लिए जीत का क्या मतलब होता है. पिछले ओलिंपिक में साइना नेहवाल के जरिए अपने ओलिंपिक पदक का सपना पूरा होने की बात कर रहे गोपीचंद के लिए अब नए सपने की क्या अहमियत है. यह सारी कहानी एक तस्वीर साफ कर रही थी, जहां मुट्ठियां भिंची हुई थीं. होठ कुछ बुदबुदा रहे थे. ..और कोर्ट में सिंधु के स्मैश वैंग यीहान की बढ़त को तेजी से कम कर रहे थे.

वरीयता में सिंधु से ऊपर हैं ओकुहारा
चीन की 'दीवार' गिराने के बाद अब उन्हें जापान की नोजोमी ओकुहारा से खेलना है. वरीयता में तीन स्थानों का अंतर है. ओकुहारा छठे नंबर हैं. सिंधु नौवें पर. रिकॉर्ड जापानी खिलाड़ी के पक्ष में है. चार मुकाबलों में सिंधु ने सिर्फ एक जीता है. वह भी चार साल पहले. तब अंडर 19 इवेंट में सिंधु ने ओकुहारा को मात दी थी. लेकिन उसके बाद तीन मैचों में वे हारी हैं. जीत और हार वाले चारों मैच तीन गेम तक गए हैं यानी दोनों में किसी ने एक-दूसरे को सीधे गेम में नहीं हराया है. ये रिकॉर्ड्स क्या इशारे करते हैं? दरअसल, ये ओकुहारा का खेल बताते हैं. ओकुहारा के लिए बैडमिंटन कोर्ट पर पहला लक्ष्य होता है कि रिटर्न किया जाए. उनके रिटर्न विपक्षी को हताश करने वाले होते हैं. जब आपके जबरदस्त स्मैश पर भी रिटर्न आ जाए, तो धीरे-धीरे हताशा आती है जो ओकुहारा के विपक्षी की हार के लिए काफी होती है. ओकुहारा की यही खासियत पिछले एक-डेढ़ साल में उन्हें फायदा पहुंचाने वाली रही है. रैंकिंग में वे चार पर पहुंच गई थीं.

'अपने' दिन किसी को भी हारा सकती हैं सिंधु
सवाल यही है कि क्या सिंधु उन्हें मात दे पाएंगी? सिंधु को नेचुरल टैलेंट का नमूना माना जाता है. नैचुरल टैलेंट की खासियत यह होती है कि यह किसी को भी हरा सकता है. लेकिन कई बार कमजोर खिलाड़ी के खिलाफ भी हार सकता है. सिंधु ने करियर में यही किया है. कंसिस्टेंट नहीं होना उनकी समस्या रही है. लेकिन बड़े मौकों पर उनका खेल बड़ा होता है. यह वे दो बार वर्ल्ड चैंपियनशिप के मेडल जीतकर दिखा चुकी हैं. इसमें कोई शक नहीं कि टैलेंट के मामले में किसी भी दिन वे सायना से बेहतर हैं. कड़ी मेहनत भी उन्होंने की है. फोकस के मामले में उनका बेहतर होना उनको विश्व का शीर्ष खिलाड़ी बना सकता है. पिछले कुछ समय में वे चोट से परेशान रही हैं. उन्होंने एक तरह से वापसी की है. वापसी के बाद वो ज्यादा आक्रामक नजर आई हैं, जिसका फायदा उन्हें अब तक मिला है.

सिंधु के लिए जरूरी है कि मैच पर फोकस रखें. उनके लिए जरूरी है कि तगड़े स्मैश पर भी रिटर्न आ जाए, तो फ्रस्ट्रेशन न आने दें. उनके लिए जरूरी है कि पिछले दो मैचों के खेल की लय को लगातार तीसरे मैच में भी बने रहने दें. ये हुआ तो वह अंधेर छंटेगा, जो रियो ने भारतीय खेलों पर बिखेरा है. वो जीरो हटेगा, जो भारत की पहचान बन गया है. सूरज की किरणें बिखरेंगी. गोपीचंद की एक और शिष्या पदक लेकर आएगी. बस, एक और कदम सही पड़ने की जरूरत है. हमारे लिए ओलिंपिक में चूकने की ढेरों कहानियां बिखरी पड़ी हैं. अब चूकने की नहीं, सही निशाना लगाने का समय है....

शैलेश चतुर्वेदी वरिष्‍ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं...

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