सीबीआई की पार्वती और पारो में किसे चुनेंगे देवदास हुजूर...
राज्य सरकार यही साबित कर दे कि उसके चयन आयोग ने 44 लाख नौकरियों का विज्ञापन निकाला है. राजस्थान का कोई पत्रकार ही बता दे. पत्रिका और भास्कर का संपादक बता दे. राजस्थान का ही कोई परीक्षार्थी भी बता दे कि क्या उसने इतने विज्ञापन देखे हैं. ऐसा लगता है कि राजनीतिक दल अब झूठ पर ही निर्भर हो चुके हैं. कई तरह के झूठ बोले जाते हैं ताकि नए और अप्रभावित वर्ग को लगे कि उसे लाभ नहीं मिला तो कोई बात नहीं, दूसरे को मिला है. नौजवानों को लगे कि मुझे नौकरी नहीं मिली तो क्या हुआ, भारत का विदेशों में नाम हुआ है. जो बिज़नेस में हैं उन्हें अच्छा लगे कि चलो उनका धंधा डूब गया तो कोई बात नहीं, नौजवानों को तो नौकरी मिली है. कुछ तो अच्छा हो रहा है.
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'प्रधानसेवक' ही भारत के 'प्रधान इतिहासकार' घोषित हों...
मुख्यमंत्री भी साबित नहीं कर सकती हैं कि उनकी सरकार ने 44 लाख नौकरियां दी हैं. राजस्थान बीजेपी ने वसुंधरा राजे के ट्विटर अकाउंट को भी टैग किया है. प्रधानमंत्री भी साबित नहीं कर सकते हैं कि दिल्ली में उनकी सरकार ने 44 लाख नौकरियां दी हैं. आज के समय में कोई भी राज्य सरकार चाहे वह किसी पार्टी की हो, दावा नहीं कर सकती है और न साबित कर सकती है कि उसने पांच साल में 44 लाख नौकरियां दी हैं.
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