लखीमपुर खीरी में पांच लोगों की हत्या दुर्घटना नहीं थी, साज़िश थी. इस साज़िश में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा का भी नाम है बल्कि एसआईटी की रिपोर्ट में पहला नाम आशीष मिश्रा का ही है. एसआईटी की रिपोर्ट में 13 लोगों का नाम आया है. लखीमपुर में मर्डर के वीडियो को दुर्घटना की आड़ में खारिज किया जा रहा था. गोदी मीडिया की फौज किसानों की हत्या के इस वीडियो को खारिज करने के लिए किसानों को ही उग्रवादी बता रही थी. एसआईटी की रिपोर्ट में साफ-साफ लिख दिया गया है कि किसानों की हत्या जानबूझ कर की गई थी. यह कोई दुर्घटना या लापरवाही नहीं थी. दलजीत सिंह, गुरविंदर सिंह लवप्रीत सिंह और नछत्तर सिंह की हत्या की गई थी. थार जीप मंत्री अजय मिश्रा के नाम से दर्ज है. इसी जीप ने इन किसानों को पीछे से आकर कुचल दिया और इनकी हत्या हो गई. कई किसान घायल भी हो गए.
एसआईटी की रिपोर्ट में 13 लोगों का नाम आया है. इनमें से कई लोग मंत्री अजय मिश्रा के गांव के हैं और कुछ लखीमपुरी खीरी के भी हैं. लखनऊ से भी हैं और गाज़ीपुर से हैं. इस रिपोर्ट पर निरीक्षक विद्याराम दिवाकर के दस्तखत हैं जिन्होंने लिखा है कि अब तक की विवेचना और संकलित साक्ष्यों से यह प्रमाणित हुआ कि उपरोक्त अभियुक्तगणों द्वारा आपराधिक कृत्य की लापरवाही एवं उपेक्षा से नहीं बल्कि जानबूझकर पूर्व से सुनियोजित योजना के अनुसार जान से मारने के नियत से कारित किया है, जिससे पांच लोगों की मृत्यु हो गयी है और कई गम्भीर रूप से घायल हुये है एवं कई मजरूवों के फ्रैक्चर होना पाया गया.
एसआईटी की रिपोर्ट है. कोर्ट का फैसला नहीं. इतना अंतर सभी समझते हैं लेकिन क्या यह रिपोर्ट काफी नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आशीष मिश्रा के पिता गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा का मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दें.
काशी में गंगा में डुबकी लगाते हुए प्रधानमंत्री अगर आस्था की पवित्रता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे हैं तो इन्हीं से यह भी उम्मीद की जाती है कि वे संवैधानिक नैतिकता के प्रति आस्था का प्रदर्शन भी करें. मतलब धर्म का नाम लेकर आप संवैधानिक अनैतिकताओं से नहीं बच सकते. प्रधानमंत्री जी, गंगाजी से ही पूछ लीजिए कि थार जीप अजय मिश्रा के नाम से दर्ज है और अब तो एसआईटी की रिपोर्ट में भी लिखा गया है कि अजय मिश्रा के बेटे और उसके साथियों ने किसानों की हत्या की साज़िश की है. गंगा जी से ही पूछ लीजिए कि इंडियन एक्सप्रेस, बिजनेस स्टैंडर्ड, दैनिक भास्कर और पायनिर में छपा है कि फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट बताती है कि आशीष मिश्रा और अंकित दास की बंदूक से गोली चली थी. गंगा की सौंगध का मतलब ही पवित्रता और नैतिकता से होता है, पाप के नाश से होता है. 55 कैमरों से प्रसारित इन दृश्यों के बीच प्रधानमंत्री से एक सवाल तो बनता है कि लखीमपुर खीरी में जब जीप से कुचल कर किसानों की हत्या की गई, बीजेपी के एक कार्यकर्ता की हत्या की गई, एक पत्रकार की हत्या की गई तब क्या उन्होंने अपने मंत्री अजय मिश्रा से पूछा था? पूछा था तो इसकी जानकारी सार्वजनिक रूप से नहीं है, उनके नाम से नहीं है. क्या प्रधानमंत्री एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद अजय मिश्रा से पूछेंगे, उन्हें मंत्री पद से हटाएंगे. या चुनाव की नैतिकता के इस सीज़न में धर्म के नाम पर संवैधानिक नैतिकता से भरे इन सवालों को टाल जाएंगे.
अगर आशीष मिश्रा ने किसानों की हत्या की साज़िश की है तो क्या यह जानने का विषय नहीं है कि आशीष के पिता और गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को उस बात की जानकारी थी या नहीं? पिता गृह राज्य मंत्री हैं. यह संयोग ही काफी है कि इस सवाल की पड़ताल की जाए कि कहीं बेटे ने बाप के भरोसे यह कदम तो नहीं उठाया और उठाया तो क्या पिता को उसकी जानकारी थी? क्या वाकई प्रधानमंत्री जी यह नहीं जानना चाहते होंगे कि अजय मिश्रा इस साज़िश में शामिल है या नहीं? इस घटना के बाद जो हिंसा हुई थी उसमें बीजेपी के कार्यकर्ता शुभम मिश्रा और श्याम सुंदर की हत्या हुई थी. क्या वे अपने कार्यकर्ताओं के लिए भी नहीं जानना चाहेंगे? क्या कभी उन्होंने इस मसले पर अजय मिश्रा से बात की है? क्या वे देश को बताना चाहंगे कि उन्हें अजय मिश्रा की बेगुनाही पर भरोसा है. किसी को वर्षों इस आधार पर ज़मानत नहीं दी जाती है कि जेल से बाहर आने के बाद जांच को प्रभावित कर सकेगा.
जहां देश की पुलिस हाज़िरी लगाती हो, वहां आशीष मिश्रा के पिता बैठते हैं और उन्हें अपने गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी का विश्वास प्राप्त है तो कैसे मान लिया जाए कि जांच प्रभावित नहीं होगी, क्या उन्हें सुप्रीम कोर्ट की फटकार याद नहीं जब कोर्ट ने कहा था कि पुलिस मुख्य आरोपी को बचाने का प्रयास कर रही है.
इस घटना के वीडियो ही पर्याप्त थे कि प्रधानमंत्री जांच पूरी होने तक एक राज्य मंत्री को बर्खास्त कर सकते थे. यह वो परिपाटी है जिसका उदाहरण देकर एक दिन हत्यारा भी कहेगा कि मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देगा.
तेजिंदर सिंह विर्क लखीमपुर खीरी में किसानों के प्रदर्शन के नेता थे. उस दिन उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का दौरा था और किसान उनका विरोध कर रहे थे. गाज़ीपुर बॉर्डर के भी मुख्य आयोजकों में से एक थे तेजिंदर सिंह विर्क. यह वीडियो अगर इंटरनेट पर वायरल होकर नहीं पहुंचता तो आप कितने झूठ को सच मान लेते. पहले फ्रेम में लाल पगड़ी वाले तेजिंदर सिंह विर्क दिखते हैं. उनके साथ दो नौजवान चल रहे हैं. अब आप देखते हैं कि जीप पीली पगड़ी वाले सरदार नछत्तर सिंह को टक्कर मारती है और वे बोनट पर जा उछलते हैं. जीप आगे निकल जाती है और पीछे से आ रही कार भी आगे निकल जाती है. इसके बाद आप देखते हैं कि लोग यहां वहां गिरे पड़े हैं. अब इसी वीडियो में आपको यह वाला वीडियो जोड़ देता हूं जब विर्क को जीप टक्कर मारती है. विर्क ने बताया कि पत्रकार श्याम सुंदर ने सड़क के बीच बुला लिया था कि इंटरव्यू करेंगे. तभी जीप टक्कर मारती है. पत्रकार श्याम सुंदर की भी मौत हो गई. विर्क ने बताया कि टक्कर के बाद जब होश आया तो लोग चिल्ला रहे थे कि मोनू मिश्रा यानी आशीष मिश्रा ने गाड़ी चला दी. वहां उन्होने गोली चलने की भी आवाज़ सुनी थी. गंभीर रूप से घायल तेजिंदर सिंह विर्क को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल लाना पड़ा जहां उनकी ब्रेन सर्जरी की गई. 17 दिनों तक वे मेदांता अस्पताल में भर्ती रहे. सर पर 35 टांके लगे हैं. तेजिंदर सिंह विर्क अभी तक ठीक नहीं हुए हैं.
विर्क ने तब भी कहा था और अब भी कहा है कि प्रशासन से बात हो गई थी कि जिस रास्ते से किसान लौट रहे थे उसे लेकर अधिकारियों के साथ सहमति हो गई थी कि उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या का काफिला नहीं लौटेगा. उसके बाद भी आशीष मिश्रा की थार जीप आती है और किसानों को कुचल देती है. विर्क शुरू से कह रहे हैं कि हत्या की साज़िश थी और मंत्री को बर्खास्त कर गिरफ्तार किया जाना चाहिए.
2 महीने 11 दिनों बाद आई एसआईटी की रिपोर्ट कह रही है कि लखीमपुर की घटना हत्या की साज़िश थी. सुप्रीम कोर्ट ने अगर फटकार न लगाई होती, रिटायर्ड जज से जांच कराने पर जो़र न दिया होता तो इतनी सच्चाई भी सामने नहीं आती. विर्क इस केस में मुख्य गवाह हैं. कोर्ट ने कहा है कि गवाहों को सुरक्षा दी जाए लेकिन विर्क को सुरक्षा नहीं दी गई है.
संयुक्त किसान मोर्चा ने गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी की मांग की थी. विपक्ष के नेताओं राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव ने गिरफ्तारी और बर्खास्तगी की मांग की थी. अजय मिश्रा टेनी प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच पर नहीं थे, गृह मंत्री अमित शाह के साथ मंच पर थे. क्या प्रधानमंत्री इस घटना के कारण अजय मिश्रा के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते?
लखनऊ में देश भर के पुलिस प्रमुखों की बैठक हुई थी. उसके बाद सामूहिक तस्वीर भी ली गई थी. तस्वीर में सारे पुलिस अधिकारी हैं, प्रधानमंत्री हैं, गृहमंत्री अमित शाह हैं, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय हैं, गृह राज्य मंत्री नितिन प्रमाणिक हैं मगर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा नहीं हैं? सिर्फ एक मंत्री नहीं हैं. प्रधानमंत्री अजय मिश्रा से बच रहे हैं या उन्हें देखकर अजय मिश्रा गायब हो जा रहे हैं? जब मंच साझा नहीं कर सकते तो मंत्रिमंडल में दोनों कैसे साझा करते होंगे? जब इतनी दूरी बरती जा रही है तो अजय मिश्रा को बखास्त क्यों नहीं किया जा रहा है.
यूपी चुनाव के समय प्रचार के लिए प्रधानमंत्री मोदी लखीमपुरी खीरी तो जाएंगे ही. क्या वहां भी मंच से इलाके के सांसद अजय मिश्रा टेनी गायब कर दिए जाएंगे? क्या यह एक मंत्री और एक सांसद के लिए अपमान का विषय नहीं होगा? कि इलाके में प्रधानमंत्री प्रचार करने आए हैं और मंत्री को कहीं छुपना पड़ रहा है. इससे बेहतर अजय मिश्रा को खुद इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए या उन्हें प्रधानमंत्री या गृहमंत्री ने कहा होगा कि इस्तीफा देने की ज़रूरत नहीं है. छापा पड़ जाता है, घोटाले में नाम आता है तो मंत्री इस्तीफा दे देते हैं, ED के डर से विपक्ष के नेता पार्टी बदल लेते हैं, लेकिन अजय मिश्रा मंत्रिमंडल में बने हुए हैं?
अजय मिश्रा के पुराने बयानों को याद कीजिए. जब वे दो मिनट में सुधर जाने की धमकी दे रहे थे, इलाके से खाली करा देने की धमकी दे रहे थे, क्या उनका बयान उस साज़िश का हिस्सा नहीं है, उस साज़िश के लिए बैकग्राउंड नहीं बनाता है जिसके तहत किसानों को कुचल दिया गया, एक पत्रकार को कुचल दिया गया. जिसके बाद की हिंसा में बीजेपी के दो कार्यकर्ता मारे गए और ड्राईवर हरिओम की हत्या हुई. 25 सितंबर का भाषण ही काफी था कि संवैधानिक मर्यादा की बात करने वाले प्रधानमंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त कर देते.
दो मिनट में सुधार देने की भाषा गृह राज्य मंत्री की नहीं हो सकती है, अब अगर धर्म की नैतिकता की आड़ में संवैधानिक नैतिकता इस स्तर पर आ गई है तो अलग बात है लेकिन कोई मंत्री इस तरह से ललकारता फिरे और प्रधानमंत्री उसका बचाव करें तब तो फिर लोटा लेकर गंगा से ही प्रश्न करना होगा. क्योंकि प्रधानमंत्री ने तो सात साल से प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है. अजय मिश्रा ने की थी इस घटना के बाद और किसानों पर ही हत्या का आरोप मढ़ दिया था.
किसानों को उग्रवादी कह रहे हैं, बब्बर खालसा की मौजूदगी बता रहे हैं. अजय मिश्रा गृह राज्य मंत्री हैं. उन्हें बताना चाहिए कि बब्बर खालसा के मौजूद होने की रिपोर्ट किसने दी है? क्या यह आईबी की रिपोर्ट है? तो बताना चाहिए कि फिर कार्रवाई क्यों नहीं हुई, इसके नाम पर किसानों को कुचला क्यों गया?
एसआईटी की रिपोर्ट में लिखा है कि अभियुक्त नंबर 1 आशीष मिश्रा उर्फ मोनू पुत्र अजय मिश्रा टेनी, लवकुश पुत्र रामकिशोर, आशीष पांडे पुत्र रामगोपाल, शेखर भारती पुत्र राजकुमार, अंकित दास पुत्र गोपारकृष्ण, लतीफ उर्फ कमरुद्दीन, शिशुपाल पुत्र बहोरीलाल, नंदन सिंह पुत्र बच्ची सिंह जेल में हैं. अब तक की विवेचना और संकलित साक्ष्यों से यह प्रमाणित हुआ कि उपरोक्त अभियुक्तगणों द्वारा आपराधिक कृत्य की लापरवाही एवं उपेक्षा से नहीं बल्कि जानबूझकर पूर्व से सुनियोजित योजना के अनुसार जान से मारने के नियत से कारित किया है, जिससे पांच लोगों की मृत्यु हो गयी है और कई गम्भीर रूप से घायल हुये हैं. यह वीडियो न होता तो गोदी मीडिया किसानों को हत्यारा साबित कर चुका था. महंगाई और बेरोज़गारी पर चुप रहने वाला गोदी मीडिया धार्मिक कार्यक्रमों में ऐसे उतर जाता है जैसे इसकी आड़ में लोग भूल जाएंगे और सवाल नही करेंगे. धर्म की आड़ में गोदी मीडिया छिप रहा है ठीक वैसे ही जैसे पिताजी को देख कर कुछ बच्चे बागवानी करने लगते हैं ताकि पिताजी को लगे कि बच्चा अच्छा काम कर रहा है और परीक्षा का नंबर नहीं पूछेंगे. काशी में गोदी मीडिया की पत्रकारिता का रंग आपने देखा होगा. धर्म की आड़ ले लेता है ताकि कोई उसे गलत न कहे.
योगेंद्र यादव कहते हैं, 'ये सब हो रहा है किसान और सुप्रीम कोर्ट के दबाव के कारण. धीरे-धीरे सच सामने आने लगा है कि आशीष मिश्रा ने जानबूझकर किसानों को कुचला. पर इसका साज़िशकर्ता केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी है. टेनी ने घटना से 5 दिन पहले किसानों के खिलाफ़ भड़काऊ भाषण दिया. फिर घटना के दिन किसानों के देखकर गंदे इशारे किए. हम बीजेपी का बॉयकॉट जारी रखेंगे. हम हर किसान को यूपी में बताएंगे कि बीजेपी के मंत्री अजय मिश्रा टेनी हत्यारा है. हम बीजेपी का विरोध जारी रखेंगे.'
योगेंद्र की यह बात सही है. आप अक्तूबर और नवंबर महीने में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से जुड़ी खबरों को सर्च कर देख लीजिए. याद भी होना चाहिए. चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने हर सुनवाई में यूपी सरकार को फटकारा था. बुनियादी बातों की कमी की तरफ इशारा किया था और कहा था कि मुख्य आरोपी को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. कोर्ट ने कहा था कि पूरे बेंच की राय है कि हत्या के आरोपी के साथ अलग व्यवहार क्यों हो रहा है. क्या पुलिस हत्या के अन्य आरोपी के साथ इस तरह का बर्ताव करती है.
32 साल, 20 साल और 24 के नौजवान किसानों को कुचल दिया गया. एक किसान की उम्र साठ साल की थी. दलजीत सिंह, गुरविंदर सिंह बहराइच के हैं जो लखीमपुर खीरी गए थे. लवप्रीत सिंह और नछत्तर सिंह खीरी के ही रहने वाले थे. कुछ किसान घायल भी हुए हैं. यह कोई साधारण घटना नहीं है. मोदी सरकार के मंत्री का बेटा और उसके साथियों का नाम इन किसानों की हत्या की साज़िश में आया है. मंत्री को बर्खास्त नहीं किया गया है. विपक्ष की सरकार के मंत्री होते तो अब तक जेल में होते और मंत्री के रिश्तेदारों के यहां छापे पड़ रहे होते लेकिन अजय मिश्रा मोदी जी के मंत्री हैं मानो पूरे देश के संत्री हैं. यह कोई सामान्य आरोप नहीं है. किसानों को लेकर जिस तरह की नफरत फैलाई गई है उसी हवा ने हौसला बढ़ाया होगा. सोचिए गोदी मीडिया और इन नेताओं ने किसानों को लेकर आपने मन में नफरत भर दी और आपके घर के बच्चे हत्यारे बन गए. अगर नफरत की हवा नहीं चलाई गई होती तो मंत्री के बेटे के साथ कम से कम उसके दोस्त इस हत्या की साज़िश से अलग रह जाते. उन्हें लगा होगा कि सरकार अपनी है, मीडिया अपना है सब किसानों को ही आतंकवादी और हत्यारा बना देंगे.
एसआईटी की रिपोर्ट के बाद भी अजय मिश्रा मंत्री बने हुए हैं. उनके बेटे पर किसानों की हत्या के आरोप हैं. शायद राजनीति में धर्म को बार-बार लाने का यही फायदा होता है कि सही गलत का फर्क मिट जाता है. मंत्री कैबिनेट मंत्री बन जाएं कोई बात नहीं लेकिन सोचिए कितनी नफरत भरी होगी किसानों को लेकर कि एक जीप कुचलती हुई चली जाती है. हम और आप देखते रह जाते हैं.