विज्ञापन
This Article is From Dec 05, 2019

क्या आज का भारत हाजी हबीब के लिए नागरिकता रजिस्टर का विरोध करेगा?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 05, 2019 22:16 pm IST
    • Published On दिसंबर 05, 2019 22:16 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 05, 2019 22:16 pm IST

असम की आबादी साढ़े तीन करोड़ ही है. नागरिकता रजिस्टर के नाम राज्य ने 1600 करोड़ फूंक दिए. राज्य के करीब 4 साल बर्बाद हुए. 2019 के अगस्त में जब अंतिम सूची आई तो मात्र 19 लाख लोग उसमें नहीं आ सके. इनमें से भी 14 लाख हिन्दू हैं. बाकी 5 लाख के भी कुछ रिश्तेदार भारतीय हैं और कुछ नहीं. इन सबको फॉरेन ट्रिब्यूनल में जाने का मौका मिलेगा. उसके बाद तय होगा कि आप भारत के नागरिक हैं या नहीं. वहां भी केस को पूरा होने में छह महीने से साल भर कर समय लग सकता है.

हम सरकार का खर्च जोड़ते हैं. कभी इसका भी हिसाब कीजिए कि असम के आम आदमी का कितना खर्च हुआ. एक एक सर्टिफिकेट बनाने में 5000 से 15000 तक खर्च हुए. बिहार और यूपी से गए लोगों के वंशज वापस अपने गांवों में आकर रिश्वत देकर सर्टिफिकेट बनवाते रहे. ट्रिब्यूनल के लिए वकीलों की फीस भी जोड़ लें. साढ़े तीन करोड़ लोग चाहे वो हिन्दू थे या मुस्लिम, नेशनल रजिस्टर के लिए अपनी जेब से 5 से 50 हज़ार तक ख़र्च कर रहे थे. किसी की मामले में एक लाख रुपये तक. अब अगर भारत भर में हुआ तो सोच लें कि आप सब पर नोटबंदी की तरह एक और बोगस योजना थोपी जाने वाली है.

असम में इतनी बड़ी कवायद का नतीज़ा एक तरह से ज़ीरो निकला. दशकों से नेता हिंदी प्रदेश के लोगों पर यह झूठ थोपते रहे कि एक करोड़ घुसपैठिया आ गए हैं. किसी ने 40 लाख कहा तो किसी ने कहा कि सारा भारत घुसपैठियों से भर गया है. यह धारणा इतनी मज़बूत हो गई कि नेशनल रजिस्टर की नौबत आ गई. राजीव गांधी सरकार और असम के छात्र आंदोलन के बीच जो असम समझौता हुआ था, उसमें भी यह बात थी. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि नेशनल रजिस्टर का काम शुरू हो. असम गण परिषद भी घुसपैठियों को निकालने की राजनीति करती थी, लेकिन उसने हिन्दू घुसपैठिया या मुस्लिम घुसपैठिया में फर्क नहीं किया. फर्क अब किया जा रहा है.

संदिग्ध नागरिकों की जो संख्या निकली है वो उतनी तो नहीं है जो हमारे नेता अपने भाषणों में लोगों पर थोपते हैं. करोड़ों घुसपैठियों का भूत दिखाया गया, जबकि मिले 3 से 5 लाख वो भी अभी साबित नहीं है. इसके बाद भी अब पूरे भारत में एनआरसी की बात हो रही है. ज़ाहिर है पूरे भारत को लंबे समय के लिए एक और हिन्दू मुस्लिम डिबेट में फंसाया जा रहा है. गृहमंत्री को भरोसा है कि सिर्फ मुसलमान को छोड़कर हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन पारसी और बौद्ध को नागरिकता दने से विपक्ष जब विरोध करेगा तो लोग अपने आप समझ जाएंगे कि मुसलमानों को नागरिकता देने की वकालत हो रही है. और यह उनके काम आएगी.

एक सवाल है. इस सूची में ईसाई क्यों हैं? ईसाई हैं तो मुसलमान क्यों नहीं? क्या अंतर्राष्ट्रीय छवि या दबाव के डर से ईसाई को शामिल किया गया है? संघ परिवार अपने शुरुआती दिनों में ईसाई मिशनरियों पर धर्मांतरण के आरोप लगाता था. ओडिशा में ग्राहम स्टेंस को जलाकर मार दिया गया था. अब धर्मांतरण की बात क्यों नहीं हो रही है? फिर मुसलमान को हटा कर नागरिकता के नियम को धर्म के आधार पर क्यों बांटा जा रहा है? आपको लगता है यह सही है तो भारत के इतिहास के इस पन्ने को पलट लीजिए.

20 अगस्त 1906 को दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल शहर में नियम बनता है कि पुरानी परमिट रद्द की जाएगी. एशियाई मूल को लोगों को रजिस्टार के दफ्तर में जाकर नया रजिस्ट्रेशन कराना होगा और अंगूठे के निशान देने होंगे. यह फैसला भारत और चीन के लोगों को प्रभावित करता था. नया परमिट नहीं दिखाने पर जेल का प्रावधान था. गांधी जी ने मानने से इंकार कर दिया.

11 सितंबर 1906 को जोहानेसबर्ग के पुराने एम्पायर थियेटर में 3000 भारतीयों की सभा होती है. गांधी जी के साथ गुजरात के व्यापारी सेठ हाजी हबीब भी थे. उन्होंने कह दिया कि हम सभी ईश्वर की शपथ लेंगे कि इस नियम को नहीं मानेंगे. गांधी जी स्तब्ध हो गए. उन्होंने कहा कि हम ऐसा नहीं कर सकते. ईश्वर की शपथ लेकर तोड़ नहीं सकते. हमें ठीक से विचार करना चाहिए. सबने सोच लिया और तय किया कि नए परमिट को नहीं मानेंगे. उस दिन सत्याग्रह का जन्म हुआ.

आज उसी सेठ हाजी हबीब का भारत बदल गया है. उसमें अब नैतिक बल नहीं रहा कि वह ईश्वर की शपथ लेकर हाजी हबीब के लिए खड़ा हो जाए. बस सोचिए कि हिन्दू मुस्लिम की राजनीति आपको कहां धकेल रही है. रजिस्टर की लाइन में खड़ा कर आपसे भी नागरिकता का प्रमाण मांग रही है. कायदे से तो पूरे भारत को इस एनआरसी के खिलाफ सत्याग्रह करना चाहिए और एनआरसी जैसे ख़्याल के लिए गांधी और सेठ हाजी हबीब से मांफी मांगनी चाहिए.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com