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LEGAL EXPLAINER: SC के फ़ैसले का नागरिकता, घुसपैठ, रोहिंग्या और CAA पर प्रभाव

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 19, 2024 06:56 am IST
    • Published On अक्टूबर 18, 2024 22:08 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 19, 2024 06:56 am IST

सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने बहुमत के फ़ैसले से नागरिकता क़ानून की धारा-6ए को वैध करार दिया है. ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU) ने असम से अवैध प्रवासियों को निकालने के लिए 1979 में आंदोलन शुरू किया था. छह साल बाद 1985 में राजीव गांधी सरकार ने असम समझौते से आंदोलनकारियों की अनेक मांगों को मान लिया. उसके अनुसार नागरिकता अधिनियम, 1955 में धारा-6ए जोड़ी गई. सुप्रीम कोर्ट में साल 2009 की याचिका से असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (NRC) लागू करने की मांग की गई. उसके बाद साल 2012 में कई संगठनों ने धारा-6ए को गैर-क़ानूनी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

साल 2014 में 2 जजों की बेंच ने इस मामले को संविधान पीठ में सुनवाई के लिए भेज दिया. 407 पेजों के तीन अलग-अलग फ़ैसलों में चीफ़ जस्टिस चंद्रचूड़ (CJI), जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सुंद्रेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने बहुमत से इस क़ानून को संवैधानिक ठहराया है, जबकि जस्टिस पारदीवाला ने अन्य जजों से असहमति जताते हुए धारा-6ए को मनमानीपूर्ण और अतार्किक बताया है. पूर्वी पाकिस्तान, जो बाद में बांग्लादेश बना, से 1971 युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था. शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश से फिर पलायन शुरू हो गया है, इसलिए नागरिकता क़ानून में बदलाव पर मुहर वाले सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के दूरगामी परिणाम होंगे. फ़ैसले से जुड़े 10 क़ानूनी पहलुओं को समझने की ज़रूरत है.

  1. संसद की सर्वोच्चता - फ़ैसले के अनुसार Citizenship Act में संशोधन, Constitution के अनुच्छेद 14, 21 और 29 के ख़िलाफ़ नहीं है. असम समझौता शांति स्थापित करने के लिए सियासी समाधान था, जबकि नागरिकता क़ानून में बदलाव उस फ़ैसले को लागू करने के लिए विधायी समाधान था. चीफ़ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में यूनियन लिस्ट की इंट्री 17 के अनुसार संसद को नागरिकता के बारे में क़ानून बनाने के अधिकार हैं.
  2. संविधान संशोधन की ज़रूरत नहीं - संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 3 से अनुच्छेद 7 में नागरिकता के बारे में प्रावधान हैं. याचिकाकर्ताओं का दावा था कि असम समझौते को लागू करने के लिए अगर यह क़ानून बनाना था, तो उसके लिए Constitution Amendment करने की ज़रूरत थी, जबकि संसद ने 7 दिसंबर, 1985 को नागरिकता क़ानून में संशोधन करके धारा-6ए को जोड़ दिया. याचिकाकर्ताओं के तर्क को निरस्त करते हुए फ़ैसले में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 के अनुसार संसद को नागरिकता क़ानून में बदलाव के अधिकार हैं.
  3. अंतरराष्ट्रीय क़ानून और बंधुत्व - याचिका के अनुसार बांग्लादेश से आए घुसपैठियों को नागरिकता देने की वजह से असम के स्थायी और मूल निवासियों की संस्कृति खतरे में पड़ गई है. उनके अनुसार यह Article 29 में दिए गए संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. अनुच्छेद 29 में नागरिकों के संस्कृति, भाषा और लिपि के संरक्षण की बात की गई है. फ़ैसले के अनुसार किसी राज्य में विभिन्न जाति समूहों की उपस्थिति मात्र ही संस्कृति के संरक्षण के लिए किए गए संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए पर्याप्त नहीं है. बेंच में शामिल जस्टिस सूर्यकांत के अनुसार धारा-6ए बंधुत्व के आधारभूत सिद्धांतों के ख़िलाफ़ नहीं है. इसका International Law के सिद्धांतों के साथ भी कोई टकराव नहीं है. वरिष्ठ जज जस्टिस सूर्यकांत आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बनेंगे.
  4. कट ऑफ़ डेट को मान्यता - असम समझौते की धारा 5 के अनुसार 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच भारत में प्रवेश कर चुके और असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकरण कराने का अधिकार दिया गया था. 25 मार्च, 1971 की Cut Off Date के बाद असम में आए सभी प्रवासियों को अवैध माना जाएगा. याचिकाकर्ताओं के अनुसार असम और शेष भारत में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को नियमित करने के लिए अलग-अलग कट ऑफ़ तिथियां देना अवैध और भेदभावपूर्ण है. 26 जनवरी, 1950 तक जो लोग पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान, यानी बांग्लादेश से भारत आ गए, उनके लिए संविधान में नागरिकता मिलने का प्रावधान है. असम समझौते के अनुसार धारा 6ए के प्रावधानों से पूर्वी पाकिस्तान से असम आए हुए प्रवासियों के मामले में यह कट ऑफ़ डेट 1 जनवरी, 1966 कर दी गई. उसके बाद 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान से असम आए हुए लोगों को नागरिकता के लिए पंजीकरण का अधिकार मिला, लेकिन 10 वर्ष तक उन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं मिला. देश के अन्य राज्यों और असम के मामलों में नागरिकता के लिए अलग कट ऑफ डेट को याचिकाकर्ताओं ने भेदभावपूर्ण बताया था. संविधान पीठ के फ़ैसले से असम समझौते की कट ऑफ़ डेट और उसके अनुसार नागरिकता क़ानून में हुए बदलावों को संवैधानिक मान्यता मिल गई है.
  5. अन्य राज्यों के साथ विभेदकारी नहीं - सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में इस बात को लिखा गया है कि पश्चिम बंगाल में 57 लाख लोगों ने घुसपैठ की, जबकि असम में 40 लाख लोगों ने घुसपैठ की. याचिका में कहा गया था कि बांग्लादेश की सीमा पूर्वोत्तर भारत में कई राज्यों से मिलती है, जबकि नागरिकता क़ानून में बदलाव सिर्फ असम राज्य के अनुसार किया गया है. फ़ैसले के अनुसार इस विशेष प्रावधान को बांग्लादेश युद्ध के बाद असम में प्रभाव के नजरिये से देखा जाना चाहिए. जजों के अनुसार असम में जमीन की उपलब्धता बहुत कम है, इसलिए वहां पर घुसपैठ और नागरिकता के मामले को विशेष तरीके से ट्रीट करना असंवैधानिक नहीं है.
  6. असहमति का फ़ैसला - चार जजों के बहुमत के फ़ैसले से असहमति जताते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि जाली दस्तावेज़ से आए प्रवासियों के कारण धारा-6ए के दुरुपयोग की आशंका बढ़ गई है. उनके अनुसार भ्रष्ट अधिकारियों के सहयोग से बनाए गए झूठे सरकारी रिकॉर्ड, गलत तारीख, गलत वंशावली, और जाली दस्तावेज़ की मदद से असम में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो रही है. धारा-6ए को लागू करने का जो मकसद था, वह दूर का सपना बन गया है. कट ऑफ़ डेट के 53 साल के बाद भी लोग नागरिकता के लिए आवेदन दे सकते हैं, जो गलत है. क़ानून के अनुसार नागरिकता लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित नहीं किए जाने से, क़ानून का बढ़ता दुरुपयोग चिंता की बात है. सनद रहे कि जस्टिस पारदीवाला वरिष्ठ जज हैं, जो भविष्य में Supreme Court के चीफ़ जस्टिस (CJI) बनेंगे.
  7. ट्रिब्यूनल में चल रहे मामले - असम समझौते और नागरिकता क़ानून में बदलाव के बावजूद अवैध प्रवासियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई सरकार के लिए टेढ़ी खीर है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कई हलफ़नामे और जवाब दायर किए. उनके अनुसार साल 2017 से 2022 के बीच 14,346 अवैध प्रवासियों को वापस भेजा गया. अवैध प्रवासियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए असम में 100 से ज़्यादा न्यायाधिकरण काम कर रहे हैं. उन Tribunals में 3.34 लाख से ज़्यादा मामले निपटाए गए, लेकिन 97,000 से ज़्यादा मामले ट्रिब्यूनल में अब भी लंबित हैं.
  8. मतदान का अधिकार नहीं - नागरिकता क़ानून की धारा-6ए के तहत जिन लोगों को नागरिकता मिली है, उन्हें 10 साल तक मतदान का अधिकार नहीं दिया गया. संविधान पीठ के फ़ैसले से नागरिकता से जुड़े कई जटिल क़ानूनी मुद्दों का समाधान होगा. इस फ़ैसले से यह साफ़ हो गया है कि किन लोगों की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं है. क़ानून में बदलाव के अनुसार किन लोगों को नागरिकता मिल सकती है. उसके अलावा अन्य सभी लोग अवैध प्रवासी हैं, जिन्हें चिह्नित कर क़ानूनी तौर पर देश से बाहर निकालना ज़रूरी है. इस फ़ैसले के अनुसार रोहिंग्या या अन्य घुसपैठियों को शरण नहीं मिले, तब तक उन्हें भारत में रहने का क़ानूनी अधिकार नहीं है.
  9. रोहिंग्या और घुसपैठियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई - फ़ैसले में कहा गया है कि केंद्र व असम सरकार को राज्य में अवैध प्रवासियों का पता लगाने और उन्हें देश से वापस भेजने के लिए सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए नियुक्त वैधानिक तंत्र और न्यायाधिकरण पूरी तरह से अपर्याप्त है. उन्होंने कहा कि इन प्रावधानों के कार्यान्वयन को केवल सरकार या कार्यकारी अधिकारियों की इच्छा पर नहीं छोड़ा जा सकता. अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरंतर निगरानी ज़रूरी है. जजों ने कहा कि प्रवासियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए सर्वानंद सोनोवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के साल 2006 के फ़ैसले में दिए गए दिशा-निर्देशों पर सख्ती से अमल करना चाहिए.
  10. CAA और NRC - CAA के तहत साल 2019 में नागरिकता अधिनियम में धारा-6बी जोड़ी गई थी. उसके अनुसार 31 दिसंबर, 2014 की नई कट ऑफ़ डेट का निर्धारण किया गया. उसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुस्लिम-बहुल पड़ोसी देशों से भारत आने वाले हिन्दू, सिख, , ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भारत में नागरिकता का प्रावधान किया गया. CAA और NRC में फर्क है. जनगणना क़ानून के तहत साल 2003 में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए क़ानूनी प्रावधान बने थे. उसके बाद नागरिकता क़ानून के तहत साल 2004 में नागरिकों के लिए रजिस्टर (NRC) बनाने का प्रावधान किया गया. सुप्रीम कोर्ट के नए फ़ैसले के बाद प्रवासियों को भारत में नागरिकता देने का क़ानूनी रास्ता साफ़ हो गया है. इस फ़ैसले के अनुसार असम के साथ दूसरे राज्यों से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने के बारे में अब राज्यों और केंद्र सरकार को कार्रवाई करने की ज़रूरत है.

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं... साइबर, संविधान और गवर्नेंस जैसे अहम विषयों पर नियमित कॉलम लेखन के साथ इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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