दिल्ली में बैठे खलिहर विद्वानों को लगता है कि नागरिकता कानून के समर्थन और विरोध की रैलियों से बोरियत होने लगी है. वे इतने बोर हो चुके हैं कि उन्हें इन रैलियों पर ट्वीट करने के लिए कुछ नहीं है तो वो अब लिखने लगे हैं कि इन रैलियों और प्रदर्शनों से होगा क्या. कब तक होगा. ये सवाल पूछा जा रहा है जो विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन समर्थन में जो रैलियां हो रही हैं वो क्यों इतनी बेहिसाब है. ऐसा क्या फैसला है ये कि इसे समझाने के लिए बीजेपी को देश भर में 250 प्रेस कांफ्रेंस और 1000 सभाएं करनी पड़ रही हैं. इसमें स्थानीय और राष्ट्रीय नेता भी हैं और दरवाज़े दरवाज़े जाकर कानून को समझाने का कार्यक्रम भी है. जब इस कानून को 130 करोड़ भारतीयों का समर्थन हासिल है तो फिर बीजेपी को इतनी रैलियां क्यों करनी पड़ रही हैं. अब यह देखा जाना चाहिए कि 1000 सभाओं में से कितनी सभाएं असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में होती हैं. जहां इस कानून के विरोध का स्वरूप ही कुछ अलग है. वैसे असम में दो बार प्रधानमंत्री को अपना दौरा रद्द करना पड़ा है. वहां पर जे पी नड्डा और राम माधव की सभा हुई है मगर गुवाहाटी में. डिब्रूगढ़ से सांसद और केंद में राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने कुछ जगहों पर ज़रूर सभाएं की हैं. गृहमंत्री अमित शाह खुद कई रैलियां कर रहे हैं. जोधपुर, जबलपुर, शिमला, दिल्ली के अलावा हुबली और लखनऊ में भी करने वाले हैं. यही नहीं केंद्र के मंत्रियों को कश्मीर जाने का भी निर्देश दिया गया है. हेडलाइन में कश्मीर लिखा है मगर दौरे के कार्यक्रम का मात्र 13 प्रतिशत श्रीनगर में होगा. 87 प्रतिशत दौरा जम्मू क्षेत्र का होगा. मीडिया में जो बात आई है उसके अनुसार ये मंत्री श्रीनगर के अलावा घाटी के अन्य ज़िलों में नहीं जाएंग. 59 में से 51 दौरा जम्मू का होगा. 8 दौरा श्रीनगर का. प्रधानमंत्री अभी तक श्रीनगर नहीं जा सके हैं जबकि 19 सितंबर को नासिक में कहा था कि कश्मीर को स्वर्ग बनाना है और हर कश्मीरी को गले लगाना है. उनके ज़ख्मों पर मलहम लगाना है. प्रधानमंत्री खुद अभी तक कश्मीर को गले लगाने नहीं जा सके हैं. असम का भी दो दो बार दौरा रद्द करना पड़ा. ऐसा नहीं है कि भारत का लोकतंत्र इन दो कानून के समर्थन और विरोध में ही जागा हुआ है. लोग अपनी समस्याओं को लेकर जिस तरह से रचनात्मक हो रहे हैं उससे लगता यही है कि लोग नहीं जागे हैं, सरकारें सो गई हैं. उन्हें लोगों की बात सुनाई नहीं दे रही है.
ट्रेन के भीतर पोस्टर लगाते हुए, बस स्टैंड में खड़ी बसों में पोस्टर लगाते हुए, आटो रिक्शा पर पोस्टर लगाते हुए, गांवों और शहरों की दीवारों मे पोस्टर लगाते हुए ये नौजवान भले ही मीडिया के कैमरे से दूर हैं मगर खुद ही कैमरा बन चुके हैं. ये सभी उत्तर प्रदेश के नौजवान हैं. जब इन नौजवानों की नौकरी की परीक्षा की बात सरकार ने नहीं सुनी तो कई दिनों तक ये ट्विटर पर आकर ट्रेंड कराते रहे मगर वहां भी सुनवाई नहीं हुई तो अब ये गांव गांव में फैल रहे हैं. सरकारी कार्यालयों, इमारतों की दीवारों ट्रेन और टेंपो के पीछे पोस्टर लगाने लगे हैं. क्या लोकतंत्र की बन रही हमारी किसी भी नई समझ में इन प्रदर्शनों की कोई जगह है. यूपी में पिछले साल 6 जनवरी को 69000 शिक्षकों की भर्ती की परीक्षा हुई थी. एक साल हो गया है. नियुक्ति नहीं हुई है. कोर्ट में मामला है और छात्रों का आरोप है कि सरकार ठीक से पैरवी नहीं कर रही है ताकि यह मामला लटका रहे. इस परीक्षा में 4 लाख से अधिक छात्र प्रभावित हैं।. हिन्दू भी हैं, मुसलमान भी हैं और अन्य जातियां भी हैं. कोई इनकी समस्या उठाकर नेता भी नहीं बनना चाहता है. नेताओं को भी पता है ऐसे मुद्दों से कोई नेता नहीं बनता है. मुमकिन है बहुत से नौजवान हिन्दू मुस्लिम करने वालों को ही नेता बनाते हैं. सबको सियासत का फार्मूला पता चल गया है. लेकिन आप देखिए कि हर तरह से हारने के बाद कैसे इन नौजवानों में विरोध प्रदर्शन करने की कल्पना नई हो गई है. वे मानसिक रूप से थक चुके हैं. ग़रीब घरों के लड़के लड़कियां हैं मगर अपने थकान के चरम पर पहुंचने के बाद भी इनकी कल्पनाएं नहीं हारी हैं. नौजवान परेशान हैं. इन्हें भी पता है कि नौकरी मिलते ही हिन्दू मुस्लिम करेंगे लेकिन हिन्दू मुस्लिम की इतनी मार हो चुकी है कि इनकी नौकरी की बात कोई कर ही नहीं रहा है. इन नौजवानों का जज्बा भी लोकतंत्र की भावना को अपनी तरह से जीवंत कर रहा है.
लोग प्रदर्शनों से नहीं थकते हैं. विद्वान थक जाते हैं. वर्ना शाहीन बाग का प्रदर्शन सिर्फ शाहीन बाग में ही रह जाता. पटना में भी हारुन नगर और सब्ज़ी बाग़ में महिलाएं धरने पर बैठ गई हैं. कानपुर के चमनगंज में महिलाओं का प्रदर्शन हो रहा है तो प्रयागराज के रौशन बाग में प्रदर्शन ज़ोर पकड़ने लगा है. बिहार के अररिया हो या लखनऊ का घंटाघर हो, वहां कौन लोग हैं जो महीना बीत जाने के बाद भी प्रदर्शन करने जा रहे हैं. कोटा से लेकर कोलकाता में इस तरह के प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई है. इस बीच शाहीन बाग़ का प्रदर्शन भी हर दिन खुद को नया कर लेता है. पहले से बड़ा कर लेता है. शुक्रवार को शाहीन बाग़ में वीर चंदर और पवन शुक्ला नाम के कलाकारों ने 40 फुट ऊंचा भारत का नक्शा बना कर खड़ा कर दिया.
अगर इन प्रदर्शनों का असर वाकई नहीं होता तो बीजेपी को तीन करोड़ लोगों तक पहुंचने के लिए 1000 रैलियां और सभाएं नहीं करनी पड़तीं. बीजेपी को मिस्ड कॉल लांच नहीं करना पड़ता. दिल्ली में ही खुरेजी में महिलाओ का नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन चल रहा है. लेकिन बल्लीमारान का प्रदर्शन भी मीडिया से दूर चुपचाप अपनी रफ्तार से कई हफ्तों से चला जा रहा है. दिल्ली के विद्वानों को पता भी नहीं होगा कि ग़ालिब के मोहल्ले में कई हफ्ते से प्रदर्शन चल रहा है.
कहीं हम इन प्रदर्शनों को समझने की जल्दी में तो नहीं हैं, लेकिन ये लोग जल्दी में नहीं हैं तभी ग़ालिब के मोहल्ले बल्लीमारान में हर शाम सात से सवा सात दुकानदार बैनर पोस्टर लेकर नागरिकता कानून के विरोध में अपनी दुकानों के बाहर खड़े हो जाते हैं. इनके प्रदर्शन का तरीका जुदा है. न इन्हें दुकान बंद करनी पड़ रही है और न ही रास्ता जाम हो रहा है. अपनी दुकान की चौखट पर खड़े होकर बैनर दिखा देते हैं कि हम नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हैं. यहां पर 200 जूता दुकानदार हैं जो कई हफ्तों से इस तरह से प्रदर्शन कर रहे हैं. इन बैनरों पर नागरिकता संशोधन कानून और नागरिकता रजिस्टर के विरोध के नारे लिखे हैं. अंग्रेज़ी ठीक नहीं हैं मगर अंग्रेज़ी में भी है. उर्दू और हिन्दी में भी है. 15 मिनट तक दुकानें एक तरह से बंद रहती हैं.
चार साल पहले हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी. 26 साल के पी एच डी स्कालर रोहित को सस्पेंड कर दिया गया था. आरोप लगा था कि रोहित वेमुला ए बी वी पी के छात्र को मारने वाले 5 छात्रों में शामिल हैं. उस घटना को लेकर कितना विवाद हुआ. रोहित वेमुला को लेकर सरकार के मंत्री भिड़ गए. संसद तक में चर्चा हुई. मगर चार साल बाद भी इन्हीं प्रदर्शनों की भीड़ में रोहित वेमुला पहले भी और आज भी याद किए जाते रहे हैं. कई अखबारों में रोहित का वो पत्र भी छपा है और पढ़ा जा रहा है जो रोहिल ने आत्महत्या से पहले लिखा था. हैदराबाद में भी रोहित वेमुला को याद किया गया. योगेंद्र यादव ने वहां शिरकत की थी. उस कार्यक्रम में रोहित की मां भी थीं.
बंगुलुरु में रोहित की याद में छात्रों ने एक प्रदर्शन का आयोजन किया. मैसूर बैंक सर्कल पर छात्र जमा हुए. बंगलुरू में ही तीन चार जगहों पर कार्यक्रम थे. नागरिकता संशोधन कानून के प्रदर्शनों में रोहित वेमुला को याद किया गया. योगेंद्र यादव ने हैदराबाद में रोहित की याद में सभा की है. रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में भी रोहित को याद किया गया. आई आई टी बांबे में भी 2 हफ्ते से संविधान की प्रस्तावना का अखंड पाठ चल रहा है. हर शाम छह बजे छात्र और शिक्षक नागिरकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं. इन छात्रों और शिक्षकों को कपड़े से भी नहीं पहचाना जा सकता है. उनके नारे बता रहे हैं कि उनके विरोध में कपड़े और मज़हब का कोई रोल नहीं है. आई आई टी मुबंई में भी शाहीन बाग जैसा जज़्बा दिखता है. यहां 16 से 26 जनवरी के बीच वहां पर लोकतंत्र और संविधान पर लेक्चर सीरीज़ होने जा रहा है. 17 जनवरी को रोहित स्मृति दिवस मनाया जाएगा और उस मौके पर भी एक लेक्चर होगा. विषय होगा जाति के विरोध में लोकतंत्र. मुंबई के दादर इलाके में रोहित स्मृति दिवस के बैनर तले नागरिकता कानून और नागिरकता रजिस्टर का विरोध किया गया. लोगों ने मार्च निकाला. आप देखिए चार साल बाद भी यह नौजवान छात्रों की लोकतांत्रिक चेतना की शक्ति बना हुआ है. सोहित ने दादर में रोहित को याद करने वालों से बात की.
आत्महत्या से पहले रोहित वेमुला के लिखे हुए पत्र को आज कई जगहों पर पढ़ा गया. रोहित ने लिखा था कि मेरा जन्म एक भयंकर हादसा था. मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा. एक आदमी की कीमत उसकी तत्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक. आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है. एक वस्तु मात्र. कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग से नहीं आंका गया. रोहित की यह बात कि आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया, आज उसी की लड़ाई इस कानून के विरोधी लड़ रहे हैं. तभी उनकी रैलियों में मंचों से रोहित का ज़िक्र आ जाता है. हमारे सहयोगी मनीष कुमार गया में हैं. वहां के शांति बाग का प्रदर्शन भी चर्चा का केंद्र बन गया है. यहां पर 20 दिनों से नागरिकता कानून के विरोध में धरना जारी है. ज्यादातर महिलाएं हैं.
कोलकाता का भी प्रदर्शन काफी बड़ा हो गया है. वहां के पार्क सर्कस से आने वाली तस्वीरें यही कह रही हैं कि यह आंदोलन एक महीने के बाद शुरू हो रहा है. बंद नहीं हो रहा है. महाराष्ट्र के बुलढाना में नागरिकता कानून के विरोध में जेल भरो शुरू हो गया है. इतनी जगहों से विरोध प्रदर्शनों के वीडियो आ रहे हैं कि हम पूरा दिखा भी नहीं सकते. समर्थन की रैलियों का भी यही हाल है. केरल के बाद पंजाब विधान सभा में भी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रस्ताव पास किया है. मुख्यमत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि उनकी सरकार भी केरल की तरह सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती देगी. पंजाब सरकार ने कहा है कि नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर का काम पुराने नियमों के अनुसार ही होगा. नए नियम के हिसाब से नहीं होगा. पंजाब विधानसभा में अकाली दल ने इस प्रस्ताव के विरोध में वोट किया. अकाली दल ने ज़रूर कहा कि इस कानून में मुसलमानों को शामिल किया जाए. पंजाब सरकार भी केरल की तरह सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता कानून के खिलाफ याचिका दायर करने पर विचार कर रही है. शुक्रवार को दिल्ली में नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर को लेकर एक बैठक होनी थी. सभी राज्यों को बुलाया गया था. बंगाल ने हिस्सा ही नहीं लिया. पिछले दिनों हमने बताया था कि यूपी के पीलीभीत में शरणार्थियों की सूची बनाने का काम हुआ है वो काम किन नियमों के तहत हो रहा है, किसी को पता नहीं है. केंद्र ने ऐसे किसी नियम की सूचना राज्यों को नहीं दी है. कमाल खान की रिपोर्ट देखिए. कमाल बता रहे हैं कि यह दावा अधूरा है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान से हिन्दू सिर्फ धार्मिक प्रताड़ना के कारण ही आए और मुसलमान सिर्फ रोज़गार की तलाश में आए. कमाल ने ऐसे कई हिन्दू शरणाथच् से बात की है जो कह रहे हैं कि वे भारत अलग अलग कारणों से आए.