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This Article is From Nov 30, 2019

रवीश कुमार का ब्लॉग : नोटबंदी के बाद से ही इकॉनमी पर 'दूरगामी' की बूटी पिला रही है सरकार

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 30, 2019 09:00 am IST
    • Published On नवंबर 30, 2019 08:59 am IST
    • Last Updated On नवंबर 30, 2019 09:00 am IST

नोटबंदी एक बोगस फ़ैसला था. अर्थव्यवस्था को दांव पर लगा कर जनता के मनोविज्ञान से खेला गया. उसी समय समझ आ गया था कि यह अर्थव्यवस्था के इतिहास का सबसे बोगस फ़ैसलों में से एक है लेकिन फिर खेल खेला गया. कहा गया कि दूरगामी परिणाम होंगे. तीन साल बाद उन दूरगामियों का पता नहीं है.

अब विश्लेषणों में झांसा दिया जा रहा है कि सरकार ने जो सुधार किए हैं उनका नतीजा आने में वक्त लगेगा. फिर दूरगामी वाली बूटी पिला रहे हैं सब. ये कौन सा सुधार है जो पहले अर्थव्यवस्था को ज़ीरो की तरफ़ ले जाता है और वहां से ऊपर आने का ख़्वाब दिखाता है. साढ़े पांच साल जुमले ठेलने में ही बीत गए. इसका नुक़सान एक पीढ़ी को हो गया. जो घर बैठा वो कितना पीछे चला गया.  सरकार के पास आर्थिक मोर्चे पर नौटंकी करने के अलावा कुछ नहीं. पता है लोग बजट पर बात करेंगे तो वित्त मंत्री को लाल कपड़े में लिपटा हुआ बजट देकर भेज देती है ताकि चर्चा बजट पर न होकर परंपरा के शुभ-अशुभ मान्यताओं पर बहस होने लगे. उन्हें लक्ष्मी बना कर पेश किया गया जबकि साफ़ समझ आ रहा है कि वे भारत की अर्थव्यवस्था को जेएनयू समझ रही हैं. जो मन में आए बोल दो लोग ताली बजा देंगे. 

जीडीपी का हाल बुरा है. कभी न कभी तो ठीक सब हो जाता है लेकिन हर तिमाही की रिपोर्ट बता रही है कि इनसे संभल नहीं रहा है. पिछली छह तिमाही यानि 18 महीने से अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है. इस मंदी का लाभ उठा कर कारपोरेट ने अपने लिए टैक्स फ़्री जैसा ही मेला लूट लिया. कारपोरेट टैक्स कम हो गया. कहा गया कि इससे निवेश के लिए पैसा आएगा. ज़्यादातर कंपनियों के बैलेंसशीट घाटा दिखा रहे हैं. उनकी क़र्ज़ चुकाने की क्षमता कमज़ोर हो गई है. 

अब आप सोचिए कि जिस देश में मैन्यूफ़ैक्चरिंग ज़ीरो हो जाए वहां रोज़गार की कितनी बुरी हालत होगी. सरकार को डेटा देना चाहिए कि छोटी बड़ी कितनी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. गुजरात, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र से पता चल जाएगा. खेती और मछली पालन में विकास दर आधी हो गई है. शहरों के कारख़ाने से बेकार हुए तो गांवों में भी काम नहीं मिलता होगा. जो नौकरी में हैं उनकी हालत भी मुश्किल है. कोई बढ़ोत्तरी नहीं है. तनाव ज़्यादा है. 

चैनलों पर जब जीडीपी के आंकड़े को लेकर बहस नहीं होगी. कोई उन बंद पड़े कारख़ानों की तरफ़ कैमरा नहीं भेजेगा जहां मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया खंडहर बने पड़े हैं. आप सभी को दूरगामी का सपना दिखाया जा रहा है. एक मज़बूत नेता और एक मज़बूत सरकार जैसे बोगस स्लोगनों का हश्र आप देख रहे हैं. कभी न कभी तो कुछ भी ठीक हो जाता है लेकिन साढ़े पाँच साल में एक भी सेक्टर ऐसा नहीं है जो इनकी नीतियों से बुलंद हुआ हो या जिसमें बुलंदी आई हो. 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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