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This Article is From Dec 25, 2014

राजीव रंजन की कलम से : कैसे बीजेपी बन गई कश्मीर का 'बाजीगर'

Rajeev Ranjan, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    दिसंबर 25, 2014 22:58 pm IST
    • Published On दिसंबर 25, 2014 17:33 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 25, 2014 22:58 pm IST

जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ जारी है। सबसे बड़ी पार्टी के तौर पीडीपी उभरी है तो दूसरे नंबर पर बीजेपी रही। जहां पीडीपी को पिछली बार 21 सीटें मिली थी और इस बार 28 मिली है, वहीं बीजेपी के हिस्से पिछले बार 11 थी और इस बार 25 सीटें आई हैं।

बीजेपी ने जहां पीडीपी, नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस के मुकाबले सिर्फ 75 उम्मीदवार ही चुनाव में उतारे और उसके 25 जीत गए। सीटों के आधार पर भले ही पीडीपी नंबर वन हो पर वोट प्रतिशत के हिसाब से बीजेपी नंबर वन है। 23 फीसदी वोट बीजेपी को मिला तो पीडीपी को 22.7 फीसदी। पिछली बार के चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 12.5 फीसदी था तो इस बार ये बढ़कर 23 फिसदी तक पहुंच गया।

वहीं, आज भले ही कहा जा रहा हो कि बीजेपी का कमल कश्मीर के चुनाव में नहीं खिल पाया हो, लेकिन सही मायने में कश्मीर में पहली बार बर्फ के पानी में भी कमल तो खिल ही गया है, यानि वो हार करके भी जीत गई है।

हो सकता है, कई लोगों को मेरी बात पर यकीन नहीं होगा पर पहली बार घाटी में हर जगह बीजेपी की ही चर्चा थी। पहली दफा कई जगह बीजेपी के पोस्टर और झंडे दिखे। पहली बार खुलेआम बीजेपी के उम्मीदवार प्रचार करते नजर आए। 31 साल में पहली बार कोई प्रधानमंत्री बीजेपी की चुनावी रैली खुले मैदान में करता नजर आय़ा।

पहली बार कश्मीर घाटी में बीजेपी को ढाई फीसदी के करीब वोट मिले। पहली बार उसके 33 उम्मीदवार घाटी में चुनावी मैदान में थे। पिछले चुनाव में बीजेपी को महज पूरे कश्मीर में सिर्फ 14 हजार ही वोट मिले थे जबकि इस बार ये बढ़कर 48 हजार तक पहुंच चुका है। यहां पर बीजेपी के 39 केन्द्रीय नेताओं ने सभा की। और तो और हर बार होने वाले चुनावों में अपनी जमानत तक जब्त कराने वाली बीजेपी कई सीटों पर दूसरे नंबर पर तो कई जगहों पर तीसरे नंबर पर रही।

ये सब बातें इसलिये और अहम हो जाती हैं क्योंकि इस चुनाव से पहले कभी भी किसी चुनाव में कश्मीर में बीजेपी के झंडे नहीं दिखते थे और न ही उसे यहां उम्मीदवार मिलते थे। चुनावी प्रचार और रैली की बात तो बहुत दूर रही। हालत यह थे कि कोई बीजेपी के बारे में बात करना तक पसंद नहीं करता था। एक ऐसी 'अछूत' पार्टी जिसके पास जाने से हर कश्मीरी में बचता था। पर अब हालात बदल से गए हैं। तभी तो कभी अलगाववादी नेता कहे जाने वाले सज्जाद लोन प्रधानमंत्री मोदी को बड़े भाई कहते हैं।

कश्मीर में बीजेपी का चेहरा समझे जाने वाली हिना भट्ट कहती हैं कि कश्मीर में तो बीजेपी का कमल तो खिल चुका है और कृपया इसे चुनावी जीत या हार से न आंके। और तो और घाटी के दोनों मुख्य दल नेशनल कांफ्रेस और पीडीपी के नेता को उम्मीद है कि कश्मीर के हालात सुधरेंगे तो वो मोदी और बीजेपी की बदौलत ही संभव हो पाएगा।

जम्मू-कश्मीर बीजेपी के नेता रमेश अरोरा कहते हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर हमारी पार्टी की रणनीति पूरी तरह से कामयाब रही है। ऐसा पहली बार हुआ है कि विधानसभा चुनाव में धांधली के आरोप नहीं लगे हैं। वैसे बीजेपी की सोच थी कि अगर वो खुद सरकार न बना पाए तो कोई भी सरकार बने उसकी भूमिका को किसी भी हाल में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

बीजेपी और खुद मोदी के एजेंडे में कश्मीर कितना खास है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद शायद ही ऐसा कोई महीना बीता हो जब मोदी कश्मीर नहीं गए हों। इस बार अगर जम्मू-कश्मीर में पिछले बार की तुलना में पांच फीसदी मतदान का प्रतिशत बढ़ा है तो इसका भी क्रेडिट बीजेपी को ही जाता है।

खुद बीजेपी के नेता भी मानते हैं कि मोदी के डर की वजह से अलगाववादियों ने चुनाव बायकाट की अपील नहीं की। मोदी के विरोध की वजह से कश्मीर के लोग घरों से बाहर निकले कि किसी भी हालत में जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बीजेपी का न बने।
बीजेपी की छवि भी कश्मीर में मुस्लिम विरोधी की रही है और रही कसर चुनाव के दौरान देश के कई हिस्सों में धर्मांतरण को लेकर बीजेपी और उससे जुड़े नेताओं के बयानों ने पूरी कर दी।

मैं कश्मीर को पंद्रह सालों से लगातार देखता रहा हूं। लेकिन इन चुनावों मे जिस तरह के बदलाव की सुगबगाहट सुनाई दी वो एक नये राजनीतिक मुकाम का संकेत दे रही है। कम तैयारी और बिना किसी ठोस जमीन के बाद भी बीजेपी ने जिस तरह से कश्मीर में उपस्थिति दर्ज कराई है उससे लगता है कि आने वाले सालो में केवल जम्मू तक सीमित न रहकर डल झील मे भी कमल खिला सकती है।

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