क्यों नहीं साफ हुई गंगा 2022 तक, वादा था बीजेपी का

क्यों नमामि गंगे के सात साल बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को कहना पड़ता है कि गंगा में आधा पानी बिना साफ किए हुए गिर रहा है।

नई दिल्ली:

गंगा, सिर्फ इतना कहने से मन तृप्त नहीं होता, मां गंगा कहने से होता है। लेकिन राजनीति में जब मां गंगा उच्चरित होती है तो उसका भाव हमेशा वैसा नहीं होता जैसा धर्म और संस्कृति की मान्यताओं में होता है। 2014 में मां गंगा ने बुलाया था। सबके खाते में लाखों रुपये भेजने के साथ-साथ उस चुनाव में मां गंगा का बुलाना भी एक बड़ा प्रतीक बना। उसी का नतीजा था कि 2015 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट का एलान हुआ तो उम्मीद जगी कि गंगा का भला होगा, गंगा राजनीति के कारण प्राथमिकता के केंद्र में बनी रही। लेकिन जब 2019 का चुनाव आया तब भारतीय जनता पार्टी ने आज़ादी के 75 वें वर्ष के लिए देश के लिए 75 संकल्पों की घोषणा की थी। इन 75 संकल्पों 15 अगस्त 2022 तक पूरा कर लेने का विश्वास जताया गया था जब देश आज़ादी का 75 वां वर्ष मना रहा होगा। 15 अगस्त में कितने कम दिन बचे हैं। इस सूची में पहने नंबर पर लिखा है कि किसानों की आमदनी दोगुनी होगी। क्या हो गई? 73वें नंबर पर है कि 15 अगस्त 2022 तक गंगा निर्मल हो जाएगी, क्या हो गई?पहले नंबर का लक्ष्य पूरा हुआ, न 73 वें नंबर का। 2014 के घोषणा पत्र में भी बीजेपी ने वादा किया था कि गंगा को प्राथमिकता के आधार पर स्वच्छ किया जाएगा।यह सवाल भी है कि 2014 की प्राथमिकता 2019 में 73 वें नंबर पर कैसे पहुंच गई? 75 संकल्पों की सूची में मां गंगा की सफाई के मामले को 73 वां स्थान मिला। बीजेपी चाहे तो घोषणापत्र फिर से पढ़ सकती है और प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को याद कर सकती है जिसमें वे कहते हैं कि गंगा के बिना हिन्दुस्तान की चर्चा ही नही हो सकती है। 

अफसोस कि बीजेपी की ही सरकार के राज्य मंत्री दिनेश खटिक अमित शाह को पत्र लिखकर बताते हैं कि नमामि गंगे में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है। मीडिया ने इसे मंत्री का राजनीतिक बयान मान लिया लेकिन क्या मंत्री ने गंगा का राजनीतिक इस्तेमाल क्यों किया इस पर सवाल ही नहीं किया। हमें लगा था कि यूपी के अखबारों में नमामि गंगे के भ्रष्टाचार के दावों को लेकर खबरें भर जाएंगी ऐसा नहीं हुआ। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत काफी काम हुए भी हैं, यह कहना ठीक नहीं होगा कि कुछ नहीं हुआ लेकिन भ्रष्टाचार हुआ है इस पर चुप्पी है।

क्यों नमामि गंगे के सात साल बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को कहना पड़ता है कि गंगा में आधा पानी बिना साफ किए हुए गिर रहा है। मतलब गंगा साफ नहीं हो रही है। ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा है कि राज्यों के प्राधिकरण अच्छा काम नहीं कर रहे हैं, राष्ट्रीय गंगा मिशन इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं हैं.

बीजेपी के घोषणा पत्र के अनुसार 2022में गंगा को साफ हो जाना था। 2019 में बीजेपी ने इसे मील के पत्थर के रुप में लिखा था कि जब देश आज़ादी का 75 वां वर्ष मना रहा होगा तब गंगा साफ हो चुकी होगी लेकिन अमृत महोत्सव के दौरान गंगा की सफाई को कितनी बार याद किया गया? पत्र सूचना कार्यालय ने गंगा गान बनवाया है। यू ट्यूब पर इसे 12 जुलाई 2016 को अपलोड किया गया था। 

2016 में बना यह गंगा गान बेहद प्रभावशाली है।कर्नाटिक संगीत की महान हस्ती और त्रिचुर ब्रदर्स के नाम से मशहूर श्रीकृ्ष्ण मोहन और रामकुमार मोहन ने संगीत दिया औऱ बनाया है। इसका निर्देशन दीपिका चंद्रशेखरन का है। PIB ने इसे जनहित में जारी किया है। काफी अच्छा बना है। काश गंगा इसी तरह से साफ हो जाती, क्या इतना साफ हो पाएगी?

इस वीडियो को पेशेवर ढंग से बनाया गया है। इसकी क्वालिटी बहुत अच्छी है। इसे सुनते ही आप भावुकता के प्रवाह में बहने लगते हैं और भूल जाते हैं कि यूपी के राज्य मंत्री ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट में जमकर भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाया है। क्या गंगा गान देखने के बाद भी ऐसे लोग हैं जो गंगा के मामले में करप्शन कर सकते हैं? लेकिन वो लगो कहां हैं जिन्होंने वादा किया था कि 2022 तक गंगा निर्मल हो जाएगी। इसलिए यह समय है कि उन लोगों को उन्हीं का बनाया गंगा गान फिर से सुनाया जाए ताकि पता चले कि वे गंगा को लेकर जब सोचते हैं तो कितना सुंदर खयाल होता है लेकिन जब काम का हिसाब देने की बात आती है तो कोई नहीं बताता कि 2020 (2022?) आधा बीत गया, गंगा साफ क्यों नहीं हुई? 2019 में बीजेपी ने घोषणा पत्र में तय किया था कि 2022 में गंगा निर्मल हो जाएगी। 

3:03 से लेकर 5:38 माना तेरी हर बूंद में….बहती हुई ममता मिली…तू है तेरी तन पर फेरे, मन मन को भी निर्मल करे, दिस तरह को तू छुए जीवन से उसको सींच दे, लेकर आया हर कोई बस पाप तुझको सौप दे, फिर भी तू बहती चले, सबको लगाकर गले सव्दा अमृत तुझे ही झू कर जाना, प्रसिदा…प्रसिदा…प्रसिदा…नमामि गंगे…नमामि गंगे ….

राजनीति और धर्म से न भी देखें तब भी गंगा से दिल लग जाता है। बल्कि नदियों से ऐसे ही दिल लग जाता है। कोई ब्रह्मपुत्र को भी ऐसे ही चाहता है और कोई नर्मदा को भी लेकिन क्या यह हमारी असफलता नहीं कि गंगा को लेकर इतनी योजनाओं के बाद भी वह निर्मल नहीं हो सकी। हम सब खानापूर्ति तो नहीं कर रहे, एक गंगा गान बना दिया, फिर उसी को भूल गए। 

2015 से गंगा का अभियान चल रहा है इसके बाद भी यूपी प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी इलाहाबाद हाईकोर्ट में नहीं बता सके कि नमामि गंगे के तहत यूपी को कितना पैसा मिला है, नदी क्यों साफ नहीं हो रही है, जागरण ने कोर्ट की सुनवाई के बारे में रिपोर्ट किया है कि अदालत ने पूछा है कि प्रयागराज में अदाणी की कंपनी साफ कर रही है लेकिन उसके साथ सरकार ने करार ही ऐसा किया है कि नदी साफ नहीं होगी। जागरण की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा कि ऐसे करार होने से गंगा साफ नहीं होगी। कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि प्रदूषण बोर्ड ही भंग कर देना चाहिए अगर इनसे नदी साफ नहीं होती है।और ऊपर से यह खबर, मंत्री ही कह रहे हैं कि नमामि गंगे में भ्रष्टाचार है। उसके बाद से दिनेश खटिक का नमामि गंगे को लेकर कोई बयान नहीं आया। 

गंगा की सफाई का मामला बेहद गंभीर मामला है।1986 से ही गंगा एक्शन प्लान चल रहा है। 2018 में प्रो जी डी अग्रवाल ने गंगा में खनन को रोकने के लिए 111 दिनों तक अनशन की। उसके बाद उनकी मौत हो गई। गंगा के लिए उन्होंने जान दे दी। आखिर ग्रीन ट्रिब्यूनल को क्यों कहना पड़ता है कि आधा पानी बिना साफ हुए ही गंगा में गिर रहा है। जबकि नमामि गंगे योजना के रुप में 2015 से चल रही है। 

इसके पहले मनमोहन सिंह ने 4 नवंबर 2008 गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया था। अगर यही काम मोदी सरकार ने किया होता तो हर साल 4 नवंबर को गंगा दिवस मनाया जा रहा होता लेकिन तब मनमोहन सिंह ने बिना किसी ताम-झाम के इसकी घोषणा कर दी। इसी के साथ नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी की स्थापना हुई। प्रधानमंत्री को इसका चेयरमैन बनाया गया। राष्ट्रीय नदी की घोषणा के एक साल बाद जब टाइम्स आफ इंडिया ने जानना चाहा कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के बाद कितना फर्क आया है। इस रिपोर्ट में रिवर बेसिन अथारिटी के सदस्य डॉ बी डी त्रिपाठी का बयान है कि प्रधानमंत्री ने अथारिटी की बैठक बुलाई है और राष्ट्रीय नदी घोषित करने के एक साल बाद काफी सारे काम हुए हैं। लेकिन इसी रिपोर्ट में BHU में गंगा रिसर्च लैब के प्रमुख डॉ UK चौधरी ने निराशा जताते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को गंगा का संविधान बनाना चाहिए।

इसी रिपोर्ट में जयराम रमेश तबके पर्यावरण मंत्री का संसद में दिया गया बयान है कि गंगा और यमुना 20 साल में पहले से ज्यादा मैली हुई हैं जबकि इनकी सफाई पर 1700 करोड़ खर्च हुए हैं। ये 2009 की बात है।  नमामि गंगे को लेकर घोषणाओं का सिलसिला देखने से लगता है कि सरकार यह योजना कभी नहीं भूली। कहीं ऐसा तो नहीं कि ज़्यादा ध्यान प्रेरणा पर ही लगा हुआ है कि कैसे लोगों को प्रेरित किया जाए

केंद्र सरकार ने कार्टून के मशहूर किरदार चाचा चौधरी को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का शुभंकर बनाया था। पिछले साल अक्तूबर में ताकि चाचा चौधरी के बहाने बच्चों और लोगों में गंगा की सफाई को लेकर जागरुकता पैदा की जा सके। चाचा चौधरी का वीडियो दिखाने से पहले हम यह भी बता दें कि इस अभियान के तहत जागरुकता पैदा करने और शोध के लिए भी बजट है। लेकिन इस साल मार्च में संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस अभियान को लेकर जागरुक करने के लिए 2014 से 2021 के बीच 284 करोड़ रुपए मंज़ूर किए गए थे। यह पैसा कैसे खर्च होता है

CAG ने लिखा है कि गंगा अभियान को लेकर सारे विज्ञापन DAVP  विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय के ज़रिए जारी होेने थे लेकिन पाया गया है कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने अन्य विज्ञापन एजेंसियों से काम लिया है और उनके ज़रिए प्रिट का विज्ञापन जारी किया है। इसके बदले में उन एजेंसी को कई लाख रुपये कमीशन के तौर पर दिए गए। सरकार ने जो नीति तय की थी उसके अनुसार नहीं किया गया। 

2018 में बनजोत कौर ने डाउन टू अर्थ में इसकी रिपोर्ट की थी।हमने उसी रिपोर्ट से आपको बताया उसमें यह भी था कि 2016 में राष्ट्रीय गंगा मिशन के गठन के बाद 2018 तक तीन बैठकें होनी चाहिए थी, लेकिन हुई एक।अब आते हैं चाचा चौधरी की बात पर। उनका गंगा से कोई संबंध नहीं मगर चाचा चौधरी लोकप्रियता के मामले में किसी से कम भी नहीं हैं। 

1 अक्तूबर 2021 की PIB की प्रेस रिलीज में बताया गया है कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन NMCG की 37 वीं कार्यकारी बैठक में चाचा चौधरी को शुभंकर बाने का फैसला किया गया ताकि बच्चों को जागरुक किया जा सके। इसका बजट सवा दो करोड़ का बजट रखा गया है । इसी प्रेस रिलीज में यूपी के बारे में जानकारी है कि 12,472 किलोमीटर की सीवर लाइन बिछाई जाएगी। इसे STP प्लांट से जोड़ा जाएगा। पहले चरण में 7.60 किलो मीटर की सीवर लाइन का काम पूरा हुआ है और 4,872 किलोमीटर का काम प्रगति पर है। यह अक्तूबर 2021 की जानकारी है।

इसी अप्रैल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्विट किया था कि गंगा अभियान के 46 में से 25 प्रोजेक्ट पूरे हो गए। 19 पर काम चल रहा है। सारी योजनाएं समयबद्ध तरीके से पूरी हो रही हैं।
गंगा में गिरने वाला आधा पानी साफ नहीं है, ग्रीन ट्रिब्यूनल का कहना है। 2015 में मोदी कैबिनेट ने अगले पांच साल में 20,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाने को मंज़ूरी दी थी। 2019 में बीजेपी ने मेनिफेस्टों में वादा किया था कि 2022 में गंगा साफ हो जाएगी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरमैन जस्टिस आदेश कुमार गोयल ने कहा है कि गंगा का पानी इतना साफ होना चाहिए कि लोग न सिर्फ नहा सकें बल्कि आचमन भी कर सकें।

आज के हिन्दुस्तान में हिमांशु झा की खबर है कि गंगा का पानी 97 स्थानों पर आचमन के लायक भी नहीं है। अभी भी 60 जगहों पर सीवेज का पानी गिर रहा है। उत्तराखंड, यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में जितना सीवेज हर दिन निकलता है उसका 40 प्रतिशत सीवेज का ही ट्रीटमेंट होता है। बाकी सीधे गंगा में गिरता है। क्योंकि 226 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमता से कम पर काम कर रहे हैं।यूपी में 118 STP हैं। 83 प्रतिशत क्षमता पर काम करना इतना बुरा रिकार्ड भी नहीं है लेकिन गंगा साफ नहीं हो रही है यह भी एक तथ्य तो है ही। इस रिपोर्ट के अनुसार कई सारी STP नियमों और मानकों के हिसाब से काम नहीं कर रही हैं। 

हमारे सहयोगी अजय सिंह ने बनारस से एक रिपोर्ट की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जब यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गंगा में हो रहे प्रदूषण की जांच और कार्रवाई नहीं कर पा रहा है तो ऐसे में उसके गठन का कोई औचित्य नहीं है।क्यों न प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ख़त्म कर दिया जाए। इस मामले की सुनवाई कर रही हाईकोर्ट की तीन जजों की व्यापक खंडपीठ ने डायरेक्टर जनरल से कहा है कि एक महीने के भीतर बताएं कि गंगा को स्वच्छ व निर्मल बनाने में खर्च किये गए अरबों के बजट का पूरा ब्यौरा पेश करने को कहा है।  साथ ही उनसे यह भी बताने को कहा है कि अरबों रूपये खर्च किये जाने के बावजूद गंगा अब तक साफ़ क्यों नहीं हो सकी है। 

2019-23 के बीच सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, घाट और  शवदाह गृह को लेकर 127 प्रोजेक्ट का लक्ष्य रखा गया था, इनमें से 80 पूरो हो गए हैं। 1580 किलोमीटर लंबी सीवेज लाइन बिछी है। 82 घाट का जीर्णोद्धार हुआ है। विकास हुआ है। 20 शवदाह गृह बने हैं। 30,000 हेक्टेयर इलाके में वृक्षारोपण किया गया है। 56 लाख से अधिक मछलियां नदी में छोड़ी गई हैं। 930 कछुए छोड़े गए हैं। 37 साल से गंगा को साफ करने का अभियान चल रहा है लेकिन गंगा की सफाई मंज़िल से काफी दूर नज़र आती है।

15 अगस्त 2022 आ रहा है, इसके लिए बीजेपी ने 75 संकल्प तय किए थे। इन दिनों उन 75 संकल्पों की चर्चा सुनाई नहीं देती है, उसकी जगह पर एक नई चर्चा आ गई है।घर घर तिरंगा अभियान ज़ोर पकड़ चुका है। कहाँ जा रहा है लोग तिरंगा फहराएँ ये कहाँ जाना चाहिए कि गंगा देखने चलो गंगा साफ़ हो गई है 
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