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This Article is From Jun 24, 2015

ललित कथा में फंसी वसुंधरा, दस्‍तखत वाला हलफनामा आया सामने

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 24, 2015 21:46 pm IST
    • Published On जून 24, 2015 21:41 pm IST
    • Last Updated On जून 24, 2015 21:46 pm IST
नहीं नहीं इसमें मंत्रियों के इस्तीफे नहीं हुआ करते भईया, ये यूपीए नहीं एनडीए government है। राजनाथ सिंह की बात हैरान करने वाली थी लेकिन उन्हें भी अंदाज़ा नहीं होगा कि उनके इस बेतकल्लुफ़ अंदाज़ पर शाम होते होते वसुंधरा राजे का वो हलफनामा भारी पड़ सकता है जिस पर उनके दस्तखत हैं।

अभी तक बीजेपी यही कह रही थी कि जो भी दस्तावेज़ सामने आया है उस पर दस्तखत नहीं है। ललित मोदी ने कहा था कि दस्तखत है। आप भी देखिये इस दस्तावेज़ को। अबकी बार पूरा दस्तावेज़ सामने आ गया है। यह वही हलफनामा है जिसके बारे में वसुंधरा ने कहा था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। अब ये वही हलफनामा है जिस पर उनके दस्तखत हैं। पिछले हफ्ते जो आया था उसमें दस्तखत नहीं थे। लेकिन अब वसुंधरा राजे का सिग्नेचर है।

वसुंधरा ने यह हलफनामा ललित मोदी को लंदन की रेजिडेंसी लेने के लिए दिया था। तब जब भारत का प्रवर्तन निदेशालय ललित मोदी की तलाश कर रहा था। क्या अब भी बीजेपी या मोदी सरकार वसुंधरा राजे का बचाव कर सकेगी। कांग्रेस ने भी देरी नहीं की। ठीक वैसा ही किया जैसा कोयला और कॉमनवेल्थ घोटाले के समय होता था। बीजेपी रात बिरात प्रेस कांफ्रेंस करती थी। अब कांग्रेस कर रही है और इस्तीफा मांग रही है।

इस्तीफा डिमांड में है। राजनाथ कहते हैं कि ये यूपीए नहीं है एनडीए है। इस्तीफा नहीं होता है। आज दिल्ली की एक अदालत ने हलफनामे में मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री की जानकारी के बारे में याचिका स्वीकार कर ली। याचिका ही स्वीकार की लेकिन आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने तुरंत स्मृति ईरानी से इस्तीफा मांग दिया।

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री का विवाद जेल जेल घूम रहे आम आदमी पार्टी के विधायक जितेंद्र सिंह तोमर के पकड़े जाने से पहले का है। लेकिन जिस तरह से जितेंद्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी हुई, फर्ज़ी डिग्री या विवादित डिग्री के मामले का संदर्भ बदलता जा रहा है। महाराष्ट्र से भी एक मंत्री की डिग्री विवादों में है।

2004 में लोकसभा का चुनाव लड़ते वक्त स्मृति ईरानी ने अपने हलफनामे में बताया कि उन्होंने 1996 में दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार विद्यालय से बीए पास किया है, 2011 में राज्यसभा का चुनाव लड़ीं तो बीए कॉमर्स पार्ट वन बताया।

2014 के हलफनामे में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग से बीकॉम पार्ट वन किया है। दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत ने इस मामले पर सुनवाई की मंज़ूरी दे दी है। 28 अगस्त को सुनवाई होगी, सुनवाई कई दिन चल सकती है, यह न समझिये कि उस दिन फैसला आने वाला है। महत्वपूर्ण बात यह है कि 2004 का मामला होने के बाद भी अदालत ने इसे पुराना नहीं माना और सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। इसलिए अब समन देने के पहले की सुनवाई होगी जिसमें आरोप लगाने वाले को ही सारे सबूत लाकर साबित करना होगा। उसके बाद स्मृति ईरानी को ट्रायल में पेश होना पड़ेगा। ध्यान रहे अदालत ने सिर्फ आरोपी को सबूत लाकर साबित करने के लिए कहा है। किसी तरह का कोई फैसला नहीं दिया है।

26 मई को केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ लेने से 16 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के मामले में एक फैसला दिया था। ठाणे ज़िले के विधायक किशन शंकर कठोरे ने अक्टूबर 2004 के अपने हलफमाने में बकाया बिजली बिल, पत्नी के नाम बंगला और शेयर की जानकारी नहीं दी। कठोरे साहब पहले हाईकोर्ट में हारे फिर सुप्रीम कोर्ट में। उनकी सदस्यता चली गई। फैसला इंटरनेट पर किशल शंकर कठोरे बनाम दत्तात्रेय सावंत के नाम से मौजूद है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जब यह साबित हो जाता है कि जानकारी नहीं दी गई या गलत जानकारी दी गई या पूरी जानकारी नहीं दी तो माना जाएगा कि नामांकन सही तरीके से स्वीकार नहीं किया गया। चुनाव आयोग की तरफ से बहस करते हुए मीनाक्षी अरोड़ा ने सही कहा है कि ऐसी जांच तो बाद में ही सकती है। अगर पहले पता चल जाता है कि हलफनामे में गलत जानकारी दी है तो वो चुनाव नहीं लड़ सकता इस लिहाज़ से अगर बाद में पता चलता है तो उसका चुनाव रद्द हो सकता है।

यहां तक कि नामांकन भरते समय हलफनामे में जानकारी नहीं देने और खाली स्थान छोड़ देने के बारे में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है। 2013 के रिसर्जेंस इंडिया बनाम चुनाव आयोग मामले में फैसला दिया गया था कि खाली स्थान छोड़ने पर सदस्यता जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2012 के विधानसभा में दिए गए हलफनामे के बारे में यही आरोप था कि वहां विवाहित कॉलम नहीं भरा गया था। 2014 के हलफनामे में विवाहित लिखा गया था। यह मामला गुजरात हाई कोर्ट में चल रहा है।

अब बीजेपी इस बारे में सोनिया गांधी का उदाहरण देती है। 11 अप्रैल 2005 की एक रिपोर्ट है हिन्दू अखबार की। सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका खारिज कर दी थी। उनकी मांग थी कि चुनाव आयोग सोनिया गांधी के खिलाफ शिकायत दर्ज करे। स्वामी के अनुसार 2004 में सोनिया गांधी ने अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी दी थी। दो जजों की बेंच ने कहा था कि सोनिया गांधी ने जानकारी नहीं छिपाई कि उन्होंने कैंब्रीज विश्वविद्यादलय के लेनाक्स कूक स्कूल से अंग्रेजी में सर्टिफिकेट कोर्स किया था। स्वामी का दावा था कि सोनिया गांधी यूनिवर्सिटी के उस संस्थान में कभी रजिस्टर ही नहीं थीं।

लौट कर आते हैं फिर से वसुंधरा राजे के हलफनामे की ओर। ललित मोदी खुलेआम ट्वीट कर रहे हैं कि उनके हैंडल पर दस्तावेज़ हैं। इस हलफनामे में वसुंधरा राजे के दस्तखत हैं। इसमें वसुंधरा राजे ने जो लिखा है वो न सिर्फ वसुंधरा बल्कि अब प्रधानमंत्री की चुप्पी पर और भी गहरा सवाल करता है।

वसुंधरा ने लिखा है कि 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने मेरे और ललित के ख़िलाफ़ काफी कुप्रचार चलाया था। उन्होंने मेरे मुख्यमंत्री काल के दौरान हम दोनों पर भ्रष्टाचार के कई बेबुनियाद आरोप लगाए। लेकिन तब तक ललित मोदी का नाम भारत के घर घर में मशहूर हो चुका था बल्कि दुनिया का खेल जगत जानने लगा था।

आईपीएल की शानदार कामयाबी के बाद ललित की सफलता को क्रिकेट जगत के पुराने लोग और कांग्रेस पार्टी के नेता पचा नहीं पाए। तब तक ललित को एंटी कांग्रेस और प्रो बीजेपी के रूप में बताया जाने लगा था। ललित मोदी बाहर से ट्वीट कर रहे हैं कि मेरे ख़िलाफ़ अरुण जेटली, अहमद पटेल और राजीव शुक्ला की तिकड़ी जमा हो गई है। ललित मोदी ने एक और ट्वीट किया है कि ऐसा लगता है कि एक चैनल ने पैसे देकर डाक्यूमेंट निकलवाए हैं।

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