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This Article is From Apr 15, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : मुंबई लोकल में स्टंट की नौटंकी

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 15, 2016 21:43 pm IST
    • Published On अप्रैल 15, 2016 21:34 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 15, 2016 21:43 pm IST
किसको समझाया जाए। बेटी को या बेटी के बाप को। क्या सिर्फ यही हैं जो ऐसा करते हैं या और भी कई लोग हैं जो अपने बच्चों को कानूनी उम्र से पहले स्कूटर बाइक दे देते हैं। आखिर क्या जल्दी थी कि इन जनाब ने अपनी सात साल की बेटी को स्कूटी का हैंडल पकड़ा दिया।

रिकॉर्ड की जगप्रसिद्ध किताबों में रोज़ाना दुनिया भर से शामिल होने वाले रिकॉर्ड किसी कबाड़ से कम नहीं हैं मगर उस कबाड़ के लिए कोई अपने बच्चों को धार्मिक ग्रंथ रटवा रहा है तो कोई तीन चार दिन तक नाचता ही जा रहा है। हमें पता नहीं कि हैदराबाद के इस पिता की ऐसी कोई मंशा है या नहीं लेकिन कोई भी समझ सकता है कि यह अपनी और अपनी बेटी दोनों की ज़िंदगी ख़तरे में डाल रहा है। हो सकता है कि सड़क पर इन्हें बचाने के चक्कर में कोई बेकसूर अपनी गाड़ी कहीं और भिड़ा दे और मारा जाए। पापा जी ने हमारी सहयोगी उमा सुधीर को कहा कि ये जो भी कहती है मैं उसे मना नहीं करता हूं।

अगर आप दर्शकों में इस लेवल का कोई पापा है तो प्लीज़ खुद को चेक कीजिए। इसके पापा जी ने कहा कि चार साल की उम्र से स्कूटी चला रही है यानी तीन साल हो गए इसे स्कूटी चलाते हुए। यह वीडियो बता रहा है कि सिर्फ मम्मी पापा हो जाने से दुनिया में सही ग़लत समझने की अक्ल नहीं आ जाती है। हम लोग मां बाप को लेकर कुछ ज़्यादा ही भावुक हो जाते हैं और देव देवी बनाने लगते हैं। मम्मी डैडी को भी लगने लगता है कि वे कैलेंडर वाले भगवान हैं। प्लीज़ खुद को सिम्पल मानव समझना शुरू कीजिए। हद तो ये थी कि कैमरे के सामने पापा जी को बात करते वक्त हंसी ही आ रही थी।

ऐसा बिल्कुल न करें, इस तरह की चेतावनी के बाद भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो बिल्कुल वैसा ही करेंगे। हैदराबाद के एक परिवार के लालन पालन का रिकॉर्ड सबका नहीं हो सकता मगर ऐसे रिकॉर्ड बनाने वाले अब कई परिवारों में मिल जाते हैं। मुंबई के तमाम रेलवे स्टेशनों पर सीसीटीवी नामक सर्वव्यापी और सर्वज्ञानी यंत्र लगा ही होगा, फिर भी कैसे पता नहीं चलता कि कुछ लड़के चलती रेल से खेलते हुए स्टेशन से गुज़र जाते हैं।

अब आप इन स्कूली बच्चों को देखिए किस तरह से चलती ट्रेन में चढ़ जाते हैं। लोकल के खुलने के बाद चढ़ कर दिखाने की मस्ती में ये सब कर रहे हैं। चलती ट्रेन से झुक कर प्लेटफार्म की सतह को छूने का प्रयास करते हैं। प्लेटफार्म की सतह से पांव रगड़ते जाते हैं। स्कूली बच्चों ने लगता है इस नौजवान से सीखा होगा जो झुककर ज़मीन छू रहा है। कुछ लड़के अजीब अजीब तरीके से लटके हुए हैं। प्लेटफार्म आने के बाद भी ट्रेन की छत पर खड़े हैं और खिड़की से लटके हुए हैं। अब इस स्टंट से इन्हें जान का ख़तरा तो है ही, इनकी वजह से कोई और भी मारा जा सकता है। प्लेटफार्म पर इनके फिसलने से कोई दूसरा भी चपेट में आ सकता है। ये तस्वीरें आपने पहले भी देखी होंगी। समस्या ये है कि समस्या सिर्फ दिखाने की ही चीज़ बनकर रह गई है। रेल प्रशासन ने आखिर इस पर लगाम क्यों नहीं लगाया। क्या ये भी कोई खूबी है जिसे हम दुनिया के लिए बचाकर रखना चाहते हैं। दीपेश जैसे युवा का शुक्रिया कि उन्होंने दो महीने लगाकर आठ घंटे के ऐसे फुटेज रिकॉर्ड किये हैं। इन तस्वीरों को देखकर लगता है कि जान की बाज़ी लगाकर लोकल में स्टंट करना कितना आसान हो गया है। दीपेश जैसे युवाओं ने एक संस्था ही बना ली है वार अंगेस्ट रेलवे राउडी। ये वीडियो इसलिए तैयार किया गया है ताकि रेल प्रशासन देखे और कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो।

सुनील सिंह ने रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के पश्चिम रेलवे आयुक्त आनंद विजय झा से बात की। उनका कहना है कि पर्याप्त संख्या बल नहीं है इस पर लगाम लगाने के लिए। इन्हें यह भी देखना होता है कि यात्री मजबूरी में लटका है या जानबूझकर स्टंट कर रहा है। अजीब है। आप इनकी बात सुनिये और साथ साथ तस्वीरों को देखकर फैसला कीजिए कि कोई छत पर मजबूरी के तहत खड़ा है। चलती रेल की छत पर खड़े रहने का संतुलन अचानक किसी मजबूरी में आ जाता है या इसके लिए जानलेवा अभ्यास की ज़रूरत होती होगी।

जैसे ये लड़का किसी पुल के नीचे झुकता है तो क्या मजबूरी है। क्या मजबूरी में रेल की छत पर चलने का कोई कानून है इस देश में। जान की कीमत बड़ी है या मजबूरी। वैसे रेलवे ने पिछले साल 2000 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है मगर लगता है कि कार्रवाई से लोगों में डर पैदा नहीं हो सका है। पिछले साल यानी जो 2015 था उसमें मुंबई लोकल से गिर कर 806 लोगों की मौत हो गई। क्या ये हमारी नाकामी नहीं है कि इतनी बड़ी तादाद में मौत की संख्या को रोक नहीं सके। क्या ये बिल्कुल ही असंभव काम है। पिछले साल 17 लोगों की करंट लगने से मौत हो गई है। 40 की मौत स्टंट करने के दौरान हुई है। पोल से टकराने की वजह से 2015 में 13 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। हालांकि गैर-सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या कहीं ज़्यादा है। क्या इस बीमारी को एक हफ्ते में काबू नहीं किया जा सकता।

सुरक्षा के लिहाज़ से भी मुंबई का रेलवे स्टेशन बेहद संवेदनशील है। आतंकी घटनाओं का शिकार रही है मुंबई लोकल। इसके बाद भी अगर रेलवे प्रशासन का यह रैवाया है तो कोई भी इस तरह की हरकत करता हुआ आ सकता है और कुछ भी कर सकता है। ये स्टंट बता रहे हैं कि हम सुधरे नहीं हैं। सुरक्षा हमारी प्राथमिकता नहीं है। यह सिर्फ प्रशासन की नाकामी नहीं है बल्कि एक नागरिक समाज के रूप में भी हमारी नाकामी है कि इन ट्रेनों में चलने वाले लोग इन सब हरकतों को लेकर सामान्य हो गए हैं। एक समस्या और है लोकल समाधान है तो इसके भीतर कई तरह की समस्या भी है। लोकल की भीड़ जानलेवा भी होती है। ठूंस कर लोगों के चलने से दम भी घुटता है। 76 लाख लोगों को यहां की लोकल रेल रोज़ ढोती है। हर बात का यही जवाब नहीं हो सकता कि लोकल में तो होता ही रहता है ये सब।

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