मॉनसून सत्र शुरू होते ही गतिरोध, ये 'is equal to' क्या है?

नई दिल्‍ली:

हमारी राजनीति में इज़ इक्वल टू हो गया है। इज़ इक्वल टू वो अवस्था है जहां राजनीति की हर बहस बराबर हो जाती है। ऐसा तभी होता है जब किसी मुल्क या राज्य में दो दलों को बारी-बारी से राज करने का मौका मिलता है। ऐसा होने से दोनों पर लगने वाले आरोपों का इज़ इक्वल टू हो जाता है।

अगर कांग्रेस बीजेपी पर व्यापमं घोटाले का आरोप लगाए तो बीजेपी कांग्रेस पर अमेरिकी कंपनी से रिश्वत लेने का आरोप लगा सकती है। इससे अनैतिकता में दोनों बराबर होकर नए सिरे से नैतिक हो जाते हैं। इज़ इक्वल टू सिर्फ कांग्रेस बनाम बीजेपी ही नहीं बल्कि किसी भी दल का किसी से भी हो सकता है। इज़ इक्वल टू की खोज करने वाला संयोगवश आपके सामने हाज़िर है लेकिन आप चाहें तो मेरी इस खोज को अपने नाम से पेटेंट करा सकते हैं।

इसी इज़ इक्वल टू की अवस्था से बचने के लिए बीसवीं सदी में लोकपाल की कल्पना की गई थी मगर इक्कीसवीं सदी में कानून बनने वाले लोकपाल का भी इज़ इक्वल टू हो गया है। अब आप पूछेंगे कि बीजेपी लोकपाल का क्या कर रही है तो बीजेपी कहेगी कि कांग्रेस क्या कर रही थी। फिर कांग्रेस कहेगी कि हमने तो कानून बना दिया था। फिर बीजेपी कहेगी कि विपक्ष का नेता नहीं है और इसके लिए कानून बदलना ज़रूरी है और उसके लिए संसद का चलना ज़रूरी है। कांग्रेस कहेगी जैसे आप हमारे समय खूब संसद चलने देते थे। इस तरह से दोनों के बीच इज़ इक्वल टू का खेल चलता रहेगा।

प्रधानमंत्री 26 जुलाई को मन की बात पेश करने वाले हैं लेकिन उनकी मन की बात का असर ये तो हुआ ही है कि बीजेपी में भी कई नेता मन ही मन मन की बात कर रहे हैं। वरिष्ठ नेता और भाजपा सांसद ने बताया कि 10 जुलाई को उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से मन की बात कही थी लेकिन फेसबुक पेज मैनेज करने वाले मित्र ने ग़लती से चिट्ठी को मन की बात से जन की बात कर दी। शांता कुमार जी अपनी चिट्ठी के हर शब्द के साथ खड़े हैं मगर पार्टी में उनके साथ कोई नहीं खड़ा है।

बीजेपी पर लगते भ्रष्टाचार के आरोपों से आहत शांता कुमार जी का केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने इज़ इक्वल टू कर दिया है और कहा है कि शांता कुमार कांग्रेस के मिथ्या प्रचारों के बहकावे में आ गए हैं। गनीमत है कि रूडी साहब ने सांसद शांता कुमार को बीजेपी के भीतर छिपा हुआ कांग्रेसी नहीं कहा वर्ना इज़ इक्वल टू का ए प्ल्स बी का होल स्क्वायर हो जाता जिसके तहत बीजेपी के अंदर भी कांग्रेसी हो सकते हैं और कांग्रेस के भीतर भी भाजपाई।

प्राइम टाइम के एक अन्य शो में व्यापमं घोटाले के व्हीसल ब्लोअर और आरएसएस के स्वंयसेवक आनंद राय को एक वक्ता ने दिग्विजय सिंह का एजेंट कह दिया था। अच्छा है कि इस दौर में शांता कुमार जैसे लोग हैं सोचने वाले, कायदे से इस चिट्ठी का उनके कार्यों के संदर्भ में भी मूल्यांकन हो सकता था, फिर भी ऐसी बात कांग्रेस के भीतर से भी कोई कहता तो यकीन मानिये उसका स्वागत नहीं होता। शांता कुमार ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को लिखा है कि राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक उंगलियां उठने लगी हैं।

- मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले ने हम सब का सिर शर्म से नीचा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता सिर झुका कर चल रहा है।
- मेरा सुझाव है कि एक नई आचार समिति का गठन किया जाना चाहिए। इस समिति में पार्टी के ऐसे अनुभवी और समर्पित कार्यकर्ता रहे जिन्होंने मूल्यों की रक्षा के लिए कभी किसी प्रकार का समझौता न किया हो। केंद्र और राज्य स्तर पर यह समितियां एक लोकपाल का काम करें। सत्ता में बैठे हुए नेताओं को ठीक समय पर उनकी ग़लती बताने का साहस करें।

मैंने कहा न कि लोकपाल का इज़ इक्वल टू हो गया है। जो देश में नहीं आया वो पार्टी में कैसे आ जाएगा। इस बीच संसद का मॉनसून सत्र बिलुक्ल उसी तरह शुरू हुआ है जिसकी चर्चा जेठ और आषाढ़ के दिनों से की जा रही थी। सुबह सुबह संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू इज़ इक्वल टू थ्योरी के तहत संदेश देने लगे कि अगर कांग्रेस ने ये कहा तो हम वो कह देंगे।

जैसे कोई केरल में बार लाइसेंस घोटाले के बारे में ज़िक्र करना चाहता है। कुछ लोग केरल के सोलर घोटाले के बारे में चर्चा करना चाहते हैं जिसमें मौजूदा मुख्यमंत्री को न्यायिक आयोग की तरफ से इशारा भी मिला है। गोवा और असम की पूर्ववर्ती सरकारों को अमेरिकी कंपनी के द्वारा रिश्वत देने का मामला भी काफी बड़ा है। फिर हमारे पास उत्तरांचल में आपदा राहत के पैसे और पुनर्वास के घोटाले की भी चर्चा करनी है। कर्नाटक का ज़मीन घोटाला भी है। जैसा कि ऑटोमेटिक रूप से स्पष्ट होता है कि ये सारे घोटाले कांग्रेसी सरकारों से संबंधित हैं।

क्या बीजेपी यह कह रही है कि कांग्रेस हमारे घोटाले न बताये वर्ना हम उनके बता देंगे। क्या दोनों अपने-अपने घोटाले स्वीकार कर रहे हैं। वी विल आस्क देम। कांग्रेस की भी लंबी सूची है। ललित गेट मामले में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, व्यापमं मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कथित रूप से 36000 करोड़ के चावल घोटाले के मामले में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह। आखिर इस तरह के इज़ इक्वल टू से आप दर्शक या मतदाता क्या करेंगे। क्या दोनों को दोषी मानकर सज़ा माफ कर देंगे। ये एक नई प्रकार की सज़ा है।

मंगलवार को लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज ने स्पीकर की कुर्सी के नज़दीक सोनिया गांधी और मुलायम सिंह यादव से बातचीत भी की। प्रधानमंत्री ने इससे पहले कहा कि उम्मीद है कि सत्र अच्छा चलेगा और विपक्ष का सहयोग मिलेगा। लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस ने अपनी लाइन साफ कर दी। जब तक इस्तीफा नहीं होगा वो पीछे नहीं हटेगी। आनंद शर्मा के बयान के बाद राज्य सभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी आक्रामक तरीके से कहा कि सुष्मा स्वराज अपना पक्ष रखने के लिए तैयार हैं और हम भी इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार हैं लेकिन कांग्रेस इस्तीफे की मांग पर अड़ी रही।

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने भी वेकेंया नायडू की तरह बीजेपी का इज़ इक्वल टू कर दिया। आनंद शर्मा ने कहा कि दुनिया भर में बोलने वाले प्रधानमंत्री व्यापमं-वसुंधरा पर क्यों नहीं बोलते हैं। नाम न लेते हुए भी आनंद शर्मा जी प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच इज़ इक्लव टू ही कर रहे थे। बीजेपी कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि हम चर्चा चाहते हैं और कांग्रेस सदन चलने नहीं देना चाहती।

आनंद शर्मा ने कहा कि अरुण जेटली जी को याद करवाता हूं और सुषमा जी को। एक नहीं बल्कि कई संसद के सत्र बर्बाद किए गए। संसद का रिकॉर्ड दोनों की छपी हुई पुस्तिका आप पढ़ सकते हैं। एक शब्द नहीं कोई बोल सका। एक प्रश्न नहीं हुआ। एक बिल पारित नहीं हुआ। और त्यागपत्र होने के बाद भी यही होता रहा। सुषमा जी का अपना बयान है कि अगर पहले इस्तीफे हो जाते तो सदन चलता। 2013, 2010 के बयान देख लीजिए।

मैं सोच कर आया था कि मैं आप दर्शकों को इज़ इक्वल टू की थ्योरी से थका दूंगा तभी आनंद शर्मा के बयान के उस हिस्से पर पहुंचा जिससे लगा कि अब भी बहुत मामले में इज़ इक्वल टू नहीं है। आनंद शर्मा ने कहा कि वेंकैया नायडू को बताना पड़ेगा कि पहले 10 साल में जो नहीं हुआ वो एक साल में कैसे हो गया। फर्क ये आया है कि 10 साल ये गैर जिम्मेवार विपक्ष देश में था। भाजपा। और एक साल में जो काम हुआ उसका श्रेय कांग्रेस को जाता है।

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तो अब क्या ये कहा जाए कि दोनों पार्टियां एक दूसरे को ब्लैकमेल कर रही हैं। इज़ इक्वल टू के फेर में संसद फंस गई है। राजनीति की नैतिकता चुनाव न होने के कारण मायके चली गई है। ससुराल में हंगामा तो है मगर गांव के लोग क्या करें। तमाशा देखें या हिसाब जोड़े कि किसका किससे इज़ इक्वल टू होता है।