सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों के समर्थक हिंसक होते जा रहे हैं। राजनीतिक दलों ने कार्यकर्ताओं और समर्थकों की ऐसी फौज तैयार कर दी है जो सवाल करने या विरोध करने पर गाली गलौज करने लगते हैं। बदनाम करते हैं। यह इसलिए किया जाता है ताकि सवाल फैले न और करने वाला डर जाए।
सबको यह समझना चाहिए कि सवाल करना विरोध करना नहीं होता है। सवाल करने से ही और अधिक जानने की शुरूआत होती है। अगर आप सवाल नहीं करते हैं तो आप देश, समाज और खुद के लिए भी घातक हो सकते हैं। जो सवाल नहीं करता है वो सकारात्मक हो ही नहीं सकता है। वो नकारात्मक हो जाता है क्योंकि वो कम जानता है। अगर आप किसी के समर्थक हैं तब भी सवाल करने की आदत मत छोड़िये।
डिजिटल इंडिया कैंपेन को लॉन्च करते वक्त प्रधानमंत्री की एक बात पर लोगों ने कम ध्यान दिया होगा। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में रक्त विहीन युद्ध के ख़तरे मंडरा रहे हैं। भारत इस रक्त विहिन युद्ध में शांति का दूत बन सकता है। इस पर विस्तार से बात करने का मौका होता तो प्रधानंमत्री को ज़रूर ध्यान आता कि भारत में भी विरोधियों और सवाल करने वालों को दबाने के लिए रक्त विहीन युद्ध का खेल चल रहा है। जिसकी शुरूआत लोकसभा चुनावों के दौरान ही हुई थी। यह एक तथ्य है कि नमो समर्थकों के नाम पर कई लोग हमलावर बन गए और अभद्र और तीखी भाषा का इस्तमाल करने लगे। जवाब में नमो समर्थकों के साथ भी ऐसा ही हुआ मगर संख्या में अधिक होने के कारण नमो समर्थक भारी पड़ गए।
राजनीतिक दलों ने इसे बढ़ावा इस रूप में दिया कि सबको इस हथियार से खेलने का मौका मिला इसलिए किसी ने इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई। ये वो लोग थे बल्कि हैं जो अपने प्रोफाइल में इंजीनियर, डॉक्टर और मैनेजर लिखते हैं, देवी देवताओं की उग्र तस्वीर लगाते हैं, खुद को किसी नेता का अंध समर्थक बताते हैं। इनकी प्रोफाइल का सामाजिक राजनीतिक अध्ययन होना ही चाहिए। चुनावों के बाद सबसे ज़्यादा इसकी शिकार महिलाएं हो रही हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता को कुचला जा रहा है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सोशल मीडिया पर महिलाओं पर अभद्र भाषाओं के हमले हो रहे हैं। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के समर्थक भी ये खेल खेलने लगे हैं।
गुरुवार सुबह जब प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर सक्रिय 150 लोगों से मुलाकात की तो उन्हें यही नसीहत दी कि अभद्र भाषा का इस्तमाल न करें। आलोचना का तीखा जवाब न दें वर्ना सोशल मीडिया खत्म हो जाएगा। उनकी इस बात का स्वागत तो किया ही जाना चाहिए बल्कि चेतावनी की तरह भी लिया जाना चाहिए।
यह भी एक तथ्य है कि हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर पनप रही इस खतरनाक संस्कृति का शिकार हमारे प्रधानमंत्री भी होने लगे। वसुंधरा राजे और सुषमा के प्रकरण को लेकर उनके बारे में भी अभद्र टिप्पणियां हुई हैं। महिला मंत्रियों का अभद्र तरीके से मज़ाक उड़ाया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा भी कि इतनी बुरी बातें लिखी गईं हैं, अगर उन्हें छापा जाए तो पूरा ताजमहल ढंक जाएगा। ईश्वर और अल्लाह दोनों न करें कि ताजमहल को अपशब्दों से ढंकने की नौबत आए। वो दिन बहुत बुरा होगा।
अब एक सवाल आपसे है और हमारे प्रतिनिधियों से। क्या आप सही सही पार्षद, विधायक और सांसद के कार्यों के बारे में जानते हैं? यही हाल हमारे प्रतिनिधियों का भी है। आपको कई जगह ऐसा मिलेगा कि सासंद साहब पार्षद का काम कर रहे हैं, विधायक जी अपनी जिम्मेदारी सांसद पर टाल रहे हैं। इसी का लाभ उठा कर कई सांसद कई जगहों से सुविधा भी ले लेते हैं।
जैसे आपको इसी प्राइम टाइम में बताया था कि नैनिताल से बीजेपी सांसद भगत सिंह कोश्यिरी को देहरादून में पूर्व मुख्यमंत्री के नाते एक सरकारी मकान मिला हुआ है। इस बंगले के रखरखाव और सुरक्षा पर राज्य सरकार एक साल में करीब 40 लाख रुपये खर्च कर देती है। पूर्व मुख्यमंत्री के नाते इन्हें तीन सहायक रखने के लिए हर महीने 85 हज़ार रुपये मिलते हैं।
हरिद्वार से बीजेपी सांसद रमेश चंद्र पोखरियाल निशंक को भी पूर्व मुख्यमंत्री के नाते सरकारी बंगला मिला हुआ है। आरटीआई की जानकारी बताती है कि 2010 से 2011 के बीच यानी एक साल में पूर्व मुख्यमंत्री के नाते निशंक को मिली सरकारी कार के पेट्रोल और रखरखाव पर 22 लाख रुपया खर्च हुआ है। मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा उत्तराखंड से विधायक बनने के बाद भी दिल्ली में मिले सरकारी मकान को छोड़ नहीं पा रहे हैं। नारायण दत्त तिवारी के पास देहरादून और लखनऊ में पूर्व सीएम के नाते सरकारी मकान मिला हुआ है।
पंद्रह जून से हमारे सैनिक जंतर मंतर पर वेतन और पेंशन के लिए भूख हड़ताल कर रहे हैं लेकिन हमारे सांसद कितनी आसानी से अपनी सुख सुविधा और सैलरी बढ़ाने का प्रस्ताव भेज देते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में सूत्रों के हवाले से ख़बर छपी कि संसदीय कमिटी ने सांसदों की तनख्वाह डबल करने का सुझाव दिया है। आपकी सुविधा के लिए हमने कमेटी के चैयरमैन गोरखपुर से सासंद योगी आदित्यनाथ की सैलरी का हिसाब लोकसभा की साइट से निकाला है। उसी के आधार पर मौजूदा और प्रस्तावित हिसाब बताते हैं।
मार्च 2015 में आदित्यनाथ जी को कुल 3 लाख 8 हज़ार 666 रुपये मिले थे।
बेसिक - 50,000
संसदीय क्षेत्र भत्ता - 45000
आफिस का खर्चा - 15000
सहायक की सैलरी - 30000
यात्रा और दैनिक भत्ता - 1,68,666
कमेटी ने सुझाव दिया है कि बेसिक को 50,000 से बढ़ाकर 1 लाख कर दिया जाए। पूर्व सांसद के पेंशन को 20,000 से बढ़ाकर 35,000 कर दिया जाए। सहायक को भी सांसद के साथ रेल में प्रथम श्रेणी एसी का फ्री टिकट मिले। पूर्व सांसद को भी एक साल में हवाई यात्रा के लिए 20-25 टिकट फ्री मिले।
इसके अलावा आप संसद भवन की कैंटीन का रेट तो जानते ही हैं। 20 रुपये की मटन करी और 4 रुपये प्लेट चावल। दो रुपये में पूड़ी सब्ज़ी खा सकते हैं। अंत्योदय योजना कहीं ठीक चल रही है तो वो संसद भवन की कैंटीन है। दिल्ली में घर, फोन, फर्नीचर मुफ्त मिलता है। स्टीमर का भी भत्ता मिलता है। आखिर मीडिया और सोशल मीडिया में सांसदों विधायकों की सैलरी पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया क्यों होती है। क्यों लगता है कि उनका वेतन ज्यादा है।
This Article is From Jul 02, 2015
जन प्रतिनिधियों के वेतन का मुद्दा : क्या सांसदों का वेतन बढ़ाना ठीक?
Ravish Kumar
- Blogs,
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Updated:जुलाई 02, 2015 21:29 pm IST
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Published On जुलाई 02, 2015 21:21 pm IST
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Last Updated On जुलाई 02, 2015 21:29 pm IST
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