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This Article is From Jul 08, 2015

व्‍यापक व्‍यापमं में किसे बचाने की कोशिश?

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जुलाई 08, 2015 21:36 pm IST
    • Published On जुलाई 08, 2015 21:21 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 08, 2015 21:36 pm IST
इस साल 3 मई को ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट की प्रवेश परीक्षा में भी नकल हो गई तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सीबीएसई के वकील जिरह करते रह गए कि 44 छात्रों की ग़लती की वजह से 67 लाख 30 हज़ार बच्चों को दोबारा इम्तहान के लिए मजबूर करना सही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि अगर एक भी बच्चे को अवैध तरीके से फायदा पहुंचाया गया तो परीक्षा की मान्यता ही समाप्त हो जाती है। एक मिनट के लिए मान भी लें कि व्यापमं घोटाले को उजागर करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह थे तो उन्होंने उजागर करने के अलावा क्या किया यह बात सार्वजनिक रूप से मौजूद तथ्यों से बिल्कुल मेल नहीं खाती है, फिर भी क्या हुआ जब व्यापम का घोटाला उजागर हुआ।

6 जुलाई 2013 को इंदौर के होटल से 6 सॉल्वर पकड़े जाते हैं। सॉल्वर उसे कहते हैं जो होते तो डॉक्टर हैं लेकिन पैसे लेकर दूसरे राज्यों में किसी के बदले इम्तहान दे आते हैं। पुलिस का छापा पड़ा तो ये सॉल्वर हड़बड़ा गए और भेद खुलने लगे। लेकिन 9 दिन बाद व्यापमं के नतीजे घोषित कर दिये गए। 13 जुलाई को नतीजे आने के बाद उसी रात सॉल्वर घोटाले का सरगना जगदीश सागर गिरफ्तार भी हुआ लेकिन इसके बाद भी सरकार ने एडमिशन के लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया शुरू की और जल्दी पूरी कर ली। सरकार ने छात्रों से हलफनामा लेकर एडमिशन कर लिया कि भविष्य में दोषी पाए गए तो नामांकन रद्द समझा जाएगा।

मुख्यमंत्री चौहान ने दोबारा परीक्षा क्यों नहीं कराई। व्यापमं के अधिकारियों के ख़िलाफ कब और क्या कार्रवाई की। उनकी सख्ती के बाद भी उनका पूर्व पीए और राज्य पिछड़ा आयोग के सदस्य अब तक फरार कैसे हैं। आपको पूनम शर्मा की एक कहानी बताता हूं। जुलाई महीने में जब घोटाला सामने आया तो पूनम शर्मा और कुछ छात्र कोर्ट गए कि परीक्षा रद्द कर दी जाए लेकिन फैसले का इंतज़ार ही करते रह गए।

इस बीच जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद भी सरकार ने एडमिशन के लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी। छात्रों से हलफनामा ले लिया कि भविष्य में दोषी पाए गए तो नामांकन रद्द माना जाएगा। अक्टूबर 2013 में 135 संदिग्ध छात्रों को निकाल दिया गया। तब पूनम जैसे कुछ परीक्षार्थी मांग करने लगे कि उनकी जगह दूसरे छात्रों का नामांकन होना चाहिए। जिस रैंक पर एडमिशन बंद हुआ था उससे बहुत दूर नहीं थी पूनम शर्मा। वो सुप्रीम कोर्ट तक गई लेकिन तब तक नामांकन की आखिरी तारीख 30 सितंबर बीत चुकी था। दिसंबर 2013 में पूनम और कुछ परीक्षार्थियों ने भूख हड़ताल भी की। किस्मत अच्छी थी कि 2014 की प्रवेश परीक्षा सीबीएसई के एआईपीएमटी से कराई गई। पूनम फिर से डॉक्टर बन गई। एक सिपाही की बेटी और पांच बहनों में से एक पूनम ज़रूर अच्छा डॉक्टर बनेगी। लेकिन जो बच्चे बर्बाद हो गए उनकी दास्तां कौन सुनेगा।

ऐसा ही घोटाला 2010-11 में छत्तीसगढ़ में भी खुल चुका था। बुधवार के रायपुर दैनिक भास्कर में छपी ख़बर आप भी देख सकते हैं। बिलासपुर के पास तखतपुर की एक धर्मशाला में बच्चे और उनके मातापिता पर्चा भर रहे थे। भास्कर के अनुसार हर छात्र से पर्चा लीक करने के 13 लाख लिये गए और वहां एक रात में आठ करोड़ का कोराबार हुआ। व्यापमं की जांच कर रही टीम अब छत्तीसगढ़ में भी हाथ पांव मार रही है कि कहीं उसका संबंध व्यापमं से तो नहीं था। ऐसा तो हो नहीं सकता कि जो घोटाला मध्य प्रदेश में राजनीतिक संरक्षण के साथ चल रहा था छत्तीसगढ़ में ईश्वर की कृपा से हो रहा था।

अगस्त 2013 में सीआईडी को एक गुप्त चिट्ठी मिली कि छत्तीसगढ़ के मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे कई छात्र पीएमटी में शामिल नहीं हुए थे। उस चिट्ठी में छात्रों के नाम दिये गए थे और कहा गया था कि इनकी जगह किसी और ने परीक्षा दी थी। सीआईडी ने जांच की तो 2007 से 2010 के बीच 45 फर्जी उम्मीदवार सामने आए। 25 के खिलाफ ही चालान पेश किया जा सका है और डेढ़ दर्जन आरोपी छात्रों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई है।

दोनों ही सरकारें 2010-11 में शांत रहीं। इस दौरान ऐसे मामले मध्य प्रदेश में भी आ चुके थे। मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी बताना चाहिए कि उन्होंने क्या किया और उनकी पुलिस किस नतीजे पर पहुंची है। छत्तीसगढ़ में जिन बच्चों का नामांकन हुआ वो किनके थे। दैनिक भास्कर की खबर में यह भी है कि कुछ छात्र ज़मानत पर रिहा होकर वापस पढ़ने तो चले गए लेकिन पिछले पांच सात सालों में एक दो साल की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए हैं।

अब आइये कमाल ख़ान की रिपोर्ट पर। हमारे नेता अफसर और गिरोह मिल जाए तो क्या नहीं कर सकते हैं बस आपके किसी होनहार बच्चे को हमेशा के लिए बर्बाद होना पड़ेगा। यूपी के मेडिकल कॉलेजो में वाटेंड के इन पोस्टरों को देखिये। ये कथित रूप से सॉल्वर हैं जिनकी तलाश मध्य प्रदेश की एसटीएफ कर रही है। करीब 200 सॉल्वरों में से ज्यादातर यूपी के मेडिकल कॉलेज के हैं। एसटीएफ को कानपुर मेडिकल कॉलेज के 58 छात्रों की तलाश है जिन पर पैसे लेकर दूसरे के बदले परीक्षा देने का संदेह है। इनमें से 23 छात्र गिरफ्तार भी हुए और ज़मानत पर रिहा होकर कॉलेज आ गए। कुछ अभी भी जेल में हैं और कुछ फरार। ये पास होते तो डॉक्टर बनते लेकिन पैसे और राजनीतिक सत्ता के भरोसे ने इन्हें अपराधी बना दिया। मैनपुरी से गिरफ्तार एक सॉल्वर ने मध्य प्रदेश को राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे का नाम लिया था जिनकी संदिग्ध हालात में लखनऊ में मौत हो गई।

इसी के साथ सवाल आता है कि जब एनडीए सरकार बनते ही यूपीए के कुछ राज्यपालों को कथित भ्रष्टाचार के आरोप में भी हटाया गया लेकिन रामनरेश यादव कैसे बच गए। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी है लेकिन जब आरोप लगे थे तब भी नहीं हटाए गए। पिछले कई दिनों से दलील दी जा रही थी कि उज्जैन की नम्रता ने आत्महत्या की है लेकिन अब तथ्य सामने आ रहे हैं कि मेडिकल की छात्रा नम्रता दामोर को मारा गया था। नम्रता के परिवार का इंटरव्यू करने के दौरान पत्रकार अक्षय सिंह की मौत हो गई थी। व्यापमं में नम्रता की भूमिका स्पष्ट नहीं है लेकिन इसका शव उज्जैन में रेलवे ट्रैक पर मिला था। जनवरी 2012 की पोस्टमार्ट रिपोर्ट कहती है उसकी मौत VIOLENT ASPHYXIA यानी दम घोंटकर की गई थी। सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस ने बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखे बयान दे दिया था। किसके दबाव में आत्महत्या करार दिया गया। नम्रता के भाई का कहना है कि प्रशासन की तरफ से दबाव डाला गया कि समझौता कर लें।

मंगलवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को चिट्ठी लिखी थी कि मामले को सीबीआई को सौंपा जाए लेकिन जबलपुर हाईकोर्ट ने कहा कि इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं विचाराधीन हैं, लिहाज़ा फैसला करना अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उधर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने स्पेशल बेंच बनाने का सुझाव दिया है। आज व्हीसल ब्लोअर प्रशांत पांडे के पेन ड्राईव मामले में एक और प्रगति हुई है। व्हीसल ब्लोअर अपनी पेन ड्राईव एसटीएफ को दे दी यह कह कर इसमें असली सबूत हैं। एसटीएफ ने एसआईटी को रिपोर्ट दी कि पेन ड्राईव में सबूत नकली हैं। हाईकोर्ट ने एसआईटी की रिपोर्ट पर कहा कि प्रथम दृष्‌टया हम सहमत हैं। प्रशांत पांडे पेन ड्राईव लेकर दिल्ली हाई कोर्ट चले गए। वहां मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि पेन ड्राईव फर्ज़ी है और हमें ज़रूरत नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट ने पेन ड्राईव जबलपुर हाई कोर्ट को दे दी। दो हफ्ता पहले जिस पेन ड्राईव को एसटीएफ ने खारिज कर दिया था वापस कोर्ट से कहा कि हमें दे दी जाए। कोर्ट ने एमिकस क्यूरे से इस बारे में राय मांगी जो बुधवार को जमा कर दी गई है। 20 जुलाई को जबलपुर हाई कोर्ट इस पर अपना फैसला दे सकती है।

एमिकस क्यूरे ने अपनी रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में दी है। खास तो नहीं बताया पर उनकी बातों से लगा कि वे बिना जांच के पेन ड्राईव को फेंकने के पक्ष में नहीं हैं। तो पेन ड्राईव पर भी सरकार का दावा आधा अधूरा ही साबित होता दिख रहा है।

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