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This Article is From Jul 14, 2015

एक अफ़सर की सियासत से टक्कर!

Reported By Ravish Kumar
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  • Updated:
    जुलाई 14, 2015 21:31 pm IST
    • Published On जुलाई 14, 2015 21:22 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 14, 2015 21:31 pm IST
कायदे से अच्छा ये होता कि अफसरशाही और राजनीतिक नेतृत्व के सवाल पर संस्थागत रूप से बहस होती लेकिन अक्सर इन सवालों को तमाम कमेटियों के नाम से दरी के नीचे सरका दिया जाता है। टरकाने की वजह यह होती है कि आम तौर पर दोनों मिलजुल कर चलते रहते हैं लेकिन किसी मोड़ पर टकराव हो जाए तो सिर्फ बाहर या अदालत का रास्ता नज़र आता है।

आपने उत्तर प्रदेश के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के मामले को किस नज़र से देखा है। क्या आप उनमें से है जो एक व्हीसल ब्लोअर और साहसी अफसर के साथ हो रही नाइंसाफी से नाराज़ हैं या आप उन लोगों में से भी हैं जो एक सरकारी अधिकारी के रूप में अमिताभ ठाकुर के अति उत्साह को लेकर आशंकित हैं। कैसे भी देखें लेकिन जिस बातचीत को टेप कर अमिताभ ठाकुर ने सार्वजनिक किया है उससे तो यही लगता है कि मुलायम सिंह यादव ने अतिक्रमण किया है। हमदर्दी की याद दिलाने के बहाने धमकी ही दी है।

सुधर जाने की नसीहत के कुछ घंटे के बाद बलात्कार के मामले दर्ज कराना और निलंबित करना बताता है कि अमिताभ ठाकुर को क्या संकेत दिया जा रहा था। बातचीत का लहज़ा ज़रूर नरम है मगर बात सख्त है। इस बातचीत में मुलायम सिंह यादव किसी जसराना प्रसंग की याद दिला रहे हैं कि वैसी हालत हो जाएगी।

दरअसल 2006 में जसराना में अमिताभ ठाकुर पर समाजवादी पार्टी के विधायक रामवीर सिंह यादव और उनके समर्थकों ने हमला किया था, बाद में आरोपी रामवीर और अन्य लोगों को बरी कर दिया गया क्योंकि मामले से जुड़े कई गवाह पलट गए। इसी बातचीत में मुलायम यह भी कह रहे हैं कि आपसे हमदर्दी रही है। मैं पटना गया.. घर वालों ने कहा मेरा लड़का है देखते रहना। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि नेताजी हमें भी डांट देते हैं। फर्क ये है कि वे उनकी पार्टी के नेता हैं और पिता भी। लेकिन वे अधिकारियों के क्या हैं।

मुलायम सिंह यादव की क्यों हमदर्दी थी और वे पटना अमिताभ के घर क्यों गए, अगर इतनी हमदर्दी थी तो अमिताभ ठाकुर मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए दो बार क्यों सस्पेंड हुए। बातचीत रिकॉर्ड करना और सार्वजनिक करना विवादास्पद हो सकता है लेकिन पब्लिक नहीं होता तो पता कैसे चलता कि हमारे राजनेता अफसरों से कैसे बात करते हैं।

ज़रूर अमिताभ ठाकुर मुलायम सिंह यादव के ख़िलाफ़ थाने में तहरीर लिखाने पहुंच गए। पुलिस सुधार पर बात करने वाले यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह कहते हैं कि अमिताभ ठाकुर को यह नहीं करना चाहिए था। अमिताभ ठाकुर एक जुनूनी अधिकारी हैं। अमिताभ और उनकी पत्नी ने 500 से ज़्यादा आरटीआई अप्लिकेशन जारी किये हैं। उनकी पत्नी नूतन ठाकुर स्वतंत्र हैसियत से बिल्कुल ये काम कर सकती हैं लेकिन अमिताभ की सक्रियता एक नई और रोचक परंपरा तो कायम करती ही है।

आखिर पौने दौ सौ जनहित याचिकाएं दायर करने वाले इस युगल से प्रेरणा लेकर प्रधानमंत्री मोदी या किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री अपने अफसरों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें या अफसर अमिताभ से स्वत प्रेरणा लेते हुए जनहित याचिकाएं दायर करने लग सकते हैं। वैसे गुजरात में आईपीएस कुलदीप शर्मा का मामला याद होगा। सरकार से उनकी लड़ाई चली तो उनके खिलाफ बीस साल पहले बंद हो चुके मामले को खोल दिया गया। हरियाणा के अशोक खेमका ने ट्रांसपोर्ट विभाग में भ्रष्टाचार से लड़ना शुरू ही किया था कि तबादला हो गया। हरियाणा के एक और अधिकारी संजीव चतुर्वेदी का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन वे कभी मीडिया के सामने नहीं आए। अशोक खेमका मीडिया के सामने ज़रूर आए मगर वे हमेशा अपनी सीमा को रेखांकित किया करते थे।

तो क्या अमिताभ ठाकुर, संजीव चतुर्वेदी और अशोक खेमका की तरह ईमानदार होते हुए दूसरी तरह बैटिंग करते हैं। इस पर बहस हो सकती है लेकिन एक आईजी स्तर के अफसर के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करना भी कुछ कम ज़्यादती नहीं है। ये और बात है कि अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी की जनहित याचिकाओं की ज्यादतियों को देखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 9 जून 2014 को अमिताभ ठाकुर की एक जनहित याचिका से नाराज़ होकर अदालत ने उन पर बिना सरकारी अनुमति के पीआईएल करने पर रोक लगा दी। इसी तरह 11 अप्रैल 2014 को नूतन ठाकुर की एक पीआईएल से नाराज़ हाईकोर्ट ने पीआईएल से पहले उनसे 25,000 रुपये अदालत में जमा करने की शर्त लगा दी थी।

क्या कोई भी सरकार अपने अफसर को अमिताभ की तरह पीआईएल करने, धरना प्रदर्शन में शामिल होने या स्वतंत्र एवं व्यक्तिगत जांच आयोग बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी। शायद नहीं। अगर बाकी सरकारों को यह पसंद है तो अपने अधिकारियों के लिए ऐसा सर्कुलर जारी कर सकती हैं। इसी तरह यूपी के एक और अफसर सूर्य प्रताप सिंह अपने फेसबुक पेज पर राज्य सरकार की काफी आलोचना करते रहते हैं। फेसबुक उनका निजी स्पेस है जहां वे यूपी के सार्वजनिक उद्यम विभाग के प्रमुख सचिव पद पर रहते हुए सरकार पर सवाल खड़े करने वाली ख़बरों को चस्पा करते रहते हैं। सूर्य प्रताप सिंह का कहना है कि वे जनता में चेतना पैदा कर रहे हैं। लेकिन फेसबुक से बाहर वे नकल विरोधी प्रदर्शन में भी हिस्सा ले चुके हैं। सरकार ने एस.पी. सिंह को सस्पेंड नहीं किया है।

अमिताभ ठाकुर सिर्फ सरकार से नहीं लड़ते लेकिन अपनी पुलिस के अफसरों से भी लड़ जाते हैं। अगर अमिताभ ठाकुर पुलिस महकमे के कायदे को तोड़ रहे हैं तो सरकार कौन सा नया कायदा बना रही है। मुलायम सिंह यादव का फोन करना और बाद में जो भी हुआ क्या वो पेशेवर कायदा है। पिछले साढ़े तीन साल में यूपी में आठ-आठ पुलिस महानिदेशक हुए हैं। अमिताभ तो कई साल से सक्रिय हैं लेकिन अभी क्यों निशाना बनाया गया। क्या खनन माफिया पर हाथ डालने के कारण यह सब हुआ जिससे परेशान सरकार ने मीडिया और आंदोलनों में उनकी सक्रियता का बहाना बनाया।

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